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आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History)
सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन
राजा राममोहन राय
जन्म- 1772 ई (पश्चिम बंगाल का राधा नगर)
ब्रह्म समाज की स्थापना अगस्त, 1828 को कलकता में राजा राममोहन राय द्वारा की गई थी राय को भारत में "पत्रकारिता का अग्रदूत" / "भाषाई प्रेस का प्रवर्तक" माना जाता है
राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित संगठन
आत्मीय सभा- 1815 (डच घड़ीसाज डेविड हेयर के सहयोग से)
वेदांत कॉलेज- 1825
राजा राममोहन राय की पुस्तके-
तुहफात-उल-मुवाहिदीन (फारसी 1809 ईस्वी में) – एकेश्वरवादियों को उपहार
द प्रिसेप्टस ऑफ़ जीसस द गाइड टू पीस एंड हैप्पीनेस
राजा राममोहन राय के समाचार पत्र-
मिरातुल अखबार (फारसी)
संवाद कौमुदी (बांग्ला)
1829 ईस्वी में सती प्रथा पर रोक लगवाई (अधिनियम 17)
1833 ईस्वी में ब्रिस्टल (इंग्लैंड) में इनका निधन हो गया और ब्रिस्टल में इनका स्मारक बना हुआ है
राजा राममोहन राय ने अवतारवाद, जातिवाद, मूर्ति पूजा, बाल विवाह, बहु विवाह, सती प्रथा, धार्मिक अंधविश्वास आदि का विरोध किया था
ब्रह्म समाज की स्थापना में द्वारिका नाथ टैगोर प्रमुख सहयोगी थे। ब्रह्म समाज में प्रथम सचिव ताराचंद चक्रवर्ती थे। प्रसन्न कुमार टैगोर और चंद्रशेखर देव उनके प्रमुख अनुयाई थे
1843 ईस्वी में देवेंद्र नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज का संचालन किया
1839 ईस्वी में तत्त्वबोधिनी सभा की स्थापना देवेंद्र नाथ टैगोर ने की
देवेंद्र नाथ टैगोर की पुस्तक ‘ब्रह्म धाम’ थी
तत्त्वबोधिनी पत्रिका के संपादक अक्षय कुमार दत्त थे।
केशव चंद्र सेन को ब्रह्म समाज का आचार्य नियुक्त किया
केशव चंद्र सेन ने भारतीय ब्रह्म समाज का गठन किया तथा टैगोर का ब्रह्म समाज ‘आदि ब्रह्म समाज’ कहलाया
केशव चंद्र सेन ने मैत्री संघ (संगत सभा) की स्थापना की तथा इंडियन मिरर (समाचार पत्र) का प्रकाशन किया
वेद समाज
केशव चंद्र सेन के कहने पर श्री धरलू नायडू ने वेद समाज की स्थापना 1864 ईस्वी में की
इसे ‘दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज’ कहते हैं
विश्वनाथ मुदलियार भी इसके प्रमुख नेता थे
प्रार्थना समाज
1867 ईस्वी में बंबई में केशव चंद्र सेन के सहयोग से आत्माराम पांडुरंग ने प्रार्थना समाज की स्थापना की
संस्थापक- महादेव गोविंद रानाडे, आत्माराम पांडुरंग, R.G. भंडारकर,N.G. चंद्रावरकर
महादेव गोविंद रानाडे
इन्हें ‘महाराष्ट्र का सुकरात’ कहते हैं
1870 ईस्वी में ‘पुना सार्वजनिक सभा’ तथा 1884 ईस्वी में ‘दक्कन एजुकेशनल सोसाइटी’ की स्थापना की थी
महादेव गोविंद रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले के राजनीतिक गुरु थे जो महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु थे
दयानंद सरस्वती
दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 ईस्वी में गुजरात के मोरवी जिले में हुआ था
इनका वास्तविक नाम मूलशंकर था
मूल शंकर के प्रथम गुरु पूर्णानंद थे जिन्होंने इनको ‘दयानंद सरस्वती’ नाम दिया, जबकि उनके द्वितीय गुरु विरजानंद जी थे जिन्होंने इनको वेदों का ज्ञान दिया
यह ऋग्वेद को प्रामाणिक ग्रंथ मानते थे
‘वेदों की ओर लोटों’ का नारा दिया
दयानंद सरस्वती प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने ‘स्वदेशी’ नारा दिया
दयानंद सरस्वती ने 1875 ई को बंबई में आर्य समाज की स्थापना की
दयानंद सरस्वती की पुस्तके
सत्यार्थ प्रकाश (1874) – इस पुस्तक का लेखन हिंदी में हुआ, इसकी रचना उदयपुर में तथा प्रकाशन अजमेर में हुआ
अद्वैतमत का खंडन (1877 ई)
जोधपुर में नन्ही जान नामक महिला द्वारा दयानंद सरस्वती को जहर दे दिया गया, इस कारण 1883 ईस्वी में अजमेर में इनकी मृत्यु हो गई दयानंद सरस्वती के मृत्यु के बाद आर्य समाज दो भागों में विभक्त हो गया-
लाला लाजपत राय और हंसराज अंग्रेजी शिक्षा के समर्थक थे। अतः दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल और कॉलेज खोले गए
स्वामी श्रद्धानंद, लेखराम और मुंशीराम संस्कृत शिक्षा के समर्थक थे तथा इन्होंने वर्ष 1902 में हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की
स्वामी विवेकानंद
जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकता में हुआ। इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था
इनके पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी थी
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 5 में 1897 को कलकता के समीप वेल्लूर में रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद द्वारा की गई थी
विवेकानंद नाम खेतड़ी महाराजा अजीत सिंह ने दिया तथा वित्तीय सहायता देकर शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन (सितंबर 1893 ईस्वी में) में भेजा था
उन्होंने 1896 ईस्वी में न्यूयॉर्क में ‘वेदांत सोसाइटी’ की स्थापना की
स्वामी विवेकानंद की पत्रिकाएं-
प्रबुद्ध भारत (अंग्रेजी)
उद्बबोधन (बांग्ला)
थियोसोफिकल सोसायटी
थियोसोफिकल समाज की स्थापना 1875 ईस्वी में संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यूयॉर्क में रूसी महिला हेलन पेट्रोवना ब्लावत्सकी एवं अमेरिकन सैनिक अधिकारी H.S. अल्काट ने की
1882 ईस्वी में भारत में मद्रास के समीप अड्यार में इसका मुख्यालय स्थापित किया गया
एनी बेसेंट इसकी सदस्य के रूप में 1893 ईस्वी में भारत ई तथा वर्ष 1907 में थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी
1898 ईस्वी में बनारस में हिंदू कॉलेज की स्थापना की, जो वर्ष 1916 में मदन मोहन मालवीय जी के प्रयासों से बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में तब्दील हो गया
एनी बेसेंट के समाचार पत्र
कॉमन वील
न्यू इंडिया
यंग बंगाल आंदोलन
यंग बंगाल आंदोलन के प्रवर्तक हेनरी विवियन डेरो जिओ थे
हेनरी विवियन डेरो जिओ की संस्थाएं-
एकेडमिक एसोसिएशन
सोसाइटी फॉर द एक्विजिशन ऑफ़ जनरल नॉलेज
हेनरी विवियन डेरो जिओ के समाचार पत्र-
इंडिया
इंडिया गजट
कलकता साहित्य गजट
अलीगढ़ आंदोलन
अलीगढ़ आंदोलन के प्रवर्तक सर सैयद अहमद खा थे
यह 1857 ई के विद्रोह के समय कंपनी की न्यायिक सेवा में थे
इन्होंने 1857 ई के बाद अंग्रेजों के मन में मुसलमान के प्रति उत्पन्न अविश्वास को कम करने का प्रयास किया था
सर सैयद अहमद खा की संस्थाएं-
मुहम्मडन लिटरेरी सोसायटी (कलकता 1863 ई)
साइंटिफिक सोसायटी (1864 ई)
सर सैयद अहमद खा की पत्रिकाएं-
तहजीब उल अखलाक (सभ्यता और नैतिकता)
राजभक्त मुसलमान
सैयद अहमद खान प्रारंभ में हिंदू मुस्लिम एकता के कट्टर समर्थक थे [हिंदू और मुस्लिम एक सुंदर वधू (भारत) की दो आंखें हैं] लेकिन कालांतर में मुस्लिम हितों के अधिक पक्षपाती हो गए। (हिंदू और मुस्लिम न केवल दो राष्ट्र है अपितु विरोधी राष्ट्र है)
देवबंद आंदोलन (1867 ई)
1866 ईस्वी में देवबंद, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में इसकी स्थापना की गई
संस्थापक
रशीद अहमद गंगोही
मोहम्मद कासिम ननोतत्वी
वहाबी आंदोलन / वली उल्लाह आंदोलन
यह आंदोलन ईरान में अब्दुल वहाब ने शुरू किया था
इसे सैयद अहमद बरेलवी ने भारत में लोकप्रिय किया था
इसका मुख्यालय पटना में था
यह एक हिंसक आंदोलन था तथा ‘दार उल हब’ को ‘दार उल इस्लाम’ में बदलने का नारा दिया था
अहमदिया आंदोलन (1889 ई)
1889 ई को गुरुदासपुर (पंजाब) के कादिया नामक स्थान पर मिर्जा गुलाम अहमद द्वारा इसकी शुरुआत की गई
मिर्जा गुलाम अहमद अपने स्वयं को मुहम्मद साहब एवं कृष्ण का अवतार घोषित कर दिया
इनकी पुस्तक ‘बहरीन ए अहमदिया’ थी
रहनुमाए मज्ददायासन सभा (1851 ई)
इनकी स्थापना 1851 ईस्वी में नौरोजी फरदोनजी , दादा भाई नौरोजी, S.S. बंगाली आदि के प्रयासों से हुई
परमहंस मंडली
महाराष्ट्र में, 1849 में स्थापित परमहंस मंडली के संस्थापकों में मुख्य रूप से दादोबा पांडुरंग, मेहता जी दुर्गाराम तथा अन्य शामिल थे
सत्यशोधक समाज
इसकी स्थापना निम्न जातियों के कल्याण के लिए 1873 ईस्वी में ज्योति राव गोविंद राम फूले ने की थी
पुस्तक- गुलामगिरी, सार्वजनिक सत्य धर्म
उन्होंने दलित जाति के लड़के लड़कियों के लिए स्कूल खोले थे
शारदा सदन (1889 ई)
संस्थापक- पंडिता रमाबाई
आत्मसम्मान आंदोलन
वर्ष 1920 के दशक में V. रामास्वामी नायंकर उर्फ पेरियार ने इस आंदोलन को प्रारंभ किया
आत्मसम्मान आंदोलन में ब्राह्मणों के सर्वोच्चता को चुनौती दी गई तथा लोगों से ब्राह्मणवाद का विरोध करने के लिए आगे आने के लिए कहा गया
सिख धर्म सुधार आंदोलन
पश्चिमी तर्कसंगत विचारों का प्रभाव सिख अनुयायियों पर भी पड़ा
इससे पूर्व में सिख धर्म में सुधार हेतु बाबा दयाल दास द्वारा ‘निरंकारी आंदोलन’ चलाया गया
बाबा राम सिंह द्वारा नामधारी आंदोलन चलाया गया
1870 ईस्वी में अमृतसर में सिंह सभा का आंदोलन प्रारंभ हुआ
वायकोम सत्याग्रह
वायकोम सत्याग्रह एक प्रकार का गांधीवादी आंदोलन था
यह आंदोलन ब्राह्मणवाद के विरुद्ध तथा मंदिर में प्रवेश को लेकर चलाया गया था
यह एझवा वर्ग के उत्थान की बात करता था
19वीं सदी के अंत तक केरल में नारायण गुरु, N. कुमारन, T.K. माधवन जैसे बुद्धिजीवियों ने छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई
विधवा पुनर्विवाह
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों से लॉर्ड कैनिंग के समय परित हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 की धारा 15 के तहत विधवा विवाह को कानूनी मान्यता मिली
7 दिसंबर 1856 को कलकता में पहला कानून हिंदू पुनर्विवाह संपन्न हुआ
डीके कर्वे ने 1899 ई में पुणे में विधवा आश्रम की स्थापना की। कर्वे विधवा पुनर्विवाह संघ के सचिव थे
1850 ईस्वी में विष्णु शास्त्री पंडित ने ‘विधवा विवाह समाज’ की स्थापना की
महिला शिक्षा
ईसाई मिशनरीज ने 1819 ईस्वी में कलकता में तरुण स्त्री सभा की स्थापना की
J.D. बेथुन ने 1849 ईस्वी में कलकता में बालिका विद्यालय की स्थापना की
ईश्वर चंद्र विद्यासागर भी 35 से अधिक बालिका विद्यालयों की स्थापना से जुड़े थे
1906 में डीके कर्वे ने बंबई में भारतीय महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की
बाल विवाह
1872 ईस्वी में केशव चंद्र सेन के प्रयासों से सिविल मैरिज एक्ट पारित किया गया जिसके तहत लड़के एवं लड़की के विवाह की आयु क्रमशः 18 एवं 14 वर्ष तय की गई
इस अधिनियम द्वारा बहु पत्नी प्रथा को समाप्त किया गया
सती प्रथा
लॉर्ड विलियम बैंटिक के समय 1829 ईस्वी में सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया
प्रारंभ में इस बंगाल में लागू किया गया
अधिनियम को पारित करने में राजा राममोहन राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही
ठगी प्रथा
लॉर्ड विलियम बैंटिक ने ठगी प्रथा का उन्मूलन किया
इसके लिए उन्होंने एक अधिकारी कर्नल स्लिमेंन की नियुक्ति की
शिशु वध
शिशु वध सामान्यतः राजपूतों में प्रचलित था, जो कन्याओं के जन्म लेते ही उन्हें मार देते थे
गवर्नर जनरल जॉन शोर के समय में 1795 ईस्वी में तथा वेलेजली के समय 1804 के नियम तीन से शिशु वध को साधारण हत्या के रूप में माना जाने लगा
इस प्रकार शिशु वध धीरे-धीरे समाप्त हो गया
दास प्रथा
गवर्नर जनरल लॉर्ड एलनबरों ने 1843 ईस्वी में भारत में दास प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया
1833 के अधिनियम में निर्देश था कि दास प्रथा को समाप्त कर दिया जाएगा
प्रमुख सामाजिक और धार्मिक संगठन
संगठन (स्थापना वर्ष) स्थान (अध्यक्ष)
इंडियन रिफॉर्म संगठन (1870 ई) कलकता (केशव चंद्र सेन)
इंडियन नेशनल सोशल कॉन्फ्रेंस (1887 ई) महाराष्ट्र (महादेव गोविंद रानाडे)
सेवा सदन सोसायटी (1908 ई) (बहराम जी मालाबारी, दयाराम गिडूमल)
आर्य समाज (1875 ई) मुंबई (स्वामी दयानंद सरस्वती)
ब्रह्म समाज (1828 ई) बंगाल (राजा राममोहन राय)
आदि ब्रह्म समाज (1866 ई) कलकता (देवेंद्र नाथ टैगोर)
ब्रह्म समाज का इंडिया (1866 ई) कलकता (केशव चंद्र सेन)
आत्मीय सभा (1815 ई) बंगाल (राजा राममोहन राय)
साधारण ब्रह्म समाज (1878 ई) कलकता (शिवनाथ शास्त्री, आनंद मोहन बोस)
परमहंस सभा या मंडली (1849 ई) महाराष्ट्र (दादोबा पांडुरंग, जांबेकर शास्त्री)
प्रार्थना समाज (1867 ई), महाराष्ट्र (आत्माराम पांडुरंग, रानाडे)
वेदांत सोसाइटी (1896 ई) न्यूयॉर्क (स्वामी विवेकानंद)
रामकृष्ण मिशन (1897 ई) कलकता (स्वामी विवेकानंद)
तत्त्वबोधिनी सभा (1839 ई) बंगाल (देवेंद्र नाथ टैगोर)
थियोसोफिकल सोसायटी (1875 ई) न्यूयॉर्क (कर्नल आल्काटा मैडम ब्लावत्सकी)