Biology (जीव विज्ञान) - General Science: विभिन्न भर्ती परीक्षा में General Science से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अगर आप भी विभिन्न भर्ती परीक्षा की तैयारी करते हैं और General Science विषय को मजबूत करना चाहते हैं तो हमारे नोट्स पढ़कर, क्वीज टेस्ट देकर लगातार अभ्यास करते रहें। General Science से संबंधित विभिन्न टॉपिक का संकलन आपके लिए।
कोशिका
कोशिका
सजीवों के शरीर के आधारभूत संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई।
कोशिका विभाजन द्वारा स्वजनन का सामर्थ्य रखती है।
कोशिका विज्ञान
यह जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें कोशिका की संरचना व कार्यों का अध्ययन होता है।
कोशिका की खोज
1665 ईस्वी में रॉबर्ट हुक ने की थी।
कॉर्क के टुकड़े में कोशिका के बाहरी आवरण को देखा व इस कोशा नाम दिया।
कोशा का अर्थ होता है सूक्ष्म कक्षा आठवा छोटा कमरा।
जीवित कोशिकाओं को सर्वप्रथम 1674 ईस्वी में ल्यूवेनहॉक ने देखा।
1831 ईस्वी में रॉबर्ट ब्राउन ने सर्वप्रथम ऑर्किड पौधे की जड़ों में कोशिका के केंद्रक की खोज की।
कोशिका सिद्धांत
1838 ईस्वी में जर्मनी के वनस्पति वैज्ञानिक मेथियस श्लाइडेन तथा 1839 ईस्वी में ब्रिटिश के प्राणी वैज्ञानिक थियोडोर श्वान ने संयुक्त रूप से कोशिका सिद्धांत प्रतिपादित किया।
सभी जीव कोशिका व कोशिका उत्पादन से बने होते हैं।
सभी कोशिकाएं पूर्व स्थित कोशिकाओं से निर्मित होती है।
वायरस कोशिका सिद्धांत में अपवाद है, क्योंकि वायरस में किसी प्रकार का कोशिकीय संगठन उपस्थित नहीं है।
सर्वप्रथम रुडोल्फ विर्चो ने वर्ष 1855 में स्पष्ट किया-
कोशिका विभाजित होती है तथा पूर्व स्थित कोशिकाओं के विभाजन से नई कोशिकाओं का निर्माण होता है।
वह जीव जिनके शरीर एक कोशिका से बना होता है, उन्हें एक कोशिकीय जीव रहते हैं। उदाहरण- अमीबा पैरामीशियम
वह जीव जिसमें अनेक कोशिकाएं होती है, बहुकोशिकीय जीव कहलाते हैं। उदाहरण- मनुष्य
सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा का आकार 0.3 माइक्रोमीटर होता है।
सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग के अंडे का आकार 170 mm होता है।
कोशिका के प्रकार
प्रोकैरियोटिक कोशिका
इसमें प्रारंभिक केंद्रक उपस्थित होता है, इसीलिए इसे प्रारंभिक कोशिकाएं कहते हैं।
इसका आकार 1 m से 10 m के मध्य होता है
उदाहरण- जीवाणु कोशिका, नील हरित शैवाल, माइक्रोप्लाज्मा
सभी प्रोकैरियोटिक कोशिका में कोशिका भित्ति कोशिका झिल्ली द्वारा गिरी रहती है
अपवाद स्वरूप माइकोप्लाज्मा में कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है
इसमें स्पष्ट केंद्रक नहीं पाया जाता है
राइबोसोम के अलावा प्रोकैरियोटिक कोशिका में कोई अन्य अंगक नहीं पाए जाते हैं
इसमें कोशिका झिल्ली एक विशिष्ट विभेदित आकार की संरचना मिलती है, जिससे मिसोसोम कहते हैं। यहां कोशिका भित्ति में श्वसनीय एंजाइम उत्पन्न करती है।
अधिकांश प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में एक जटिल आवरण पाया जाता है। इसमें कोशिका आवरण तीन स्तरीय संरचना बनाते हैं।
राइबोसोम कोशिका के जीव द्रव्य झिल्ली से जुड़े होते हैं। राइबोसोम का आकार 15 से 20 नैनोमीटर के मध्य होता है। यहां दो अप इकाइयों में 50s व 30s के की बनी होती है। जो संयोजित होकर 70s प्रोकैरियोटिक राइबोसोम बनाते हैं
यूकैरियोटिक कोशिका
इसमें पूर्ण रूप से विकसित केंद्रक उपस्थित होता है
यह विषाणु, जीवाणु तथा नील हरित शैवाल को छोड़कर सभी पौधे व जंतु में पाई जाती है
इनका आकार बड़ा होता है
इन कोशिकाओं में झिल्लीमय केंद्रक आवरण युक्त सुविकसित केंद्रक मिलता है। तथा अनुवांशिक पदार्थ गुणसूत्र के रूप में व्यवस्थित होते हैं।
पादप व जंतु में यूकैरियोटिक कोशिकाएं भिन्न होती है।
प्रोकैरियोटिक की विशेषताएं
आदिम कोशिकाएं
केंद्रक – प्रारंभिक अविकसित
केंद्रक कला – अनुपस्थित
असूत्री कोशिका विभाजन
प्लाज्मा झिल्ली द्वारा श्वसन
प्रकाश संश्लेषण आंतरिक झिल्ली में होता है तथा हरित लवक अनुपस्थित होता है
अलैंगिक जनन
कोशिका द्रव्य गति अस्पष्ट होती है
रिक्तिका अनुपस्थित होती है
मुकुलन तथा विखंडन द्वारा कोशिका विभाजन
एक गुणसूत्र पाया जाता है
दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग, जैसे लवक माइटोकांड्रिया अनुपस्थित होते हैं
उदाहरण बैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा तथा नील हरित शैवाल।
यूकेरियोटिक कोशिकाओं की विशेषताएं
सुविकसित कोशिकाएं
पूर्ण विकसित केंद्रक
केंद्र कला उपस्थित
समसूत्री विभाजन तथा अर्धसूत्री विभाजन
माइटोकांड्रिया द्वारा श्वसन प्रक्रिया
प्रकाश संश्लेषण हरित लवक में होता है
लैंगिक व अलैंगिक जनन पाया जाता है
कोशिका द्रव्य गति स्पष्ट होती है
रिक्तिका उपस्थित होती है
समसूत्री व अर्धसूत्री विभाजन के माध्यम से कोशिका विभाजन
गुणसूत्र की संख्या एक से अधिक होती है
दोहरी झिल्ली युक्त कोशिकांग जैसे लवक माइटोकांड्रिया उपस्थित होते हैं
उदाहरण – पादप एवं जंतु कोशिकाएं
पादप कोशिका की विशेषताएं
बाहरी आवरण – पौधों में सैलूलोज से बनी त्रिस्तरीय कोशिका भित्ति पाई जाती है
कवक, जीवाणु आदि में पर्णहरित पाया जाता है (कुछ पौधों को छोड़कर)
सेंट्रोसोम और लाइसोसोम अनुपस्थित होते हैं
रसधानी उपस्थित होती है
जंतु कोशिका के विशेषताएं
जंतु कोशिका जीवद्रव्य झिल्ली से ढकी रहती है का भित्ति अनुपस्थित होती है
पर्णहरित नहीं पाया जाता है
सेंट्रोसोम कोशिका विभाजन में सहायता करते हैं
लाइसोसोम, तारककेंद्र उपस्थित होता है
रसधानी अनुपस्थित होता है
पादप कोशिका एवं जंतु कोशिका का चित्र
कोशिका संरचना
कोशिका का निर्माण विभिन्न प्रकार के कोशिकांग से होता है
प्रत्येक कोशिकांग का एक विशिष्ट कार्य होता है, जिसके कारण कोशिका कार्य करने में सक्षम होती है
कोशिका के तीन भाग है
कोशिका झिल्ली
कोशिका द्रव्य
केंद्रक
जीवद्रव्य
कोशिका द्रव्य एवं केंद्रक को संयुक्त रूप से जीव द्रव्य कहते हैं।
कोशिका झिल्ली
कोशिका की सबसे बाहरी आवरण
बहुत पतली, मुलायम और लचीली होती है
कोशिका झिल्ली द्वारा कुछ पदार्थ बाहर आ जा सकते हैं, इसीलिए इसे अर्धपारगम्य झिल्ली कहते हैं
यह लिपिड व प्रोटीन की बनी होती है, इसमें दो परत प्रोटीन व उसके मध्य एक परत लिपिड की होती है
कोशिकाओं में पदार्थ का आवागमन करती है
कोशिका का एक निश्चित आकार बनाए रखती है
कोशिका को यांत्रिक सहायता प्रदान करती है
कोशिका भित्ति
पादप कोशिका के चारों ओर मोटा आवरण
पादपो में सैलूलोज से निर्मित
जीवाणु की कोशिका भित्ति पेप्टीडोग्लाइकेन से निर्मित
पारगम्य
कोशिका भित्ति के कार्य
कोशिका को एक निश्चित रूप प्रदान करना
कोशिका झिल्ली की रक्षा करना
पादप कोशिका को सुरक्षा तथा यांत्रिक सहायता प्रदान करना
कोशिका द्रव्य
यह जीवद्रव्य का वह भाग है, जो कोशिका भित्ति व केंद्रक के मध्य पाया जाता है
इनमें कई पदार्थ निर्जीव होते हैं – अकार्बनिक पदार्थ (खनिज, लवण तथा जल) तथा कार्बनिक पदार्थ (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा)
यह गाढ़ा पारभासी व चिपचिपा पदार्थ होता है
कोशिका द्रव्य मैं पाए जाने वाले कोशिकांग
1. अतः प्रद्रव्यी जालिका
खोज- पोर्टर
कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में सूक्ष्म, शाखित, झिल्लीदार अनियमित नलिकाओं का जाल होता है
यह कोशिकाओं में बाह्य झिल्ली से प्लाज्मा झिल्ली तक फैली रहती है
यह अंतःकोशिकीय परिवहन तंत्र का निर्माण तथा केंद्रक से कोशिका द्रव्य में अनुवांशिक पदार्थ के जाने का पथ बनती है
कोशिका विभाजन के दौरान कोशिका प्लेट व केंद्रक झिल्ली का निर्माण करती है
यह जालिका लिपोप्रोटीन की बनी होती है
अतः प्रद्रव्यी जालिका के प्रकार
a. चिकनी अतः प्रद्रव्यी जालिका
चिकनी होती है
लिपिड स्राव के लिए उत्तरदाई
वसा एवं कोलेस्ट्रॉल के संश्लेषण में सहायक
b. खुरदरी अतः प्रद्रव्यी जालिका
इसके ऊपर राइबोसोम के छोटे छोटे कण पाए जाते हैं
प्रोटीन संश्लेषण में उत्तरदाई
2. राइबोसोम
जॉर्ज पेलेड द्वारा खोज की गई (1953)
बहुत से राइबोसोम एवं संदेश वाहक RNA से मिलकर एक श्रृंखला बनाते हैं, जिसे पॉलिराइबोसोम अथवा बहुसूत्र कहते हैं
प्रोटीन व RNA से निर्मित
प्रोटीन संश्लेषण में सहायक
3. गॉल्जीकाय
कैमिलो गॉल्जी ने खोज की (1898 ई)
ग्लाइकोप्रोटीन तथा ग्लाइकोलिपिड के निर्माण का प्रमुख स्थल
पादप कोशिका के कोशिका द्रव्य में यह गुच्छो या मुड़ी छड़ के सामान बिखरे रहते हैं, जिसे डिक्टियोसोम कहते हैं
गॉल्जीकाय की झिल्लीयों का संपर्क अतः प्रद्रव्यी जालिका के साथ रहता है, इसके नीचे की तरफ रिक्तिकाएं पाई जाती है
गॉल्जीकाय कोशिका का मुख्य स्त्रवण कोशिकांग
गॉल्जीकाय के कार्य
लाइसोसोम व पेरोक्सिसोम का निर्माण
द्रव्य को संयोजित कर कोशिका के बाहर स्त्रवण करने का कार्य
पादप कोशिका विभाजन के समय कोशिका प्लेट निर्माण
शुक्राणु में एक्रोसोम का निर्माण
4. लाइसोसोम
क्रिश्चियन डी डवे द्वारा खोजा गया (1955)
सूक्ष्म कोशिकांग, जिसका आकार छोटी थैली के समान होता है
एंजाइम, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड, न्यूक्लिक अम्ल आदि के पाचन में सक्षम
कोशिकीय उपापचय के दौरान कोशिका के क्षतिग्रस्त होने से लाइसोसोम फट जाते हैं तथा इनमें मौजूद जल अपघटनीय एंजाइम कोशिका को पाचित कर देते हैं। अंत में कोशिका की मृत्यु हो जाती है, इसीलिए इसे कोशिका की आत्मघाती थैली कहते हैं।
5. माइटोकांड्रिया
कोलिकर द्वारा देखा गया (1857)
बेंडा नामक वैज्ञानिक ने माइटोकांड्रिया नाम दिया
ऊर्जा उत्पन्न करने के कारण कोशिका का बिजली गृह के नाम से जाना जाता है
आकार व आकृति परिवर्तित करने में सक्षम
दोहरी झिल्लीयुक्त संरचना
भीतरी कक्ष घने व संमागी पदार्थ से भरा होता है, जिसे मैट्रिक्स कहते हैं
माइटोकॉन्ड्रिया का संबंध वायवीय श्वसन से होता है
यह विखंडन द्वारा विभाजित होती है
6. लवक
केवल पादप कोशिका एवं कुछ प्रोटोजोआ में पाए जाते हैं
कोशिका द्रव्य के चारों ओर बिखरे रहते हैं
अंडाकार, गोलाकार इत्यादि आकार में पाए जाते हैं
तीन प्रकार के होते हैं
A. अवर्णी लवक
यह पौधे के उन भागों में पाया जाता है जो सूर्य के प्रकाश से वंचित होते हैं। जैसे जड़ तथा भूमिगत तना
अवर्णी लवक का कार्य
स्टार्च कणीका एक तेल बिंदु के निर्माण तथा उसका संग्रहण करना
B. वर्णी लवक
यह रंगीन लवक होते हैं
लाल, पीले, नारंगी रंग के होते हैं
पौधों में पुष्प, फलभित्ति, बीज आदि रंगीन भाग में पाए जाते हैं
C. हरित लवक
इसमें हरे रंग का पदार्थ व पर्णहरित होता है
इसकी मदद से पौधा प्रकाश संश्लेषण करता है तथा भोजन बनता है
7. रसधानी
चारों ओर से अर्धपारगम्य झिल्ली द्वारा आवरित होती है, जिसे टोनोप्लास्ट कहते हैं
जंतु कोशिका में इसका आकार छोटा तथा पादप कोशिका में बड़ा होता है
रसधानी के कार्य
जंतु कोशिका में जल संतुलन करना
पादप कोशिका में स्फीति व कठोरता प्रदान करना
एक कोशिकीय जीवो में अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकलना।
8. तारककाय
सर्वप्रथम वान बेंडन द्वारा देखा गया (1888 ई)
बोवेरी ने इसकी संरचना व कार्य के बारे में बताया।
केवल जंतु कोशिका में पाया जाता है
इसके आकृति बेलन जैसी होती है
तारककाय के कार्य
जंतु कोशिका विभाजन में मदद करता है
सिलिया व फ्लैजैला के निर्माण में सहायक
3. केंद्रक
रॉबर्ट ब्राउन ने 1831 में खोज की
कोशिका द्रव्य के मध्य गोल, गाढ़ी संरचना होती है
कोशिका का प्रमुख अंग, कोशिका के प्रबंधक के समान कार्य
इसमें उपस्थित केंद्रक छिद्र, केंद्रक द्रव्य, पर कोशिका द्रव्य के पदार्थ का आदान-प्रदान करता है
केंद्रक में धागेनुमा पदार्थ जाल के रूप में फैला रहता है, जिसे क्रोमेटीड कहते हैं
क्रोमेटीड डीएनए व प्रोटीन से निर्मित होते हैं
केंद्रक की संरचना का चित्र
केंद्रक के कार्य
कोशिका में उपापचय व रासायनिक क्रियायो का नियंत्रण करना
प्रोटीन संश्लेषण के लिए RNA उत्पन्न करना
केंद्रीका
केंद्रक के केंद्रक द्रव्य में एक छोटी गोलाकार संरचना
केंद्रीका का कार्य
इसमें राइबोसोम के लिए आरएनए का संश्लेषण होता है
गुणसूत्र
कोशिका विभाजन के दौरान क्रोमेटीन जालिका के धागे अलग होकर छोटी व मोटी छड़ में परिवर्तित होते हैं
कोशिका में गुणसूत्र महीन लंबे वी अत्यधिक कुंडलीत धागे के रूप में पाए जाते हैं
गुणसूत्र में अनेक जीन होते हैं, जिन डीएनए का क्रियात्मक खंड है। यह जीन गुणसूत्र पर स्थित होते हैं, गुणसूत्र के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अनुवांशिक लक्षण हस्तांतरित होते हैं। इसीलिए गुणसूत्र को वंशागति का वाहक कहते हैं
गुणसूत्र के भाग
पेलिकल – गुणसूत्र का बाहरी आवरण
मैट्रिक्स – पेलिकल से घिरा हुआ भाग
क्रोमेटिड्स – मैट्रिक्स में दो समांतर कुंडलीत भागों के समान संरचना होती है, जो गुणसूत्र की पूरी लंबाई में उपस्थित होती है, उसे क्रोमेनिमाटा कहते हैं
दोनों क्रोमेटेड एक निश्चित स्थान पर एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, जिसे सेंट्रोमियर कहते हैं
गुणसूत्र की संरचना का चित्र
क्रोमेटेड डीएनए एवं हिस्टोन प्रोटीन से निर्मित होते हैं
टेलोमियर – गुणसूत्र का शीर्ष भाग होता है
कोशिका विभाजन
कोशिका विभाजन का प्रमुख कार्य एक कोशिका से अनेक नई संतति कोशिकाओं को जन्म देना है।
कोशिका विभाजन के प्रकार
असूत्री कोशिका विभाजन
समसूत्री कोशिका विभाजन
अर्धसूत्री कोशिका विभाजन
असूत्री कोशिका विभाजन
इस विभाजन में केंद्रक लंबे आकार का हो जाता है, फिर दो भागों में विभाजित होकर नई समान संतति बनता है
यह जीवो, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, शैवाल आदि में होता है
समसूत्री कोशिका विभाजन
वाल्थर फ्लोमिंग द्वारा माइटोसिस नाम दिया गया (1882 ई)
माइटोसिस का अर्थ होता है – धागे की तरह निर्माण या केंद्र का विभाजन
विभाजन में मातृ कोशिका विभाजित होकर दो समान नई संतति कोशिकाएं बनाती है
यह एक जटिल प्रक्रम है, पांच अवस्थाओं में संपन्न होता है
A. इंटरफेस
B. प्रोफेज
C. मेटाफेज
D. एनाफेज
E. टेलोफेज
A. इंटरफेस
समसूत्री विभाजन से पूर्व प्रत्येक कोशिका विश्रामावस्था में होती है
इस अवस्था में कोशिका विभाजन के लिए तैयार होती है, इस दौरान कोशिका वृद्धि व डीएनए प्रतिकृतिकरण दोनों होते हैं
B. प्रोफेज
गुणसूत्रीय द्रव्य संघनित होकर ठोस गुणसूत्र बन जाता है
गुणसूत्र दो अर्ध गुणसूत्रों से बना होता है, जो सेंट्रोमियर से जुड़े रहते हैं
प्रत्येक अर्धभाग को क्रोमेटेड कहते हैं
द्विगुणित तारककाय का विपरीत ध्रुव की ओर जाने लगता है
C. मेटाफेज
इस अवस्था में तर्कु पूर्ण विकसित होते हैं
गुणसूत्र मध्य रेखा की ओर मध्यावस्था पट्टीका पर ध्रुवो से तर्कु तंतु से जुड़ जाते हैं
D. एनाफेज
गुणसूत्र बिंदु विखंडित होते हैं
अर्धगुणसूत्र अलग होने लगते हैं
अर्धगुणसूत्र ध्रुवो की ओर जाने लगते हैं
E. टेलोफेज
गुणसूत्र विपरीत ध्रुवो की ओर एकत्रित हो जाते हैं
गुणसूत्र के चारों ओर केंद्रक झिल्ली का निर्माण होता है
केंद्रीका, गॉल्जीकाय, व अतः प्रद्रव्यी जालिका का निर्माण होता है
समसूत्री विभाजन चित्र
साइटोकाईनेसिस
समसूत्री विभाजन के दौरान द्विगुणित गुणसूत्र का संतती केंद्रकों में विभाजन होता है, जिसे केंद्रक विभाजन कहते हैं। कोशिका विभाजन संपन्न होने के अंत में कोशिका स्वयं दो संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है, जिसे कोशिका द्रव्य विभाजन अथवा साइटोकाईनेसिस कहते हैं।
पादप कोशिका में कोशिका द्रव्य विभाजन नहीं होता है इसमें तर्कु तंतु के बीच छोटी कणिकाएं आपस में संयोजित होकर कोशिका पट्टीका बनती है
यह कोशिका पट्टिका के दोनों ओर सेल्यूलोज दीवार बनाती है। दो संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है
अर्धसूत्री विभाजन
बीजमैन नामक वैज्ञानिक ने इस विभाजन की खोज की
‘Meiosis’ नामकरण “फार्मर” तथा “मुरे” ने 1905 में किया
यह कोशिका विभाजन केवल जनन कोशिकाओं में होता है
लैंगिक प्रजनन द्वारा संतति के निर्माण में दो युग्म को का संयोजन होता है
जंतुओं में शुक्राणु तथा अंडाणु एवं पादपो में नर तथा मादा युग्मक बनते हैं
यह विशिष्ट प्रकार का कोशिका विभाजन है, जिसके द्वारा बनने वाली अगुणित संतति कोशिकाओं में गुणसूत्र की संख्या आधी हो जाती है
युग्मक निर्माण के दौरान ही गुणसूत्र की संख्या आधी हो जाती है, जिसे युग्मक जनन कहते हैं
अगुणित कोशिका
युग्मको में गुणसूत्र संख्या आधी होना
द्विगुणित कोशिका
शुक्राणु व अंडाणु के संयोजन से युग्मनज का निर्माण होना
जिससे गुणसूत्र की संख्या दोगुनी हो जाती है
अर्धसूत्री कोशिका विभाजन में दो विभाजन होते हैं
i. विषमरूपी विभाजन
ii. समरूप विभाजन
A. विषमरूपी विभाजन
यह निम्न अवस्था में संपन्न होता है
(a) प्रोफेज I
लंबी व जटिल अवस्था
पांच प्रावस्था में विभाजित
i. लेप्टोटीन
इसमें गुणसूत्र लंबे व पतले हो जाते हैं
गुणसूत्र की संख्या द्विगुणित होती है
ii. जाइगोटिन
सेन्ट्रिओल एक दूसरे से अलग होकर केंद्रक के विपरीत ध्रुव की ओर जाते हैं
तंतु एस्टर का निर्माण होता है
iii. पैकिटिन
इसमें गुणसूत्र सिकुड़ कर मोटे हो जाते हैं
प्रत्येक जोड़ा गुणसूत्र चार क्रोमेटिड हो जाते हैं
इसमें दो मातृ तथा दो पितृ क्रोमेटिड्स होते हैं
iv. डिप्लोटीन
इस अवस्था में चार क्रोमेटिड बने होते हैं
समजात गुणसूत्र अलग होने लगते हैं
दो क्रोमेटिड एक-दूसरे से x रूप में उलझे होने के कारण अलग नहीं होते, जिसे काएज्मेट कहते हैं
v. डायकाइनेसिस
इस अवस्था में गुणसूत्र का आकार बदलता है
गुणसूत्र केंद्रक की ओर जाते हैं
b. मेटाफेज I
प्रत्येक जोड़ा गुणसूत्र मध्य रेखा पट्टिका पर व्यवस्थित होते हैं
c. एनाफेज I
इस अवस्था में प्रत्येक जोड़ा गुणसूत्र दोनों ध्रुव की ओर खिसकने लगते हैं
d. टेलोफेज I
इसमें प्रत्येक गुणसूत्र के क्रोमेटिड L या V आकार में व्यवस्थित होते हैं
B. समरूप कोशिका विभाजन
यह समसूत्री विभाजन के समान होता है
अर्धसूत्री विभाजन II में चार अवस्थाएं होती है
a. प्रोफेज II
इस अवस्था में क्रोमेटिड का जाल संयोजित होकर गुणसूत्र के रूप में कार्य करता है
b. मेटाफेज II
इस अवस्था में गुणसूत्र के सेंट्रोमियर दो भागों में विभक्त होकर गुणसूत्र के क्रोमेटिड से जुड़ जाते हैं तथा तर्कु का निर्माण करते हैं
गुणसूत्र तर्कु मध्य रेखा पर चिपक जाते हैं
c. एनाफेज II
इस अवस्था में गुणसूत्र के सेंट्रोमियर मध्य रेखा से विभाजित होते हैं, तथा विपरीत ध्रुव की ओर जाते हैं
d. टेलोफेज II
अर्धसूत्री विभाजन की अंतिम अवस्था है, जिसमें गुणसूत्र के दो समूह पुनः केंद्रक आवरण द्वारा घिर जाते हैं
कोशिका द्रव्य विभाजन के पश्चात द्विगुणित कोशिका से चार अगुणित कोशिकाओं का निर्माण होता है
समसूत्री विभाजन की विशेषताएं
यह विभाजन कायिक कोशिकाओं में होता है
इससे जीवों की वृद्धि तथा क्षतिग्रस्त भागों में मरम्मत होती है
यह केवल एक चरण में पूर्ण होता है
इसमें क्रॉसिंग ओवर नहीं होता
इसमें पूर्वावस्था अपेक्षाकृत छोटी होती है
इसमें गुणसूत्र के जोड़ नहीं बनते
इसमें संतति कोशिकाओं की गुणसूत्र की संख्या मातृ कोशिकाओं के समान रहती है
अर्ध गुणसूत्र लंबे व पतले होते हैं
पादप कोशिकाओं में कोशिका अवश्य बनती है
इस विभाजन में दो संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है
अर्धसूत्री विभाजन की विशेषताएं
यह विभाजन केवल लैंगिक कोशिकाओं में होता है
इसके द्वारा एक पीढ़ी के गुण दूसरी पीढ़ी में जाते हैं
यह दो चरण में पूर्ण होता है
इसमें गुणसूत्र के अर्ध गुणसूत्र का आदान-प्रदान होता है (क्रॉसिंग ओवर पाया जाता है)
इसमें पूर्वावस्था जटिल होने के कारण इसे 5 उप अवस्था में विभाजित किया गया
इसमें समजत गुणसूत्र के जोड़े बनते हैं, जिसे यूग्मित गुणसूत्र कहते हैं
इस विभाजन में संतति कोशिकाओं की गुणसूत्र की संख्या मातृ कोशिकाओं के आधी रह जाती है
अर्ध गुणसूत्र छोटे व मोटे होते हैं
पादप कोशिकाओं में प्रथम टेलोफेज I के बाद कोशिका भित्ति हमेशा नहीं बनती
इस विभाजन में चार संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है