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मराठा साम्राज्य
मराठा साम्राज्य
शिवाजी (1627-1680 ई.)
- जन्म – 20 अप्रैल, 1627 पूना के निकट शिवनेर के किले में हुआ।
- शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भौंसले और माता का नाम जीजाबाई था।
- शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास थे।
- 1637 ई. में शाहजी भौसले ने अपने पुत्र शिवाजी तथा पत्नी जीजाबाई को लेकर अपनी पैतृक जागीर की देखभाल का दायित्व दादा जी कोंकणदेव को सौंपकर कर्नाटक चले गए।
- शिवाजी का उद्देश्य एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करना था।
- शिवाजी ने हिन्दुत्व धर्मोद्धारक की उपाधि धारण की।
- शिवाजी ने हिन्दू पद पादशाही को ग्रहण किया और ब्राह्मणों की रक्षा का व्रत लिया।
- शिवाजी का मूल उद्देश्य मराठों की बिखरी हुई शक्ति को एकत्रित करके महाराष्ट्र (दक्षिण भारत) में एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना करना था।
- शिवाजी ने 1643 ई. में बीजापुर के सिंहगढ़ के किले पर अधिकार किया।
- 1646 ई. में उन्होंने तोरण पर अधिकार कर लिया।
- 1656 ई. तक शिवाजी ने चाकन, पुरन्दर, बारामती, सूपा, तिकोना, लोहगढ़ आदि विभिन्न किलों पर अधिकार कर लिया।
- 1656 में शिवाजी की महत्त्वपूर्ण विजय जावली की थी।
- जावली एक मराठा सरदार चन्द्रराव मोरे के अधिकार में था।
- अप्रैल, 1656 में शिवाजी ने रायगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया।
- 1657 ई. में शिवाजी का मुकाबला पहली बार मुगलों से हुआ, जब वह बीजापुर की तरफ से मुगलों से लड़ा।
- इसी समय शिवाजी ने जुन्नार को लूटा।
- कुछ समय बाद मुगलों के उत्तराधिकार युद्ध का लाभ उठाकर उसने अपनी सैनिक गतिविधियाँ पुन: आरम्भ की।
- शिवाजी के इस विस्तारवादी नीति से बीजापुर शासक सशंकित हो उठा उसने शिवाजी की शक्ति को दबाने तथा उसे कैद करने के लिए 1659 ई. में अपने योग्य सरदार अफजल खाँ के नेतृत्व में एक सैनिक टुकड़ी भेजी।
- प्रतापगढ़ के किले में शिवाजी ने अफजल ख़ाँ की हत्या कर दी।
- अफजल खाँ के उद्देश्य की सूचना ब्राह्मण दूत कृष्णजी भास्कर ने शिवाजी को दी।
- 1660 ई. में मुगल शासक औरंगजेब ने शाइस्ता खाँ को दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया।
- 15 अप्रैल, 1663 को शिवाजी ने रात्रि में चुपके से पूना में प्रवेश कर शाइस्ता खाँ के महल पर आक्रमण कर दिया।
- शाइस्ता खाँ इस अचानक आक्रमण से घबराकर भाग खड़ा हुआ।
- इस आक्रमण के कारण मुगलों को क्षति पहुँची तथा शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
1664 ई. में शिवाजी ने सूरत पर धावा बोल दिया। (प्रथम लूट – 22 मई, 1664 ई.)
- औरंगजेब ने आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को दक्षिण भेजा।
- जयसिंह ने समझ लिया कि बीजापुर को जीतने के लिए शिवाजी से मित्रता आवश्यक है।
जयसिंह ने शिवाजी को पुरन्दर की संधि (1665 ई.) के लिए बाध्य किया।
जून, 1665 पुरन्दर की संधि के अनुसार :-
- (1) शिवाजी को चार लाख हूण वार्षिक आय वाले तेईस किले मुगलों को सौंपने पडे़ तथा शिवाजी के पास मात्र बारह किले बचे।
- (2) मुगलों ने शिवाजी के पुत्र शम्भा जी को पंचहजारी एवं उचित जागीर देना स्वीकार किया।
- (3) शिवाजी ने बीजापुर के विरुद्ध मुगलों को सैनिक सहायता देने का वायदा किया।
- औरंगजेब ने शिवाजी के इस समझौते को स्वीकार कर शिवाजी को राजा की उपाधि प्रदान की तथा उसके पुत्र शम्भा जी को बरार में एक जागीर दी।
- 1666 ई. में शिवाजी जयसिंह के आश्वासन पर औरंगजेब से मिलने आए, पर उचित सम्मान न मिलने पर दरबार से उठकर चले गए औरंगजेब ने उन्हें कैद कर जयपुर भवन (आगरा) में रखा परन्तु शिवाजी आगरा के किले की कैद से फरार होने में सफल हो गए।
- 1670 ई. में शिवाजी का मुगलों से पुनः युद्ध आरम्भ हो गया।
- पुरन्दर की संधि द्वारा खोए गए अपने अनेक किलों को शिवाजी ने पुनः जीता जिसमें कोंडाना किला सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण था।
- शिवाजी ने इसका नाम सिंहगढ़ रखा।
- 1670 ई. में शिवाजी ने तीव्रगति से सूरत पर पुनः आक्रमण किया और उसे लूटा तथा मुगलों से चौथ की माँग की (सूरत की दूसरी लूट)
- 14 जून, 1674 को शिवाजी ने काशी के प्रसिद्ध विद्वान गंगाभट्ट से अपना राज्याभिषेक रायगढ़ में करवाया।
- शिवाजी का दूसरा राज्यभिषेक निश्चतपुरी गोस्वामी नामक तांत्रिक ने 4 अक्टूबर, 1674 को किया।
शिवाजी का प्रशासन
- शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था अधिकांशत: दक्षिणी राज्यों और मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था से प्रभावित थी। जिसके शीर्ष पर छत्रपति होता था।
- शिवाजी के प्रशासन में अष्टप्रधान नामक आठ मंत्री होते थे।
- सरनवीस अथवा सचिव – राजकीय पत्र व्यवहार का कार्य देखना तथा परगनों के हिसाब की जाँच करना आदि।
- अमात्य अथवा मजूमदार – यह वित्त एवं राजस्व मंत्री होता था।
- सेनापति अथवा सर-ए-नौबत – सेना की भर्ती, संगठन, रसद आदि का प्रबन्ध करता था।
- वाकियानवीस अथवा मंत्री – राजा के दैनिक कार्यों तथा दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाहियों का विवरण रखता था। (वर्तमान गृहमंत्री) यह खुफिया, डाक, घरेलु मामलों का प्रमुख होता था।
- दबीर या सुमन्त – यह विदेश मंत्री होता था।
- पण्डितराव – विद्वानों और धार्मिक कार्यों के लिए दिए जाने वाले अनुदानों का दायित्व निभाता था।
- पेशवा अथवा मुख्य प्रधान – यह राजा का प्रधानमंत्री होता था। इसका कार्य सम्पूर्ण राज्य के शासन की देखभाल करना था। राजा की अनुपस्थिति में उसके कार्यों की देखभाल भी करता था। सरकारी पत्रों तथा दस्तावेजों पर राजा के नीचे अपनी मुहर लगाता था।
- न्यायाधीश-यह मुख्य न्यायाधीश होता था (राजा के बाद)। इसके अधिकार क्षेत्र में राज्य के समस्त दीवानी तथा फौजदारी मामले आते थे।
- शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त किया।
- प्रत्येक प्रान्त राज प्रतिनिधि (वायसराय) के अधीन होता था।
- प्रान्तों (सूबा) को परगना और तालुकों में विभाजित किया गया था।
- जागीर प्रथा समाप्त कर दी गई थी तथा अधिकारियों को नकद वेतन प्रदान किया जाता था।
सेना
- शिवाजी ने एक नियमित तथा स्थायी सेना रखी।
- सेना का मुख्य भाग पैदल और घुड़सवार सेना थी।
घुड़सवार सेना दो भागों में विभक्त थी- -
- बरगीर- वे घुडसवार सैनिक थे जिन्हें राज्य की ओर से घोड़े और शस्त्र दिए जाते थे। –
- सिलेदार-ये स्वतन्त्र सैनिक थे जो अपना अस्त्र-शस्त्र स्वयं रखते थे।
किले में तीन अधिकारी होते थे-
(1) हवलदार
(2) सर-ए-नौबत
(3) सबनीस हवलदार।
- सर-ए-नौबत मराठा तथा सबनीस ब्राह्मण होते थे।
- सबनीस (ब्राह्मण) नागरिक (असैनिक) और राजस्व प्रशासन देखता था।
- रसद और सैनिक सामग्री की देखभाल कारखाना नवीस करता था।
- सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था। वास्तव में पहाड़ी दुर्ग और उसके आसपास के क्षेत्र, जो हवलदार के अधीन होते थे, शिवाजी की प्रशासनिक इकाई थे।
- हवलदार के नेतृत्व में विभिन्न जातियों के सैनिकों की भर्ती करके दुर्ग सेना का गठन किया जाता था।
- शिवाजी ने कोलाबा में एक जहाजी बेड़े का भी निर्माण करवाया जो दो कमानों में बँटी हुई थी। एक दारिया सारंग (मुसलमान) तथा दूसरी नायक (हिन्द) के अधीन रहती थी।
- मावली सैनिक शिवाजी के अंगरक्षक थे।
- मावली एक पहाड़ी लड़ाकू जाति थी।
राजस्व प्रशासन
शिवाजी की राजस्व व्यवस्था
- अहमदनगर राज्य में मलिक अम्बर द्वारा अपनाई गई रैय्यतवाड़ी प्रथा पर आधारित थी।
- केन्द्रीय अधिकारी द्वारा राजस्व एकत्रित किया जाता था।
- आरम्भ में शिवाजी ने पैदावार का 33 प्रतिशत लगान वसूल करवाया।
- परन्तु बाद में स्थानीय करों तथा चुंगियों को माफ करने के बाद इसे बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया।
- शिवाजी के आदेश पर 1679 ई. में अन्नाजी दत्तो ने एक विस्तृत भू सर्वेक्षण करवाया जिसके फलस्वरूप एक नए राजस्व का निर्धारण हुआ।
- लगान व्यवस्था के लिए शिवाजी का राज्य 16 प्रान्तों में बाँटा गया था।
- विशेष घटनाओं की सूचना सीधे केन्द्र को पहुँचाने वाला व्यक्ति कारकून कहलाता था और प्रान्त का अधिकारी सूबेदार कहलाता था।
- गाँव के प्राचीन पैतृक अधिकारी पाटिल और जिले के देशमुख या देशपाण्डे होते थे।
- भूमि की पैमाइश रस्सी के स्थान पर काठी या जरीब से किया जाता था।
- खेतों का विवरण रखने के लिए भू-स्वामियों से कबूलियत ली जाती थी।
- रानाडे के अनुसार ‘चौथ सैन्य-कर था’, जो तीसरी शक्ति के आक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने के बदले में वसूल किया जाता था।
- सरदेसाई के अनुसार ‘चौथ विजित क्षेत्रों से वसूल किया जाने वाला कर था।’ यदुनाथ सरकार के अनुसार ‘यह मराठा आक्रमण से बचने के एवज में वसूल किया जाने वाला कर था।’
- चौथ विजित राज्यों के क्षेत्रों से उपज के एक चौथाई (1/4 भाग) के रूप में वसूल किया जाता था।
सरदेशमुखी- यह आय का 10 प्रतिशत या 1/10 अंश के रूप में होता था।
शम्भाजी (1680-1689 ई.)
- शिवाजी की मृत्यु रायगढ़ किले में होने के बाद नवगठित मराठा साम्राज्य में आन्तरिक फूट पड़ गई।
- शिवाजी की दो पत्नियों से उत्पन्न दो पुत्रों-शम्भा जी और राजाराम के बीच उत्तराधिकार का विवाद खड़ा हो गया।
- शम्भाजी राजाराम को गद्दी से उतारकर 20 जुलाई, 1680 को सिंहासनारूढ़ हुए।
राजाराम (1689-1700 ई.)
- शम्भा जी की मृत्यु के बाद उसके सौतेले भाई राजाराम को मराठा मंत्रिपरिषद् ने राजा घोषित किया।
- 1689 ई. में राजाराम मुगलों के आक्रमण की आशंका से रायगढ़ छोड़कर जिंजी भाग गया।
- 1698 तक जिंजी मुगलों के विरुद्ध मराठा गतिविधियों का केन्द्र तथा मराठा साम्राज्य की राजधानी रही।
शिवाजी द्वितीय तथा ताराबाई (1700-1707 ई.)
- राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने पुत्र को शिवाजी द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठाया और मुगलों से संघर्ष जारी रखा।
- उसने (ताराबाई) रायगढ़, सतारा तथा सिंहगढ़ आदि किलों को मुगलों से जीत लिया।
- शाहू (1707-1748 ई.) औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्र आजमशाह ने 8 मई, 1707 को शाहू को कैद से मुक्त कर दिया।
- परन्तु कैद से मुक्त होने के बाद जब शाहू सतारा पहुँचे, तब तक ताराबाई ने शिवाजी द्वितीय को छत्रपति घोषित कर दिया था।
- 12 अक्टूबर, 1707 को शाहू तथा ताराबाई के मध्य ‘खेड़ा का युद्ध’ हुआ जिसमें शाहू, बालाजी विश्वनाथ की मदद से विजयी हुआ।
- 1708 ई. में शाहू ने सतारा पर अधिकार कर लिया।
- शिवाजी द्वितीय की मृत्यु के बाद राजाराम का दूसरा पुत्र शम्भाजी कोल्हापुर की गद्दी पर बैठा।
- इन दो प्रतिद्वन्दी शक्तियों (सतारा तथा कोल्हापुर) के मध्य शत्रुता अन्तत: 1731 ई. में वार्ना की संधि के द्वारा समाप्त हुई।
पेशवाओं के काल में मराठा शक्ति का उत्कर्ष
- पेशवाओं की शक्ति का उत्थान शाहू व राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई के मध्य चल रहे गृह युद्ध के दौरान हुआ।
बालाजी विश्वनाथ (1713-1720)
- बालाजी विश्वनाथ ने राजस्व अधिकारी के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी।
- 1699 से 1708 तक बालाजी धनाजी की सेवा में रहे।
- उनकी मृत्यु के बाद 1708 में बालाजी शाहू की सेवा में आए।
- शाहू ने बालाजी को सेनाकर्ते (सैना के व्यवस्थापक) की पदवी दी।
- 1713 में शाहू ने बालाजी को पेशवा या मुख्य प्रधान नियुक्त किया।
- फरवरी, 1719 में बालाजी ने मुगल सूबेदार सैयद हुसैन से एक संधि की।
- स्वराज्य क्षेत्र पर राजस्व अधिकार की मान्यता दी गई।
बाजीराव प्रथम (1720-1740 ई.)
- बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद शाहू ने उनके पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा नियुक्त किया और इस प्रकार बालाजी विश्वनाथ के परिवार में पेशवा पद वंशानुगत हो गया।
- 23 जून, 1724 में शूकरखेड़ा के युद्ध में मराठों की मदद से निजामुल-मुल्क ने दक्कन के मुगल सूबेदार मुबारिज खाँ को परास्त करके दक्कन में अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित की।
- 1728 ई. में बाजीराव ने निजामुल-मुल्क को पालखेड़ा के युद्ध में पराजित किया।
- युद्ध में पराजित होने पर निजामुल मुल्क संधि के लिए बाध्य हुआ।
- 6 मार्च, 1728 में दोनों के बीच मुंशी शिवगाँव की संधि हुई जिसमे निजाम ने मराठों को चौथ और सरदेशमखी देना स्वीकार कर लिया।
- बाजीराव प्रथम को लड़ाकू पेशवा के रूप में याद किया जाता है वह शिवाजी के बाद गुरिल्ला युद्ध का सबसे बड़ा प्रतिपादक था।
- शाहू ने बाजीराव प्रथम को योग्य पिता का योग्य पुत्र कहा है।
- बाजीराव प्रथम ने हिन्दू पादशाही का आदर्श रखा ।
बालाजी बाजीराव (1740-1761 ई.)
- बाजीराव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बालाजी बाजीराव (नाना साहब के नाम से प्रसिद्ध) पेशवा बने।
- 1741 ई. में बालाजी बाजीराव रघुजी भौंसले के विरुद्ध अलीवर्दी खाँ की मदद के लिए मुर्शिदाबाद (बंगाल) प्रस्थान किया तथा रघुजी भौंसले को युद्ध में पराजित कर संधि के लिए बाध्य किया।
- 1741 ई. में मुगल बादशाह ने एक संधि करके मालवा पर मराठों के अधिकार को वैधता प्रदान की।
- 15 दिसम्बर, 1749 को शाहू जी का निधन हो गया।
- वे निसंतान थे। अपनी मृत्यु के पूर्व ही उन्होंने ताराबाई के पौत्र राजाराम द्वितीय को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया।
- जनवरी, 1750 में राजाराम द्वितीय का राज्याभिषेक हुआ।
- 1750 ई. में रघुजी भौंसले की मध्यस्थता के कारण राजाराम तथा पेशवा के बीच संगोला की संधि हुई।
- 1754 ई. में मराठे रघुनाथ राव के नेतृत्व में दिल्ली पहुँचे और वजीर गाजीउद्दीन की सहायता करते हुए उन्होंने अहमदशाह को सिंहासन से हटाकर आलमगीर द्वितीय को मुगल बादशाह बना दिया।
- 1757 ई. में मराठों ने रघुनाथ राव के नेतृत्व में पुन: दिल्ली पर आक्रमण किए तथा अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि नजीब उद्-दौला को मीर बख्शी पद से हटाकर अहमद शाह को उस पद पर नियुक्त किया।
पानीपत का तृतीय युद्ध (14 जनवरी, 1761)
- पानीपत का तृतीय युद्ध मुख्यत: दो कारणों का परिणाम रहा।
- प्रथम, नादिर शाह की भाँति अहमदशाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था।
- दूसरा, मराठे हिन्दू पादशाही की भावना से प्रेरित होकर दिल्ली पर प्रभाव स्थापित करना चाहते थे।
- रुहेला सरदार नजीबुद्दौला तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमदशाह अब्दाली का साथ दिया क्योंकि ये दोनों मराठा सरदारों के हाथों हार चुके थे।
- इस युद्ध में पेशवा बालाजी बाजीराव ने अपने नाबालिग बेटे विश्वास राव के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना भेजी किन्तु वास्तविक सेनापति उसका चचेरा भाई सदाशिव राव भाऊ था।
- इस फौज (मराठा) का एक महत्त्वपूर्ण भाग था, तोपखाने की टुकड़ी जिसका नेतृत्व इब्राहिम खाँ गर्दी कर रहा था।
- 14 जनवरी, 1761 को मराठों ने आक्रमण आरम्भ किया।
- मल्हारराव होल्कर युद्ध के बीच में ही भाग निकला।
- पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों को एकमात्र मुगल वजीर इमाद-उल-मुल्क का समर्थन प्राप्त था, जबकि राजपूतों, सिखों तथा जाटों ने मराठों का साथ नहीं दिया।
आंग्ल-मराठा संघर्ष
- प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1782 ई.) में हुआ।
- 1775 ई. में रघुनाथ राव तथा अंग्रेजों के मध्य सूरत की संधि हुई इस संधि के फलस्वरूप प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ।
- 1782 ई. में सालबाई की संधि (अंग्रेज तथा महादजी सिधिंया के बीच) से प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध समाप्त हो गया।
- द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1806 ई.)1800 ई. में पूना के मुख्यमंत्री नाना फडनवीस की मृत्यु हो गई।
- 1802 ई. में बेसीन की संधिपेशवा ने अंग्रेजी संरक्षण स्वीकार कर भारतीय तथा अंग्रेजी पद्धतियों की सेना को पूना में रखना स्वीकार किया।
- पेशवा ने सूरत नगर कंपनी को दे दिया।
- भौंसले ने अंग्रेजों को चुनौती दी।
- वेलेजली तथा लॉर्ड लेक ने मराठों को पराजित किया।
- भौंसले ने 1803 ई. में अंग्रेजों से देवगाँव की संधि की।
- सिंधिया ने 1803 ई. में सुरजी-अर्जन गाँव की संधि की।
- होल्कर ने 1804 ई. में अंग्रेजों से राजपुर घाट की संधि की।
- तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-1818 ई.) लार्ड हेस्टिंग्स ने नागपुर के राजा को 27 मई, 1816 को पेशवा को 13 जून, 1817 तथा सिंधियाँ को 5 नवम्बर, 1817 को अपमानजनक संधियाँ करने पर बाध्य किया।
- बाजीराव का पूना प्रदेश अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया गया।
केन्द्रीय प्रशासन
पेशवाओं के अन्तर्गत मराठा प्रशासन-
- 18वीं तथा 19वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में मराठा प्रशासन हिन्दू तथा मुस्लिम संस्थाओं का उत्तम मिश्रण था। परन्तु शाहू के काल में मुगल सम्राट की सर्वोच्चता स्वीकार कर ली गई थी।
- 1719 ई. की संधि के अनुसार शाहू ने 10,000 का मनसब फर्रुखसियर से स्वीकार किया तथा 10 लाख रु० वार्षिक उसे खिराज देना स्वीकार किया।
- मराठा साम्राज्य का मुखिया शिवाजी का वंशज छत्रपति था जो सतारा का राजा था। किन्तु 1750 की संगोला की संधि से पेशवा ही राज्य का वास्तविक मुखिया बन गया।
- आरम्भ में पेशवा, शिवाजी की अष्टप्रधान समिति का सदस्य होता था।
- पेशवा बालाजी बाजीराव के समय में पेशवा पद को वंशानुगत बनाया गया।
- पूना में पेशवा का सचिवालय जिसे हुजूर दफ्तर कहते थे, मराठा प्रशासन का केन्द्र था।
- यहाँ प्रशासन के विभिन्न विभागों के आलेख सुरक्षित रखे जाते थे तथा यही राजस्व और बजट सम्बन्धी मामलों का निपटारा किया जाता था।
- प्रान्तीय तथा जिला प्रशासन सूबे को प्रान्त तथा तरफ एवं परगने को महल कहा जाता था।
- प्रत्येक प्रान्तएक सर सूबेदार के अधीन होता था।
- कर्नाटक के सर सूबेदार को अधिक अधिकार प्राप्त थे।
- वह अपने मामलतदार स्वयं नियुक्त करता था। मामलतदार तथा कामविसदार, दोनों ही जिलों में पेशवा के प्रतिनिधि होते थे।
- मामलतदार पर मण्डल, जिले, सरकार, सूबा इत्यादि का कार्यभार होता था।
स्थानीय अथवा ग्राम शासन
- ग्राम का मुख्य अधिकारी (मुखिया) पाटिल (पटेल) होता जो कर सम्बन्धी न्यायिक तथा अन्य प्रशासनिक कार्य करता था।
- वह ग्राम तथा पेशवा के प्रशासन के बीच मध्यस्थ था।
- पाटिल का पद वंशानुगत था।
- पाटिल को सरकार से वेतन नहीं मिलता था, वह एकत्रित कर का एक छोटा सा भाग अपने लिए रख लेता था।
- पाटिल के अधीन कुलकर्णी (ग्राम लिपिक) होता था जो ग्राम भूमि का लेखा रखता था।
- कुलकर्णी के नीचे चौगुले होता था जो पाटिल की सहायता करता था।
- सिक्कों के निर्धारित भार और धातु की शुद्धता की जाँच का काम पोतदार का था।
- गाँव को औद्योगिक आवश्यकताओं की पूर्ति बारह कारीगरों (वलूतो) द्वारा की जाती थी।
- मराठों का नागरिक प्रशासन मौर्य प्रशासन से मिलता-जुलता था।
- कोतवाल नगर का मुख्य दण्डाधिकारी तथा पुलिस का मुखिया होता था।
आय के स्रोत
- पेशवा के शासन काल के दौरान राज्य के राजस्व के मुख्य स्रोत थे-
- (1) भू-राजस्व,
- (2) विविध कर।
- विविधकर-गृह कर, कूप सिंचित भूमि पर कर, सीमा शुल्क, माप और तौल के परीक्षण के लिए वार्षिक शुल्क, विधवाओं के पुनर्विवाह पर कर आदि।
- पेशवाओं ने विधवा के पुनर्विवाह पर ‘पतदाम’ नामक कर लगाया।
- कर्जापट्टी अथवा जस्ती पट्टी जमींदारों पर लगने वाला असाधारण कर था।
- कामविसदार चौथ वसूल करते थे तथा गुमाश्ता सरदेशमुखी की वसूली करते थे। सरदेशमुखी पूर्णतः राजा के हिस्से में होती थी और इसकी उगाही सीधे काश्तकारों से ही की जाती थी।
- राजस्थान में मराठों ने चौथ तथा सरदेशमुखी की वसूली की माँग नहीं की।
- यहाँ के राजाओं पर खानदानी तथा मामलत (खराज) लगाया जाता था।
- केवल अजमेर ही सुरक्षात्मक उद्देश्य के कारण मराठों के प्रत्यक्ष नियंत्रण में था।
- मीरासदार (जमींदार) वे काश्तकार थे जिनकी अपनी भूमि होती थी तथा उत्पादन के साधनों जैसे-हल, बैल आदि पर अधिकार होता था।
- उपरिस बटाईदार थे, जिन्हें कभी भी बेदखल किया जा सकता था।
सेना
- मराठा सेना का गठन मुगल सैन्य व्यवस्था पर आधारित था।
- शिवाजी सामन्तशाही सेना पर निर्भर नहीं थे तथा सेना के स्थायित्व को पसन्द करते थे, पेशवा लोग सामन्तशाही पद्धति पसन्द करते थे तथा साम्राज्य जागीरों के रूप में बाँट दिया गया था।
- मराठों के तोपखानों में मुख्यतः पुर्तगाली अथवा भारतीय ईसाई ही काम करते थे।
- पेशवाओं ने तोपखाना बनाने के लिए पूना तथा जुन्नार के अम्बेगाँव में अपने कारखाने स्थापित करवाए थे।
- विदेशियों को सेना में भर्ती होने के लिए अधिक वेतन दिया जाता था।
- टोन ने मराठा संविधान को सैनिक गणतन्त्र की संज्ञा दी है।
- इतिहासकार स्मिथ ने शिवाजी के राज्य को ‘डाकू राज्य’ कहा है।
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