आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History): आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History) के संबंध में विभिन्न जानकारी अपडेट की जाती है। इसमें आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History) से संबंधित नोट्स, शॉर्ट नोट्स और मैपिंग के द्वारा विस्तृत अध्ययन करवाया जाता है। क्वीज टेस्ट के माध्यम से अपनी तैयारी पर रखने का बेहतरीन अवसर। आज ही अपनी तैयारी को दमदार बनाने के लिए पढ़िए आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History)।
यूरोपीय कंपनियों का भारत में आगमन
यूरोपीय कंपनियों का भारत आगमन
1453 ईस्वी में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्की का अधिकार हो गया, जिससे भारत व यूरोप के मध्य संपर्क का स्थल मार्ग अवरुद्ध हो जाने से भौगोलिक खोजो को प्रोत्साहन मिला तत्पश्चात नवीन जल स्रोतों की खोज आरंभ हुई
नवीन जल स्रोतों की खोज से भारत और यूरोप के व्यापारिक संबंधों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा
भारत आगमन का मुख्य उद्देश्य
भारत से धन/ साधन प्राप्त करना
धर्म का प्रचार (ईसाई धर्म का प्रचार)
गरम मसाले सहित विभिन्न वस्तुओं का व्यापार करना
बार्थोलोम्यू डियाज को पुर्तगाली शासन जॉन द्वितीय ने यात्रा पर भेजा, इन्होंने सुदूर अफ्रीकी तट पर Cape of Storm (तूफानी अंतरीप) की खोज 1488 में की। जिसे तत्कालीन शासक ने Cape of Good Hope (उत्तम आशा अंतरीप) नाम दिया
भारत में यूरोपीय कंपनियों के आगमन का क्रम इस प्रकार है -
पुर्तगाली
डच
अंग्रेज
डेनिस
फ्रांसीसी
पुर्तगाली
प्रथम पुर्तगाली यात्री वास्को-डि-गामा था, जिसने यूरोप से भारत के समुद्री रास्ते की खोज 1498 ईस्वी में की (पुर्तगाली भारत में सबसे पहले 1498 ई में आए और सबसे अंत में 1961 में गए)
वास्को-डि-गामा एक भारतीय यात्री अब्दुल मनीक की सहायता से भारत पहुंचा
वास्को-डि-गामा ने 17 मई 1498 को पश्चिमी तट के कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा
कालीकट (कोझीकोट) के हिंदू शासक जमोरियन ने स्वागत किया
वास्को-डि-गामा को अपने व्यापार में 60 गुना फायदा हुआ, जिससे अन्य पुर्तगाली व्यापारियों को प्रोत्साहन मिला
1500 ई में पेट्रो अल्वारेस केब्रोल दूसरा पुर्तगाली यात्री जो भारत पहुंचा
1502 में वास्को-डि-गामा ने दूसरी बार भारत की यात्रा की
तीसरी बार यात्रा के दौरान 1524 ईस्वी में कोचिन / कोच्चि में वास्को-डि-गामा की मृत्यु हो गई
पुर्तगालियों ने 1503 ईस्वी में कोचिन में अपनी पहली व्यापारिक कोठी (फैक्ट्री) की स्थापना की
1505 ईस्वी में फ्रांसिस्को डी अल्मेडा को भारत में प्रथम पुर्तगाली गवर्नर बनाया गया
दूसरी पुर्तगाली फैक्ट्री 1505 ई में कन्नूर में स्थापित की
फ्रांसिस्को डी अल्मेडा ने शांत जल की नीति (ब्लू वाटर पॉलिसी) अपनाई, इस नीति का मुख्य उद्देश्य भारत और व्यापारिक एकाधिकार बनाए रखने हेतु समुद्र पर नियंत्रण रखना था (पुर्तगाली स्वयं को समुद्र का स्वामी कहते थे)
भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक अल्फांसो-डी-अल्बुकर्क था, जो 1509 ईस्वी में भारत आया
भारत में दूसरा पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो-डी-अल्बुकर्क था
1510 ईस्वी में अल्फांसो-डी-अल्बुकर्क कृष्णदेव राय के कहने पर बीजापुर के शासक युसूफ आदिल से गोवा छीन लिया। बाद में 1530 ईस्वी में गोवा पुर्तगाली व्यापारिक केन्द्रो की राजधानी बनी
1530 ईस्वी में नीनो-डी-कुन्हा ने कोचिन से राजधानी गोवा स्थानांतरित की
इनक्विजिशन - पुर्तगालियों द्वारा स्थापित धार्मिक न्यायाधिकरण थे
अल्फांसो-डी-अल्बुकर्क ने पुर्तगालियो को भारतीय महिलाओं से विवाह करने हेतु प्रेरित किया
अल्फांसो-डी-अल्बुकर्क ने पुर्तगाल को भारत में सबसे शक्तिशाली समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित किया
बंगाल के शासक महमूद शाह ने 1534 ईस्वी में पुर्तगालियो को चटगांव में फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी
पुर्तगाली गवर्नर मार्टिन-अल्फांसो- डि-सूजा के साथ प्रसिद्ध जेसुइट सेंट जेवियर 1542 ईस्वी में भारत आया
कार्टज - जे समुद्र में किसी भी गतिविधियों के लिए पुर्तगालियों से अनुमति लेने हेतु दस्तावेज था
पुर्तगालियों का साम्राज्य ‘एस्तादो द इंडिया’ कहलाता था
पुर्तगाली चटगांव बंदरगाह को पोर्टो ग्रांडे (महान बंदरगाह) कहते थे
आर्मेडा सिस्टम - पुर्तगाली भारतीय जहाजों को अपने जहाज के साथ ही समुद्र में भेजते थे तथा भारतीय जहाजों को समुद्र में सुरक्षा प्रदान करते थे
पुर्तगालियों का भारत में प्रभाव-
पुर्तगालियों ने 1556 ईस्वी में गोवा में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की
पुर्तगालियों ने भारत में स्थापत्य कला की गोथिक शैली प्रारंभ की
पुर्तगालियों ने भारत में जहाज का निर्माण शुरू किया
भारत में तंबाकू, अफीम, मस्का और आलू की खेती प्रारंभ की
भारत में ईसाई मिशनरियो का आगमन
पुर्तगालियों का भारत में स्थायित्व प्राप्त नहीं करने के कारण
पुर्तगाली धार्मिक रूप से असहिष्णु थे
अरब यात्रियों ने इनका विरोध किया
पुर्तगाली जबरन धर्मांतरण करवाते थे
इनका ध्यान दक्षिण अमेरिका पर लगा था क्योंकि उन्हें ब्राजील में सोने के खान मिल गई
डच (हॉलैंड)
पहला डच यात्री जो भारत आया – कॉर्नेलिस डे हाउटमैन
1602 ईस्वी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की तथा 1605 ईस्वी में मसूलीपटनम (आंध्र प्रदेश) में पहली फैक्ट्री स्थापित की
भारत में डचों का मुख्य उद्देश्य काली मिर्च और मसाले के व्यापार पर एकाधिकार करना था
1641 ईस्वी में डचों ने पुर्तगालियों से मलक्का छीन लिया
भारत में डचों का मुख्यालय नागपट्टनम था
1653 ईस्वी में चिनसुरा (बंगाल) में फैक्ट्री स्थापित की, इस फैक्ट्री को गुस्तावस फोर्ट कहा जाता था
चिनसुरा मे डचों ने 1653 ईस्वी में गुस्तावस नामक किले का निर्माण किया तथा 1663 ईस्वी में पुर्तगालियो को पराजित कर कोचिन में फोर्ट विलियम नामक किले का निर्माण किया
1759 इसमें में अंग्रेजों ने हुगली के निकट वेदरा का युद्ध में डचों को पराजित किया
डच अंग्रेजों के सामने नहीं टिक पाए और इंडोनेशिया पर अपना ध्यान केंद्रित किया
अंग्रेज
1599 में जॉन मिडेन हाल नमक ब्रिटिश यात्री थल मार्ग से भारत पहुंचा, वह 7 वर्ष तक भारत रहा
भारत में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों में सर्वाधिक सफलता अंग्रेजों को मिली
31 दिसंबर 1600 को ईस्ट इंडिया कंपनी (द कंपनी एंड गवर्नर ऑफ मरचेंट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इन टु द ईस्ट इंडीज) की स्थापना की
शुरुआत में महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने 15 वर्ष का अधिकार पत्र प्रदान किया, जिसे बाद में जेम्स प्रथम ने 1609 ईस्वी में अनिश्चितकाल तक बढ़ा दिया तथा यह भी प्रावधान किया कि इसे 2 वर्ष पूर्व सूचना देकर समाप्त भी किया जा सकता था (कालांतर में इसे 20-20 वर्ष बढ़ाया गया)
ईस्ट इंडिया कंपनी एक निजी कंपनी थी, जिसमें 217 शेयर होल्डर्स थे
कंपनी का नारा- भूभाग नहीं व्यापार था
1608 ईस्वी में कंपनी प्रतिनिधि के रूप में कैप्टन हॉकिंस हेक्टर नामक जहाज से सूरत पहुंचा तथा मुगल बादशाह जहांगीर से आगरा में मिलने आया
हॉकिंस फारसी/ तुर्की भाषा का जानकार था, जहांगीर ने इसे 400 मनसब दिया, परंतु व्यापारिक रियायतें नहीं दी
1608 ईस्वी में सूरत में प्रथम फैक्ट्री की स्थापना की
1612 ईस्वी में कैप्टन बेस द्वारा सूरत बंदरगाह को जीत कर पुर्तगालियों का एकाधिकार समाप्त कर दिया
1611 ईस्वी में मसूलीपट्टनम में फैक्ट्री की स्थापना की जो अंग्रेजों की पूर्वी तट पर प्रथम फैक्ट्री थी
सर टॉमस रो 1616 ईस्वी में जहांगीर से अजमेर में मिला तथा 3 वर्ष तक मुगल दरबार में रहने के बाद मुगल साम्राज्य में व्यापार की अनुमति प्राप्त हुई (टॉमस रो की पुस्तक- पूर्वी दीपों की यात्रा)
1632 ईस्वी में गोलकुंडा के सुल्तान ने 1500 पैगोड़ा वार्षिक के बदले सुनहरा फरमान दिया
1633 ईस्वी में पूर्वी तट पर हरिहर (उड़ीसा) में फैक्ट्री की स्थापना की
अंग्रेजो ‘फ्रांसिस डे’ ने चंद्र गिरी के राजा दरमेला वेंकटप्पा से चेन्नई नामक गांव खरीदा तथा 1639 ईस्वी में मद्रास में फैक्ट्री की स्थापना की 1641 में फोर्ट सेंट जॉर्ज बनाया जो भारत में अंग्रेजों का प्रथम किला एवं प्रथम प्रेसीडेंसी थी
मद्रास फैक्ट्री का संस्थापक फ्रांसिस डे था
1651 ईस्वी में ग्रेवियन वाटन ने शाहसूजा से अनुमति लेकर हुगली नामक स्थान पर प्रथम अंग्रेज कारखाने की स्थापना की
1661 ईस्वी में पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन ब्रेगाजा का विवाह इंग्लैंड के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय से हुआ जिसमें बॉम्बे दहेज में दिया गया (10 पॉन्ड के वार्षिक किराए पर चार्ल्स द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया)
गेराल्ड आंगियार को बॉम्बे का संस्थापक माना जाता है तथा उन्होंने 1668 ईस्वी में बॉम्बे में फैक्ट्री की स्थापना की
कंपनी ने जमीदार इब्राहिम खा से ₹1200 में सुतानाती, कलिकाता, तथा गोविंदपुर को मिलाकर आधुनिक कलकता की नींव तथा 1699 में जॉब चारनाक ने नींव डाली और फोर्ट विलियम किला बनाया
इसमें चार्ल्स आयर को कलकता (फोर्ट विलियम) का पहला गवर्नर बनाया गया
1717 ईस्वी में जॉन सर्मन के नेतृत्व में एक दूत मंडल मुगल बादशाह फरुखसियर से मिला जिसमें डॉ विलियम हैमिल्टन था, जिसे बादशाह को भयानक बीमारी से मुक्ति दिलाई तत्पश्चात बादशाह ने फरमान जारी कर व्यापारिक रियायत दी
₹10,000 में सूरत बंदरगाह से व्यापार की छूट
₹3000 वार्षिक से बंगाल में व्यापार की छूट
कलकता में 38 गांव की भूमि
अंग्रेजों के बॉम्बे टकसाल के सिक्कों को मान्यता
इतिहासकार और्म ने फरुखसियर के फरमान को कंपनी का मैग्नाकार्टा कहा
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्यालय- कलकता
डेनिश
डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना- 1616 ईस्वी में हुई
कंपनी ने 1620 में त्रैकोबार (तमिलनाडु) में व्यापारिक कोठी स्थापित की तथा 1676 में सिरामपुर (बंगाल) में भी व्यापारिक कोठी स्थापित की
कंपनी का मुख्यालय- सिरामपुर (बंगाल)
1845 ई को डेनमार्क ने कंपनी को अंग्रेजों को बेच दिया
फ्रांसीसी
1664 ईस्वी में लुई चौदहवे के मंत्री कॉल बर्ट ने फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की
यह एक सरकारी कंपनी थी
1668 ईस्वी में फ्रेंको कैरो ने सूरत में पहले फैक्ट्री स्थापित की
1669 में मसूलीपट्नम में दूसरे फैक्ट्री की स्थापना की
1673 ईस्वी में फ्रेंको मार्टिन ने पुडुचेरी गांव में पांडिचेरी नामक फ्रेंच बस्ती बसाई
यहां पर फोर्ट लुई की स्थापना की तथा कंपनी का मुख्यालय स्थापित किया
बंगाल में चंद्र नगर बस्ती बनाई जिसे गुस्टावुस फोर्ट भी कहा जाता था
पांडिचेरी पर 1693 ईस्वी में डचो ने अधिकार कर लिया परंतु 1697 ईस्वी में रिजविक संधि के तहत पांडिचेरी को फ्रांसीसियों को वापस लौटाना पड़ा
अंग्रेज फ्रांसीसी संघर्ष
कोरोमंडल तट पर स्थित कर्नाटक के लिए अंग्रेजों और फ्रांसीसी कंपनी के बीच तीन युद्ध हुए-
प्रथम कर्नाटक युद्ध (1746 से 1748)
तात्कालिक कारण- अंग्रेज कैप्टन बर्नेट द्वारा फ्रांसीसी जहाज पर अधिकार कर लेने के कारण (यहां युद्ध ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध का परिणाम था) फ्रांसीसी गवर्नर डुप्ले और ला बुर्दने ने मिलकर मद्रास को घेर लिया
एक्स ला शॉपेल (1848 ई) की संधि द्वारा युद्ध समाप्त हुआ
दूसरा कर्नाटक युद्ध (1749 से 1754)
कारण- कर्नाटक और हैदराबाद के उत्तराधिकार को लेकर
पांडिचेरी की संधि (1755 ई) के तहत युद्ध समाप्त हुआ
इस युद्ध के अंत में अंग्रेजों की जीत हुई
तीसरा कर्नाटक युद्ध (1756 से 1763)
कारण- कनाडा पर अधिकार के लिए अंग्रेजों का फ्रांसीसियों के साथ 7 वर्ष तक संघर्ष चला
1760 में अंग्रेज सेनापति आयर कोट ने लाली के नेतृत्व वाली फ्रांसीसी सैना को वांडीवाश के युद्ध में पराजित किया
अंततः 1761 में अंग्रेजों ने पांडिचेरी पर अधिकार कर लिया