राजस्थान का भौतिक स्वरुप | Rajasthan Geography (राजस्थान का भूगोल)

Rajasthan Geography (राजस्थान का भूगोल): ऐतिहासिक घटनाक्रम, भौतिक विभाग, राजस्थान की मिट्टिया, जलवायु एवं ऋतुए, प्राकृतिक वनस्पति, अपवाह तंत्र, खारे पानी की झीले, मीठे पानी की झीले, बांध और परियोजनाएं, कृषि और उद्यानिकी, पशुधन, जनसँख्या और साक्षरता, शिक्षा और शिक्षण संस्थान, चिकित्सा, उद्योग, खनिज, ऊर्जा, प्राकृतिक तेल और गैस , सहकारी तंत्र, खेलकूद, पर्यटन, परिवहन, राष्ट्रीय पार्क और अभ्यारण, ऐतिहासिक परिद्रस्य , किले, राजस्थान की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्थिति, प्रदेश की बोलिया, स्वतंत्रता संग्राम, एकीकरण, राजस्थान के  किसान आंदोलन, स्वतन्त्रा सेनानी, वैज्ञानिक शोध, जातिया और जनजातिया, जन जीवन, राजस्थानी कहावतें, संत सम्प्रयदाय, लोक देवता, लोकदेविया, धार्मिक स्थल, चित्रकला, मेले और त्योहार, रीतिरिवाज़ , लोक प्रथाएं, खान पान, वेशभूषा और आभूषण , हस्त कला, लोकनाट्य, लोक वाद्य यन्त्र, जिला प्रशासन , वैधानिक संस्थाए, पंचायती राज, पप्रमुख योजनाए और कार्यक्रम, विविध   

राजस्थान का भौतिक स्वरुप

राजस्थान का भौतिक स्वरुप

Rajasthan Geography (राजस्थान का भूगोल)

राजस्थान का भौतिक स्वरूप

राजस्थान के भौतिक स्वरूप को निम्न भागों में वर्गीकृत किया गया है -
  1. पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश
  2. अरावली पर्वतीय प्रदेश
  3. पूर्वी मैदानी प्रदेश
  4. दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश

पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश के उपभाग

a. शुष्क रेतीला मैदान

  • बालू का स्तूप युक्त प्रदेश
  • बालों का स्तूप मुक्त प्रदेश

b. अर्ध शुष्क प्रदेश

  • घग्गर प्रदेश
  • शेखावाटी प्रदेश
  • नागोरी उच्च भूमि
  • गोड़वाड़ प्रदेश

अरावली पर्वतीय प्रदेश के उपभाग

  • a. उत्तरी अरावली
  • b. मध्य अरावली
  • c. दक्षिणी अरावली

पूर्वी मैदानी प्रदेश के उपभाग

a. चंबल बेसिन

  • बीहड़ भूमि

b. बनास बाणगंगा बेसिन

  • पिंडमांड का मैदान
  • खेराड प्रदेश
  • रोही का मैदान

c. माही बेसिन

  • छप्पन का मैदान
  • कांठल का मैदान
  • वागड़ प्रदेश

दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश के उपभाग

  • a. विंध्य कगार भूमि
  • b. दक्कन का पठार

पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश (थार का मरुस्थल)

  1. उत्पत्ति
  2. विस्तार
  3. लंबाई चौड़ाई ऊंचाई
  4. विशेषताएं
  5. वर्गीकरण

उत्पत्ति

  • पूर्व में अंगारा लैंड (स्थलमंडल) तथा गोंडवाना लैंड (स्थलमंडल) के मध्य टेथिस सागर (जल मंडल) था।
  • फिर धीरे-धीरे टेथिस सागर मरुस्थल में परिवर्तित हो गया।
  • प्लिस्टिनो काल में 33 सागर के अवशेष के रूप में पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश की उत्पत्ति हुई।
  • पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में खारा पानी तथा प्लाया झीले टेथिस सागर के अवशेष है।

पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश का विस्तार

  • पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश का क्षेत्रफल 61.11 प्रतिशत है।
  • पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश में राजस्थान के 40% जनसंख्या निवास करती है।
  • पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश की लंबाई लगभग 640 किलोमीटर तथा चौड़ाई 340 किलोमीटर है।

पश्चिम में मरुस्थलीय प्रदेश के विशेषताएं

  • विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता वाला मरुस्थल, जिसे हम थार के मरुस्थल के नाम से जानते हैं।
  • थार के मरुस्थल के शुष्क प्रदेश में 0 से 20 सेंटीमीटर तक तथा अर्ध शुष्क प्रदेश में 20 से 40 सेंटीमीटर तक वार्षिक वर्षा होती है।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • ग्रीष्म ऋतु में तापमान बढ़ने पर वायुदाब कम हो जाती है, इस प्रकार भारत में वर्षा होती है।
  • थार का मरुस्थल भारत में “निम्न वायुदाब का केंद्र” कहलाता है।
  • समुद्र की सतह पर वायुदाब सबसे अधिक होता है।
  • थार का मरुस्थल भारत में मानसून को आकर्षित करता है।
  • राजस्थान में रेतीली बलुई मिट्टी का विस्तार है, जिसको हम एंटिसोल के नाम से जानते हैं।
  • पश्चिमी मरुस्थल के मुख्य नदी लूनी नदी है।
  • जीरोफाइट्स, मरुद्भिद वनस्पति पश्चिमी मरुस्थल में पाई जाती है।
  • 50 सेमी वार्षिक वर्षा रेखा मरुस्थल की पूर्वी सीमा को निर्धारित करती है।
  • 25 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा रेखा मरुस्थल को दो बराबर भागों में बांटती है।

पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश का वर्गीकरण

  1. शुष्क रेतीला मैदान
  • स्तूप मुक्त प्रदेश।
  • बालूका स्तूप मुक्त प्रदेश (पथरीला और चट्टानी)
  • स्तूप मुक्त प्रदेश हमादा के नाम से प्रसिद्ध।
  • इसका विस्तार पोकरण से बालोतरा और फलोदी तक है।
  • पोकरण और बालोतरा के मध्य अवशिष्ट पहाड़ियां स्थित है, जिनको हम मंगरा के नाम से जानते हैं।

बालोतरा

  • इस क्षेत्र में सौर ऊर्जा के विपुल संभावना है, यह सोलर एनर्जी एंटरप्राइजिंग जॉन (SEEZ) कहलाता है

लाठी सीरीज

  • पोखरण और फलोदी के मध्य भूगर्भीय जल पट्टी उपस्थित है, जिसको हम लाठी सीरीज के नाम से जानते हैं।
  • यहां पर सेवण घास पाई जाती है, जिसका प्रयोग गोडावण भोजन के रूप में करते हैं।

पारिस्थितिक संतुलन

  • पारिस्थितिक संतुलन का लाठी सीरीज एक अच्छा उदाहरण है।

चांदन नलकूप

  • इस नलकूप के मदद से भूगर्भीय जल की पूर्ति होती है, चांदन नलकूप को “थार के घड़े” के नाम से जाना जाता है।

प्लाया झीलें

  • अन्य नाम – खडीन, टॉड झील और रन
  • दो बालू का स्तूपों के मध्य निम्न भाग पर एक अस्थाई झील का निर्माण होता है, जिसे हम प्लाया झील कहते हैं।
  • जैसलमेर में सर्वाधिक प्लाया झीलें पाई जाती है।
  • प्लाया झील में खारा पानी होता है, इसीलिए इसे टॉड झील कहते हैं।
  • झील के सूखने पर जो दलदली क्षेत्र बनता है उसे रन कहते हैं।
  • इस क्षेत्र में की गई कृषि “खड़ीन” कहलाती है।
  • सर्वाधिक खड़ीन राजस्थान (जैसलमेर) में उपस्थित है।
  • जल स्वावलंबन अभियान 27 जनवरी 2016 को प्रारंभ किया गया। जिसकी “थीम परंपरागत स्रोतों का संरक्षण” थी।
  • जैसलमेर में खड़ीन कृषि पालीवाल ब्राह्मणों के द्वारा की जाती है।

राजस्थान में मरुस्थल के प्रकार

  • दुर्ग – संपूर्ण
  • रेग मरुस्थल – मिश्रित मरुस्थल
  • हमादा – पथरीला मरुस्थल
  • लघु मरुस्थल – कच्छ के रन से बीकानेर के मध्य का मरुस्थल।

राजस्थान में बालूका स्तूपों के प्रकार

  1. अनुदैर्ध्य बालुका स्तूप / पवनानुवर्ती / सीफ
  • पवन की दिशा के समानांतर अथवा अनुदिश बनने वाले बालुका स्तूप।
  • राजस्थान में सबसे उंचे बालुका स्तूप (60 मी)
  1. अनुप्रस्थ बालुका स्तूप
  • पवन की दिशा के लंबवत बनने वाले बालुका स्तूप
  • समकोण पर बनते हैं
  1. बरखान
  • वायु की गति के कारण गतिशील / अर्धचंद्राकार बालुका स्तूप बरखान कहलाते हैं।

प्रसिद्ध बरखान के उदाहरण

  • भालेरी, चुरु
  • नीम का थाना, सीकर
  • रावतसर, हनुमानगढ़
  • बालोतरा, बाड़मेर
  • ओसियां, जोधपुर
मरुस्थलीकरण के लिए सर्वाधिक उत्तरदाई बालुका स्तूप, "बरखान बालुका स्तूप" है
उक्त तीनों बालुका स्तूप पवन की गति के कारण बनते हैं।

आकृति के कारण प्रसिद्ध बालुका स्तूप

  1. पैराबोलिक (परवलयाकार)
  2. तारा
  3. शब्रकाफीज

अर्धशुष्क प्रदेश

  • घग्गर मैदान
  • प्रमुख जिले
गंगानगर हनुमानगढ़ का क्षेत्र
घग्गर नदी द्वारा निर्मित मैदानी क्षेत्र "नाली" कहलाता है।

शेखावाटी क्षेत्र

  • चुरु, झुन्झनू और सीकर का क्षेत्र
आंतरिक प्रवाह का चित्र
  • यहां कांतली नदी बहती है।
  • शेखावाटी क्षेत्र में बने कच्चे कुएं “जोहड” कहलाते हैं।
  • शेखावाटी क्षेत्र में बने पक्के कुएं “नाडा” कहलाते हैं।
  • शेखावाटी क्षेत्र में बने छोटे तालाब “सर” कहलाते हैं।

नागोरी उच्च भूमि

  • अरावली से पृथक अवशिष्ट पहाड़ी, नागोरी उच्च भूमि के नाम से जानी गई।

नागोरी उच्च भूमि की श्रेणियां

  1. मकराना श्रेणी – सफेद मार्बल के लिए प्रसिद्ध
  2. मांगलोद श्रेणी – जिप्सम के लिए प्रसिद्ध
  3. जायल श्रेणी – फ्लोराइड युक्त जल के लिए प्रसिद्ध

लूनी बेसिन

छप्पन की पहाड़ियां

  • सिवाणा से बालोतरा के मध्य 56 पहाड़ियां स्थित है।
  • बालोतरा पर्वत पर “नाकोड़ा भैरव का मंदिर” स्थित है

हल्दिया महादेश्वर

  • पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान।
  • पश्चिमी राजस्थान का माउंट आबू कहलाता है।
  • लूनी नदी का प्रवाह जालौर में “नेहड़ा” कहलाता है।

अरावली पर्वत

उत्पत्ति

  • प्री कैंब्रियन काल में ‘गोंडवाना लैंड’ से हुई।
  • धारवाड़ समय में इसकी उत्पत्ति हुई।
  • इसका क्षेत्रफल 9.1% है।

विशेषताएं

  • विश्व में प्राचीनतम वलित पर्वतमालाओं में से एक।
  • महान भारतीय जल विभाजक रेखा का कार्य करती है। (50 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा जल रेखा तथा नदी जल बटवारों के कारण)
  • इस पर्वतमाला में ग्रेनाइट / प्राथमिक चट्टाने पाई जाती है, जिसमें धात्विक खनिज मिलते हैं।
  • वन एवं वन्य जीवों का अधिकतम प्रतिशत इसी पर्वतमाला में है।
  • सबसे ज्यादा वन उदयपुर में है।
आदिवासी जनजातियों की आश्रय स्थल अरावली पर्वतमाला है।
सहरिया के अलावा अन्य सभी जनजातीय यहां पाई जाती है।

अरावली का वर्गीकरण

उच्चावत के आधार पर

उत्तरी अरावली

  • इसका विस्तार जयपुर अलवर सीकर इत्यादि जिलों में है।
  • उत्तरी अरावली की प्रमुख चोटियां रघुनाथगढ़ तथा -खो है।
पर्वतों के मध्य स्थित संकीर्ण मार्ग "दर्रा" कहलाता है।

प्रमुख चोटियां

  1. रघुनाथगढ़ (1055 मी)
  2. खो (920 मी)
  3. बरवाड़ा (786 मी)
  4. बीबोई (780 मी)

मध्य अरावली

  • विस्तार – अजमेर इत्यादि जिलों में।

प्रमुख चोटियां

  1. मेरिया जी, टॉडगढ़ (933 मी)
  2. तारागढ़ (873 मी)
  3. नाग पहाड़ (795 मी)

दक्षिणी अरावली

  • विस्तार – उदयपुर सिरोही राजसमंद इत्यादि जिलों में।

प्रमुख चोटियां

  1. गुरु शिखर (1722 मी) – ‘संतों का शिखर’ नाम से प्रसिद्ध
  2. सेर (1597 मी)
  3. दिलवाड़ा (1442 मी)
  4. जरघा (1431 मी)
  5. अचलगढ़ (1311 मी)
  6. कुंभलगढ़ (1244 मी)
  7. ऋषिकेश (1017 मी)
  8. कमलनाथ (1001 मी)
  9. सज्जनगढ़ (938 मी)

गिरवा

  • उदयपुर के आसपास अर्द्ध चंद्राकार पहाड़ियां।
  • NH 27 – देबारी से गुजरा हुआ चित्तौड़गढ़ से गोगुंदा को जोड़ता है।
  • उदयपुर से पिंडवाड़ा हाथी दर्रा से जुड़ता है।

केवड़ा की नाल

  • जयसमंद से उदयपुर के मध्य स्थित है।

फुलवारी की नाल

  • कोटडा और उदयपुर को जोड़ता है।
  • फुलवारी की नाल अभ्यारण भी यहीं पर स्थित है।

देसूरी की नाल

  • पाली से आमेट के मध्य स्थित है।

सोमेश्वर दर्रा

  • पाली से रणकपुर के मध्य स्थित है।

बर दर्रा

  • मारवाड़ को मेवाड़ से जोड़ता है।
  • NH-25 यहीं पर स्थित है।

शिवपुरी दर्रा

  • ब्यावर से आमेर के मध्य स्थित है।
  • शिवपुरी से सुराघाट को जोड़ता है।

सुराघाट दर्रा

  • सुराघाट से अजमेर को जोड़ता है।
गोरम घाट और कामली घाट
रेल मार्ग पर स्थित।

अरावली के प्रमुख पठार

  1. उड़िया का पठार – सिरोही (राजस्थान का सबसे ऊंचा पठार)
  2. आबू का पठार – सिरोही
  3. भोराट का पठार – गोगुंदा से कुंभलगढ़ तक

ऊपर माल का पठार

  • बिजोलिया (भीलवाड़ा) से भैसरोडगढ़ (चित्तौड़) के मध्य स्थित।

भूमठ का पठार

  • उदयपुर बांसवाड़ा के मध्य का पठार।
  • एकी आंदोलन के कारण प्रसिद्ध।

लसाडिया का पठार

  • उदयपुर प्रतापगढ़ के मध्य स्थित।
काकनवाड़ी का पठार
अलवर में स्थित
भानगढ़ दुर्ग के लिए प्रसिद्ध

प्रमुख पहाड़ियां

गिरवा की पहाड़ियां

  • उदयपुर में स्थित
  • उदयपुर के आसपास तश्करीनुमा अर्धचंद्राकार पहाड़िया।

भाकर पहाड़ियां

  • पूर्वी सिरोही में तीव्र ढाल वाली पहाड़ियां

मेवल पहाड़िया

  • डूंगरपुर बांसवाड़ा के मध्य की पहाड़ियां।

पूर्वी मैदानी प्रदेश

  • राजस्थान का सबसे उपयोगी प्रदेश।
  • नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से मैदाने का निर्माण होता है।
  • इन नदियों द्वारा जलोढ़ मिट्टी लाई जाती है।
  • जलोढ़ मिट्टी सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टी होती है।
  • पूर्वी मैदानी प्रदेश सर्वाधिक जनसंख्या और सर्वाधिक जन घनत्व वाला प्रदेश कहलाता है।
  • राजस्थान के 23 प्रतिशत भाग में फैला हुआ है।
  • राजस्थान की 40% जनसंख्या यही निवास करती है।

उत्पत्ति

  • प्लिस्टोसीन काल में गंगा तथा यमुना नदी द्वारा लाई गई मृदा से निर्मित

चंबल बेसिन

  • पूर्वी मैदानी में प्रदेश के सवाई माधोपुर करौली धौलपुर इत्यादि जिले सम्मिलित।
  • यहां पर स्थित घने जंगल, “बीहड़” कहलाते हैं।
  • चंबल नदी के कम तथा अधिक बहाव के कारण यहां पर अवनालिकाएं बन जाती है।
  • अवनालिकाओं के कारण आकृति बनती है, इस प्रकार बनने वाली स्थलाकृति, उत्खात स्थलाकृति कहलाती है।
  • सर्वाधिक बीहड़ का विस्तार धौलपुर में है।
  • करौली को “बीहड़ की रानी” के नाम से जाना जाता है।
  • इस क्षेत्र के प्रमुख जिले करौली सवाई माधोपुर धौलपुर है।
  • इस क्षेत्र में कंदरा तथा डांग कार्यक्रम चलाया गया।
बनास बाणगंगा बेसिन

पिण्डमांड का मैदान

  • खेराड प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध। (जहाजपुर भीलवाड़ा से टोंक तक का क्षेत्र)
  • बनास नदी खमनोर की पहाड़ियों (राजसमंद) से निकलती है।

रोही का मैदान

  • जयपुर से भरतपुर के मध्य का क्षेत्र
  • यह क्षेत्र गेहूं तथा सरसों के लिए उपयुक्त हैं।

माही बेसिन

  • माही बेसिन का विस्तार बांसवाड़ा, डूंगरपुर तथा प्रतापगढ़ में है।

वागड़ प्रदेश

  • डूंगरपुर बांसवाड़ा के मध्य का पहाड़ी क्षेत्र।

छप्पन का मैदान

  • माही नदी के तट पर 56 गांव तथा नालों का समूह।

कांठल का मैदान

  • माही नदी के किनारे प्रतापगढ़ का तटीय भाग (नदी के किनारे)
माही बेसिन को संयुक्त रूप से पुष्प प्रदेश कहा गया है (क्योंकि यहां पर महुआ अधिक होता है, महुआ के पुष्प से शराब बनाई जाती है।)

दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश (हाडोती का पठार)

  • इसका विस्तार कोटा, बूंदी, बांरा तथा झालावाड़ इत्यादि जिलों में है।
  • इसका क्षेत्रफल 6.8% है
  • इस क्षेत्र में 10% जनसंख्या निवास करती है

उत्पत्ति

  • क्रिटेशियस काल में निर्मित
  • ज्वालामुखी क्रिया में दरारी उद्घार से उत्पन्न

गोंडवाना लैंड

  • ज्वालामुखी क्रिया में दरारी उद्घार से उत्पन्न
  • लावा ठंडा होकर मिट्टी में बदल गया, इस प्रकार काली मिट्टी निर्मित हुई।

मध्यम काली मिट्टी

  • हाडोती के पठार में इस मिट्टी का जमाव है।
  • इस क्षेत्र की मुख्य नदी चंबल है।
  • इस नदी का ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है।
  1. विंध्य कगार भूमि – कोटा, बूंदी, बांरा
  2. दक्कन का पठार – झालावाड़

विंध्य कगार भूमि

  • विंध्याचल पर्वत (मध्य प्रदेश झारखंड के मध्य का क्षेत्र) के किनारे पर स्थित।
  • बूंदी में घोड़े के नाल जैसी पहाड़ियां पाई जाती है, जिनको रामगढ़ की पहाड़ियों के नाम से जानते हैं।

दक्कन का पठार

  • दक्षिण में मालवा के पठार का उत्तरी भाग

रामगढ़ की पहाड़ियां

  • बूंदी में घोड़े के नाल जैसी पहाड़ियां।

कुंडला की पहाड़ियां

  • कोटा में कुंडल के आकार के पहाड़ियां।

चंबल मैदान

  • इस क्षेत्र में नदी द्वारा निर्मित किया गया मैदान।

बांरा जिले का पूर्वी भाग

  • इस भाग पर एक उच्च भूमि क्षेत्र पाया जाता है, जिसे शाहबाद उच्च भूमि क्षेत्र कहलाता है।

दक्षिणी पूर्वी पठारी प्रदेश

  • अतः अधर प्रवाह क्षेत्र।
रचनात्मक दृष्टि से भारत के भौतिकी भाग
  1. मध्य का विशाल मैदान (पूर्वी मैदानी प्रदेश)
  2. महान मरुस्थल (थार का मरुस्थल)
  3. प्रायद्वीपीय पठार (अरावली और हाडोती का पठार)

क्रमानुसार उत्पत्ति

  • प्री कैंब्रियन – अरावली पर्वतमाला
  • क्रिटेएशियन – हाडोती का पठार
  • प्लीस्टोसीन – पूर्वी मैदानी प्रदेश और थार का मरुस्थल

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