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आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History)
1857 की क्रांति
1857 के विद्रोह के प्रमुख कारण-
राजनीतिक एवं प्रशासनिक कारण-
1857 की क्रांति की राजनीतिक कारणों में लार्ड वेलेजली की ‘सहायक संधि’ तथा लॉर्ड डलहौजी का ‘व्यपगत सिद्धांत’ प्रमुख था
सामाजिक एवं धार्मिक कारण
1850 ईस्वी में आए धार्मिक निर्योग्यता अधिनियम द्वारा ईसाई धर्म को ग्रहण करने वाले को पैतृक संपत्ति में अधिकार मिल गया इससे हिंदू समाज में असंतोष की भावना फैल गई
आर्थिक कारण
ब्रिटिश भू राजस्व नीतियों, यथा स्थाई बंदोबस्त, रैयतवाड़ी, महालवाड़ी व्यवस्था आदि के द्वारा किसानों का जमकर शोषण किया गया
सैन्य कारण
लॉर्ड कैनिंग के समय 1856 में सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा किसी भी समय किसी भी स्थान पर, समुद्र पर भी सैनिकों का जाना अंग्रेजी आदेश पर निर्भर हो गया। यह भारतीयों के सामाजिक धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ था
*- 1857 के विद्रोह के दमन के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय फौज के नव गठन के लिए 'पील आयोग' का गठन किया गया, जिसने सेना के रेजीमेंटों को जाति, समुदाय और धर्म के आधार पर विभाजित कर दिया
तात्कालिक कारण-
दिसंबर 1856 में भारत सरकार ने पुरानी बंदूक ‘ब्राउन बेस’ के स्थान पर नई एनफील्ड राइफल्स जो अधिक अच्छी थी, प्रयोग करने का निश्चय किया इस नई राइफल से कारतूस के ऊपरी भाग को मुंह से काटना पड़ता था
1857 के विद्रोह का प्रारंभ
29 मार्च 1857 को 34वी रेजीमेंट, बैरकपुर के सैनिक मंगल पांडे ने चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग का विरोध किया तथा विद्रोह की शुरुआत कर दी
उसने सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट बॉन्ग एवं सार्जेण्ट मेजर ह्यूसन की गोली मारकर हत्या कर दी। 8 अप्रैल 1857 को सैन्य अदालत के निर्णय के बाद मंगल पांडे को फांसी की सजा दे दी गई, जो की 1857 की क्रांति का प्रथम शाहिद माना गया
1857 के विद्रोह के दौरान बैरकपुर में कमांडिंग ऑफिसर हैरसे थे
10 में 1857 को मेरठ छावनी में तैंनाव भारतीय सेना ने चर्बी युक्त कारतूस के प्रयोग से इनकार कर दिया और अपने अधिकारियों पर गोलियां चलाईं और विद्रोह प्रारंभ कर दिया
इस समय मेरठ में सैन्य छावनी के अधिकारी जनरल हैविट थे
1857 के विद्रोह का विस्तार –
दिल्ली
विद्रोह का आरंभ 10 में 1857 को मेरठ छावनी में हुआ। 20वीं नेटिव इन्फेंट्री (N.I.) के सिपाहियों ने अपने अधिकारियों पर गोलियां चलाई और अपने साथियों को मुक्त करवा कर दिल्ली की और कुच किया तथा 11 में को मेरठ के विद्रोही दिल्ली पहुंचे और 12 में 1857 को उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया तथा मुगल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय को पुनः भारत का सम्राट और क्रांति का नेता घोषित कर दिया
बहादुर शाह द्वितीय को रंगून भेज दिया गया जहां 1862 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई
लखनऊ
जून 1857 में विद्रोह का प्रारंभ बेगम हजरत महल (महक परी के नाम से भी जानी जाती थी) के नेतृत्व में हुआ
कानपुर
5 जून 1857 को कानपुर अंग्रेजों के हाथ से निकल गया। यहां पर पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (धोंदूपंत) ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया
झांसी
झांसी में जून 1857 में रानी लक्ष्मीबाई (जन्म- वाराणसी, मृत्यु- ग्वालियर) के नेतृत्व में विद्रोह प्रारंभ हुआ
झांसी में ह्यूरोज की सेना से पराजित होकर वे ग्वालियर पहुंची। तात्या टोपे झांसी की रानी से जाकर मिले। झांसी की रानी सैनिक वेशभूषा में लड़ती हुई दुर्ग की दीवारों के पास वीरगति को प्राप्त हो गई
बिहार
जगदीशपुर में विद्रोह का नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया। कुंवर सिंह की मृत्यु के बाद विद्रोह का नेतृत्व इसके भाई अमर सिंह ने किया
फैजाबाद
फैजाबाद में विद्रोह का नेतृत्व अहमदूल्लाह ने किया, कैंपबेल ने यहां के विद्रोह को दबाया
इलाहाबाद
इलाहाबाद में जून के प्रारंभ में विद्रोह हुआ, जिसकी कमान मौलवी लिंकायत अली ने संभाली
बनारस
सामान्य जनता का विद्रोह
कर्नल नील द्वारा दमन
बरेली
बरेली में खान बहादुर खा ने विद्रोहियों का नेतृत्व किया और अपने आप को ‘नवाब’ घोषित किया
राजस्थान
राजस्थान में कोटा ब्रिटिश विरोधियों का प्रमुख केंद्र था। यहां जयदयाल और मेहराब खा ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया
असम
असम में विद्रोह की शुरुआत मनीराम दत्त ने की
उड़ीसा
उड़ीसा में संबलपुर के राजकुमार सुरेंद्र साई विद्रोहियों के नेता बने। 1862 ईस्वी में सुरेंद्र साइ ने आत्म समर्पण कर दिया
1857 के विद्रोह के महत्वपूर्ण तथ्य
विद्रोह के समय एक झंडा गीत की रचना हुई, जिसे अजीमुल्लाह ने लिखा था
लंदन टाइम्स के पत्रकार ‘माइकल रसेल’ ने इस विद्रोह का सजीव वर्णन किया
दक्षिण भारत में स्वतंत्रता संग्राम (1857 की क्रांति)
क्रांतिकारी और प्रमुख नेतृत्वकर्ता
गोलकुण्डा- चिंता भूपति
सतारा- रंगा बापूजी गुप्ते
हैदराबाद- सोना जी पंडित, रंगा राव पांगे और मौलवी सैयद अलाउद्दीन
कर्नाटक- भीमराव, मुंडर्गी, और छोटा सिंह
कोल्हापुर- अण्णाजी फडणवीस
मद्रास- गुलाम गोष और सुल्तान बख्श
चिंगल फुट- अरणागिरी और कृष्णा
कोयंबटूर- मूलबागल स्वामी
केरल – मुल्ला सली, कौन जी सरकार और विजय कुदारत कुंजी मामा
विद्रोह का परिणाम
1 नवंबर 1858 को इलाहाबाद में आयोजित दरबार में लॉर्ड कैनिंग (1857 की क्रांति के समय गवर्नर जनरल) ने महारानी विक्टोरिया के उद्घोषणा को पढा। उद्घोषणा में भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर भारत का शासन सीधे क्राउन के अधीन कर दिया गया
1857 के विद्रोह के बारे में इतिहासकारों के मत
आरसी मजूमदार- 1857 का विद्रोह न तो प्रथम था, न हीं राष्ट्रीय था और यह न ही स्वतंत्रता संग्राम था
सीले- यह पूर्णतया देशभक्ति रहित और स्वार्थी सिपाही विद्रोह था