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आधुनिक इतिहास का घटनाक्रम
आधुनिक इतिहास का घटनाक्रम
प्लासी का युद्ध-1757
प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को अंग्रेज अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव और बंगाल के तत्कालीन नवाब सिराजुद्दौला के मध्य प्लासी नामक स्थान पर हुआ था
पानीपत का तृतीय युद्ध- 1761
पानीपत का तीसरा युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 में हुआ
बक्सर का युद्ध- 1764
बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को अंग्रेज अधिकारी हेक्टर मुनरो और तीनों की सम्मिलित सेना (बंगाल का नवाब मीर कासिम, अवध का नवाब शुजाउद्दौला, मुगल सम्राट शाह आलम) के मध्य हुआ इस युद्ध में अंग्रेज विजय हुए
प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध- 1775 से 1782 ई तक
सूरत की संधि- 7 मार्च 1775
रघुनाथ राव (राघोबा) जब पेशवा न बन सका तो उसने अंग्रेजों की बंबई सरकार से सूरत की संधि कर ली। जो आगे जाकर प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध का कारण बनी
अर्रा के युद्ध- 18 मई 1775
किटिंग के नेतृत्व की अंग्रेजी सेना ने गुजरात में अर्रा के युद्ध में मराठा को पराजित किया
पुरंदर की संधि- 1 मार्च 1776
नाना फडणवीस ने कलकता सरकार अर्थात वारेन हेस्टिंग के दूत कर्नल अप्टन के साथ पुरंदर की संधि कर ली
सालबाई की संधि- 17 मई 1782
7 वर्ष तक चले युद्ध के बाद महादजी सिंधिया की मध्यस्थता और कंपनी की तरफ से डेविड एंडरसन ने सालबाई की संधि पर हस्ताक्षर किए
इस संधि के तहत दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए प्रदेश लौटा दिए। अंग्रेजों ने पुरंदर की संधि के बाद मराठा से जीते हुए क्षेत्र वापस लौटा दिए
द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध- 1802 से 1806 ई तक
द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध दो चरणों में हुआ
प्रथम चरण 1802 से 1804 ई तक तथा द्वितीय चरण 1804 से 1806 ई तक
इस युद्ध के दौरान तीन गवर्नर जनरल का कार्यकाल रहा- लॉर्ड वेलेजली, लार्ड कार्नवालिस, जॉर्ज बार्लो
पेशवा बाजीराव द्वितीय ने बेसिन में अंग्रेजों की शरण ले ली तथा 1802 ईस्वी में बेसिन की संधि कर ली
बेसिन की संधि- 31 दिसंबर 1802
पेशवा ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार किया तथा अंग्रेजी सेना को पेशवा के खर्चे पर पुना में रखना स्वीकार किया
इस प्रकार बेसिन की संधि से पेशवा ने सहायक संदेश स्वीकार कर ली
तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध- 1817 से 1818 इ तक
यह युद्ध लॉर्ड हेस्टिंग के समय हुआ इस युद्ध के समय हेस्टिंग ने-
नागपुर के राजा अप्पा साहब भोंसले से 27 मई 1816 को नागपुर की संधि की
पेशवा से 13 जून 1817 को पुना की संधि की
किर्की का युद्ध (5 नवंबर 1817)- पेशवा बाजीराव द्वितीय और अंग्रेजों के मध्य। पेशवा की हार हुई
दौलत राव सिंधिया से 5 नवंबर 1817 को ग्वालियर की संधि की
सीताबड़ी का युद्ध (27 नवंबर 1817)- अप्पा साहेब भोसले और अंग्रेजों के मध्य
महिदपुर का युद्ध (24 दिसंबर 1817)- होल्कर गुट (मल्हार राव तृतीया, हरिराव होल्कर , भीमाबाई होल्कर ) और अंग्रेजों के बीच
अंग्रेज सभी युद्ध में विजय हुए
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध- 1767 से 1769 तक
अंग्रेजो और हैदर अली के मध्य अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति के कारण हुआ।
अंग्रेजों ने मराठो और निजाम को साथ लेकर हैदर के विरुद्ध त्रिगुट का निर्माण किया
अंग्रेजों की अंत में पराजय हुई तथा हैदर अली और मद्रास के गवर्नर स्मिथ के मध्य 1769 ईस्वी में मद्रास की संधि हुई
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध- 1780 से 1784 ई तक
हैदर अली और अंग्रेजों के मध्य
हैदर अली ने अंग्रेज जर्नल बेली को कांजीवरम के युद्ध में पराजित कर अकार्ट पर कब्जा कर लिया
1781 में जनरल एयरपोर्ट ने पोर्टोनोवा और सोलिदपुर के युद्ध में हैदर अली को पराजित किया
पोर्टोनोवा युद्ध के दौरान 7 दिसंबर 1782 को हैदर अली की मृत्यु हो गई
हैदर अली के पुत्र टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के मध्य 1784 ईस्वी में मंगलौर की संधि हो गई जिसके तहत दोनों पक्षों ने एक दूसरे के लुटे हुए प्रदेश लौटा दिए
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध- 1790 से 1792 ई तक
अंग्रेजों ने मराठो और निजाम के साथ मिलकर टीपू पर आक्रमण किया
मार्च 1782 में अंग्रेजों और टीपू के मध्य श्रीरंगपट्टनम की संधि हुई
जिसके तहत टीपू सुल्तान ने अपना आधा राज्य अंग्रेजो और उनके सहयोगियों को दे दिया
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध- 1799 ई
इस युद्ध में अंग्रेज सेनापति ऑर्थर वेलेजली, हैरिस व स्टुअर्ट के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने टीपू सुल्तान को पराजित किया
स्टुअर्ट ने सदा पीर के युद्ध में हैरिस ने मलावली के युद्ध में टीपू को हराया
4 में 1799 ई को टीपू राजधानी श्रीरंगपट्टनम में लड़ता हुआ मारा गया
अंग्रेजों ने वाडियार वंश के बालक कृष्ण राय को मैसूर की गद्दी पर बैठा दिया
लार्ड वेलेजली व सहायक संधि- 1798 ई
सहायक संधि, लार्ड वेलेजली द्वारा 1798 में तैयार की गई एक प्रणाली थी
वेलेजली का उद्देश्य रियासतों को अपनी रक्षा के लिए कंपनी पर निर्भर करने के लिए बातें करना था इसलिए उसने सहायक संधि की प्रथा अपनाई
अंग्रेजों के साथ इस तरह की संधि करने वाले सभी लोगों को कुछ नियम और शर्तें माननी पड़ती थी
ब्रिटिश अपने सहयोगी को अपनी शक्ति के लिए बाहरी और आंतरिक खतरों से बचाने के लिए जिम्मेदार होंगे
सहयोगी के क्षेत्र में एक ब्रिटिश सशस्त्र दल तैनाव किया जाएगा
इस टुकड़ी को बनाए रखने के लिए सहयोगी को संसाधन उपलब्ध कराने होंगे सहयोगी अन्य शासको के साथ समझौता कर सकता था
या अंग्रेजों की अनुमति से ही युद्ध में संलग्न हो सकता था
हैदराबाद के निजाम ने सबसे पहले 1798 में सहायक संधि को स्वीकार किया था फिर क्रमशः मैसूर (1799 ई), तंजौर (1799 ई), अवध (1801 ई), पेशवा (1802 ई), भोसले और सिंधिया (1803 ई) ने संधिया स्वीकार की
प्रथम आंग्ल सिख युद्ध (1845 से 1846 ई तक)
रानी जिंदा की सिख सेना लाल सिंह और तेज सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों पर हमला कर दिया। जो की 1809 ई की अमृतसर संधि का उल्लंघन था परिणाम स्वरूप प्रथम आंग्ल सिख युद्ध हुआ
दिलीप सिंह के समय अंग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण किया अर्थात प्रथम आंग्ल सिख युद्ध शुरू हो गया
इसके तहत प्रमुख युद्ध-
मुदकी का युद्ध- 18 दिसंबर 1845
फिरोजशाह का युद्ध- 21 दिसंबर 1845
बदोवाल का युद्ध- 21 जनवरी 1846
आलीवाल का युद्ध- 28 जनवरी 1846
सबराओ का युद्ध- 10 फरवरी 1846
10 फरवरी 1846 ईस्वी में सबराओ के युद्ध में सिखों की निर्णायक हार हुई
लाहौर की संधि – 8 मार्च 1846
अंग्रेज और सिखों के मध्य 8 मार्च 1846 को लाहौर की संधि हुई जिसकी शर्तें निम्न थी-
सतलज नदी के दक्षिण के सभी प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिए जाएं
लाहौर दरबार में 1.5 करोड रुपए युद्ध का हर्जाना देना स्वीकार किया
लाहौर में एक ब्रिटिश रेजिडेंट नियुक्त किया गया, सर हेनरी लॉरेंस प्रथम रेजिडेंट नियुक्त किया गया
सिख सेना में कटौती की गई और सेना की संख्या 20,000 पैदल सैनिक और 12,000 घुड़सवार तय की गई
द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध- 1848 से 1849 ई तक
इस युद्ध का तात्कालिक कारण मुल्तान का सूबेदार मूलराज का विद्रोह था
द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी था
प्रमुख युद्ध
रामनगर का युद्ध- 22 नवंबर 1848 (अंग्रेजों की विजय हुई)
चिलियानवाला का युद्ध- 13 जनवरी 1849 (अंग्रेज विजय रहे, इस विजय को अंग्रेजों की नाशकारी विजय कहा जाता है)
गुजरात (पंजाब प्रांत पाकिस्तान) का युद्ध- 21 फरवरी 1850 (चार्ल्स नेपियर ने गुजरात के युद्ध में सिक्खो को निर्णायक रूप से पराजित किया। गुजरात के युद्ध को ‘तोपों के युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है)
लॉर्ड डलहौजी ने 30 मार्च 1849 को चार्ल्स नेपियर के नेतृत्व में पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला दिया
लॉर्ड डलहौजी की व्यपगत नीति (राज्य हड़प नीति)
इसे गोद निषेध (डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स) भी कहा जाता है
इस नीति के तहत डलहौजी ने भारतीय राज्यों को तीन श्रेणियां में बांटा-
वह राज्य जो कभी सर्वोच्च सत्ता के अधीन न रहे
वे राज्य जो कभी मुगल बादशाह या पेशवा के अधीन रहे
वे राज्य या रियासत जिन्हें अंग्रेजों ने मान्यता देकर स्थापित किया
व्यपगत नीति के तहत हड़पी गई रियासतें
सतारा, महाराष्ट्र – 1848 ई (शासक अप्पासाहिब)
जैतपुर एवं संभलपुर, उड़ीसा- 1849 ई
बघाट, तत्कालीन पंजाब – 1850 ई
उदयपुर – 1852 ई
झांसी, उत्तर प्रदेश- 1853 ईस्वी में (शासक गंगाधर राव)
नागपुर, महाराष्ट्र- 1854 ईस्वी में (शासक रघुजी तृतीया)
अवध- डलहौजी ने अवध रियासत के बारे में कहा था कि ” ये गिलास फल एक दिन हमारे मुंह में आकर गिरेगा”
डलहौजी ने अवध के नवाब पर कुशासन व संधि भंग का आरोप लगाया 13 फरवरी 1856 को अवध को अंग्रेजी राज्य में मिलने की घोषणा कर दी
ब्रह्म समाज (1828)
ब्रह्म समाज की स्थापना अगस्त 1828 को कलकता में राजा राममोहन राय द्वारा की गई थी
आर्य समाज (1875)
दयानंद सरस्वती ने 1875 ईस्वी में बंबई में आर्य समाज की स्थापना की
रामकृष्ण मिशन (1897)
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 5 में 1897 को कलकता के समीप वेलूर में रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद द्वारा की गई थी
सत्यशोधक समाज (1875)
इनकी स्थापना निम्न जातियों के कल्याण के लिए 1875 ईस्वी में ज्योतिराव गोविंद राव फुले ने की थी (ज्योतिबा फुले)
अभिनव भारत (1904)
नासिक में गणपति उत्सव मनाने के संबंध में 1899 ईस्वी में ‘मित्र मेला’ संगठन की स्थापना की गई
1904 ईस्वी में मित्र मेला से वीर सावरकर के नेतृत्व में ‘अभिनव भारत’ नामक गुप्त क्रांतिकारी संस्था का जन्म हुआ
कर्जन वाइली हत्याकांड- 1909
कर्जन वाइली सेक्रेटी ऑफ़ द स्टेट का ADC था
मदनलाल ढींगरा अमृतसर से लंदन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आए थे
यह कर्जन वाइली द्वारा भारतीयों पर किए गए अत्याचारों से दुखी थे
1909 ईस्वी में वाइली की हत्या मदनलाल ढींगरा ने कर दी
गदर दल (1913)
गदर दल की स्थापना 1913 ईस्वी में अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को में लाला हरदयाल ने की
इसके अध्यक्ष सोहन सिंह भाकना और मंत्री लाला हरदयाल थे
गदर पार्टी के प्रमुख सदस्यों में काशीराम, भाई परमानंद, करतार सिंह सरावा, रामचंद्र आदि थे
कामागाटामारू प्रकरण- 1914
कामागाटामारू एक जहाज था, जिसे हांगकांग से गुरुदत्त ने किराए पर लिया था। इसमें 376 पंजाबी भारतीय यात्री थे। यह हांगकांग, शंघाई, याकोहाना होता हुआ कनाडा के बैंकूवर पर पहुंचा। कनाडा सरकार ने इसे बैंकूवर मैं उतरने नहीं दिया
23 जुलाई 1914 को यह बैंकूवर से रवाना होकर 29 सितंबर 1914 को कलकता के बजबज बंदरगाह पर उतरा। सरकार इसके यात्रियों को पंजाब भेजना चाहती थी, यात्रियों की पुलिस से मुठभेड़ हुई जिसमें लगभग 20 यात्री मारे गए
इस जहाज में गदर पार्टी के मुख्य पत्र ‘गदर’ की प्रतिया आई थी
देश में उचित ढंग से क्रांतिकारी आंदोलन का संचालन करने के उद्देश्य से अक्टूबर 1924 में युवा क्रांतिकारियों ने कानपुर में एक सम्मेलन बुलाया तथा ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ नामक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की
इसके संस्थापक शाचीन्द्र नाथ सान्याल (अध्यक्ष), राम प्रसाद बिस्लिम, जोगेश चंद्र चटर्जी तथा चंद्रशेखर आजाद थे
वर्ष 1928 में चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में ‘ हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया जिसका उद्देश्य भारत में एक समाजवादी, गणतंत्र वादी राज्य की स्थापना करना था
काकोरी कांड (अगस्त 1925)
9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी गांव में सरकारी खजाने वाली रेल को लूटा
राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी को काकोरी षड्यंत्र केस के तहत फांसी दी गई
शाचीन्द्र नाथ सान्याल को आजीवन कारावास मिला
केंद्रीय विधान सभा बम कांड- 1929
केंद्रीय विधानसभा में 8 अप्रैल 1929 को पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड यूनियन बिल पास हो रहा था
इसी समय भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में केंद्रीय विधानसभा के केंद्रीय हाल में खाली बैंचो पर बम फेंक कर इस बिल के विरुद्ध अपना विरोध जताया
आजाद हिंद फौज (INA)- 1942
1 सितंबर 1942 में कैप्टन मोहन सिंह, रास बिहारी बोस और निरंजन सिंह गिल ने जापान (टोक्यो) में आजाद हिंद फौज की स्थापना की
इल्बर्ट बिल विवाद- 1883
लॉर्ड रिपन के समय 1883 ईस्वी में उसकी परिषद के विधि सदस्य P.C. इल्बर्ट ने एक विधेयक प्रस्तुत किया, जिसे इल्बर्ट बिल कहा गया
इंडिया लीग (1875 ई)
25 सितंबर 1875 को कलकता में शिशिर कुमार घोष ने इसकी स्थापना की
इसके अस्थाई अध्यक्ष शंभू चंद्र मुखर्जी थे
इस संस्था का उद्देश्य लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगाना और राजनीतिक शिक्षा देना था
इंडियन एसोसिएशन- 1876
इसकी स्थापना कलकता में 26 जुलाई 1876 को सुरेंद्रनाथ बनर्जी और आनंद मोहन बोस ने की
इंडियन नेशनल कांफ्रेंस- 1876
भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पूर्ववर्ती माना जाता है
भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत 1876 ईस्वी में सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने की थी
भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन का पहला सत्र दिसंबर 1883 को कलकता में आयोजित किया गया था
सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने 1883 ईस्वी में कलकता में भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया था
बंगाल विभाजन- 1905
वायसराय लॉर्ड कर्जन ने राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए 1905 ईस्वी में बंगाल को विभाजित कर दिया
बंग-भंग विरोधी आंदोलन- 1905
बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन 7 अगस्त 1905 को आरंभ हुआ
स्वदेशी आंदोलन- 1905
स्वदेशी आंदोलन, आत्मनिर्भरता आधारित आंदोलन था जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख भाग था। इसने भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया
इसकी शुरुआत वर्ष 1905 के बंगाल विभाजन के फैसले की प्रतिक्रिया के रूप में हुई थी
विभाजन के फैसले को राष्ट्रवादी आंदोलन/ स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के क्रम में फूट डालो और राज करो की नीति के रूप में देखा गया है
मुस्लिम लीग की स्थापना- 1906
31 दिसंबर 1906 को ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई
मुस्लिम लीग के संस्थापक नवाब सलीमुल्ला खान थे
1908 में आगा खा को इसका स्थाई अध्यक्ष बनाया गया
कांग्रेस का सूरत अधिवेशन- 1907
सन 1907 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन सूरत में हुआ जिसमें कांग्रेस गरम दल और नरम दल नामक दो दलों में बट गई
1907 के अधिवेशन की अध्यक्षता रासबिहारी घोष ने की थी
मुजफ्फरपुर बम कांड- 1908
क्रांतिकारियों ने 30 अप्रैल 1908 को बिहार के मुजफ्फरपुर में जज किंग्स फोर्ड की हत्या करने का प्रयास किया, किंतु यह प्रयास असफल रहा
इस संबंध में प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस पकड़े गए
प्रफुल्ल चाकी ने स्वयं को गोली मार ली
15 वर्षीय खुदीराम बोस को फांसी की सजा दी गई
1909 का अधिनियम
1909 के अधिनियम को मार्ले मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है
इस अधिनियम के बनने में दो व्यक्तियों तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड मिंटो और भारत सचिव जॉन मार्ले का योगदान था
1909 के अधिनियम द्वारा पहली बार सांप्रदायिक आधार पर निर्वाचन प्रणाली को अपनाया गया
होम रूल आंदोलन- 1916
एक बौद्धिक प्रचार आंदोलन था
इसका उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत संवैधानिक तरीके से स्वशासन प्राप्त करना था
स्वशासन की प्राप्ति के लिए आंदोलन बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने चलाया था
चंपारण आंदोलन- 1917
भारत में महात्मा गांधी ने पहला सफल सत्याग्रह बिहार के चंपारण जिले में 1917 ईस्वी में किया
यहां यूरोपीय नील बागान मालिक किसानों पर बहुत अत्याचार करते थे
राजकुमार शुक्ल के कहने पर गांधी जी चंपारण गए और तीनकठिया प्रथा के विरुद्ध सत्याग्रह प्रारंभ किया
तीनकठिया प्रथा किसानों को
3/20 भूमि पर नील की खेती करना अनिवार्य था
आंदोलन में गांधी जी के सहायक- राजेंद्र प्रसाद, मजरूल-उल-हक, जेबी कृपलानी, नरहरि पारीक, महादेव देसाई थे
आंदोलन की सफलता पर टैगोर ने गांधी जी को 'महात्मा' की उपाधि दी
अहमदाबाद मिल मालिक मजदूर संघर्ष- 1918
1918 ईस्वी में महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के मिल मालिको और मजदूरों के विवाद में हस्तक्षेप कर मजदूरों को राहत दिलवाई
मिल मालिकों ने 35% महंगाई भत्ता देना स्वीकार किया
खेड़ा किसान आंदोलन- 1918 ई
1918 ईस्वी में गांधी जी ने गुजरात के खेड़ा में किसानों के लिए संघर्ष किया
यहां किसानों की फसल नष्ट होने पर भी उनसे सरकार लगान वसूली कर रही थी
यहां गांधी जी ने लगा ना देने के लिए किसानों को कहा
इस आंदोलन में गांधी जी का साथ सरदार वल्लभभाई पटेल ने दिया
अंग्रेज सरकार ने मजबूर होकर आदेश दिया कि उन किसानों से कर न वसूला जाए जिनकी फसल नष्ट हो गई है
सहायक- इंदुलाल याग्निक, शंकर लाल बैंकर, वल्लभभाई पटेल, महादेव देसाई
रोलेट एक्ट- 1909
प्रथम विश्व युद्ध के बाद मुख्य रूप से क्रांतिकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के उद्देश्य से 10 सितंबर 1917 को ब्रिटिश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सर सिडनी रोलेट की अध्यक्षता में एक राजद्रोही कमेटी गठित की गई
इसने अप्रैल 1918 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की
इस समिति की सिफारिश के आधार पर बिल केंद्रीय विधानसभा में प्रस्तुत किया गया
भारतीयों के विरोध के बाद भी 18 मार्च 1919 को यह कानून पास हो गया यह कानून रोलेट एक्ट कहलाया
बिना अपील, बिना वकील, बिना दलील का कानून रोलेट एक्ट को भारतीयों ने 'काला कानून' की संज्ञा दी
जलियांवाला बाग हत्याकांड- 1919
13 अप्रैल 1919 को ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास स्थित जलियांवाला बाग में बैसाखी के दिन हुआ था
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में शामिल लोगों पर ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हजारों निहत्ते पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए थे
बंगाली कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रविंद्र नाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि को त्याग दिया
महात्मा गांधी ने ‘केसर ए हिंद’ की उपाधि वापस कर दी, जिसे इन्हें बोअर युद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा दिया गया था
1919 का भारत परिषद अधिनियम
1919 के अधिनियम को मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार कहा जाता है
प्रांतो में द्वैध शासन की स्थापना की गई
केंद्र और प्रांतो के बीच शक्ति का विभाजन किया गया
1919 के अधिनियम द्वारा पहली बार केंद्र में द्विसदनीय विधायिका की स्थापना की गई
प्रांतीय विधानसभा में सांप्रदायिक आधार पर पृथक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया
खिलाफत आंदोलन- 1919
खिलाफत आंदोलन भारत में एक अखिल इस्लामी आंदोलन था, जो वर्ष 1919 में ब्रिटिश राज के दौरान भारत में मुस्लिम समुदाय के बीच एकता के प्रतीक के रूप में तुर्क खलीफा के समर्थन के प्रयासों के रूप में पैदा हुआ था
कांग्रेस ने आंदोलन का समर्थन किया और महात्मा गांधी ने इसे असहयोग आंदोलन में शामिल करने की मांग की
असहयोग आंदोलन- 1920
असहयोग आंदोलन अगस्त 1920 महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात उत्पन्न हुआ आर्थिक संकट, रोलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार से असंतोष आदि असहयोग आंदोलन के प्रमुख कारण थे
इस आंदोलन के तहत गांधीजी ने उन सभी वस्तुओं (विशेष रूप से मशीन से बने कपड़े), संस्थाओं, और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला लिया था जिसके तहत अंग्रेज भारतीयों पर शासन कर रहे थे
4 फरवरी 1922 को एक हिंसक घटना घटित हुई थी
किसानों की भीड ने यहां के एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी जिसके कारण 22 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। इस घटना को देखकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया
चोरी चोरा कांड (5 फरवरी 1922)
5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के चोरी चोरा नामक स्थान पर एक घटना घट गई
चोरी चोरा में शांतिपूर्ण जुलूस को पुलिस ने दबाना चाहा, जिस कारण उत्तेजित भीड़ ने पुलिस चौकी को घेर लिया और उसमें आग लगा दी
इसमें थानेदार एवं 21 सिपाही मारे गए इस घटना के कारण असहयोग आंदोलन को बंद करने का निर्णय लिया
12 फरवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस कमेटी की बैठक में गांधी जी ने सहयोग स्थगित करने की घोषणा कर दी
स्वराज दल- 1923
भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत 1923 ईस्वी में चुनाव होने थे
इस मुद्दे पर कांग्रेस दो भागों में बट गई, एक भाग काउंसिल में प्रवेश के पक्ष में था तथा दूसरा इसके विरुद्ध
अंततः 1923 ईस्वी में चुनाव में भाग लेने के लिए स्वराज दल की स्थापना की गई चितरंजन दास इसके अध्यक्ष बने तथा मोतीलाल नेहरू इसके सचिव बने
स्वराज दल को केंद्रीय विधानसभा में 48 सीटे प्राप्त हुई भारत में उसका बहुमत रहा
साइमन कमीशन – 1928
साइमन कमीशन/ इंडियन स्टेट्यूटरी कमिशन
सर जॉन साइमन की अध्यक्षता वाले इस 7 सदस्यीय आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था (सारे ब्रिटिश सांसद थे) अतः इसे श्वेत कमीशन भी कहा जाता है
3 फरवरी 1928 को आयोग के भारत आगमन पर इसका पूर्ण बहिष्कार किया गया, काले झंडे दिखाए गए, ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाएं गए
साइमन गो बैक (साइमन वापस जाओ) का नारा युसूफ मेहर अली ने दिया था
बहिष्कार का निर्णय 1927 वर्ष के मद्रास अधिवेशन में लिया गया था
लखनऊ में जवाहरलाल नेहरू और गोविंद वल्लभ पंत ने विरोध किया
लाहौर में ऐसे ही एक विरोध के दौरान पुलिस की लाठी से लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई
केवल तीन दलों ने साइमन कमीशन का समर्थन किया-
पंजाब की यूनियनिस्ट पार्टी
मद्रास की जस्टिस पार्टी
मुस्लिम लीग का शफी घुट
नेहरू रिपोर्ट- 1928
भारत सचिव लॉर्ड बर्किंन हेड ने भारतीय नेताओं को एक ऐसा संविधान बनाने की चुनौती दी जो देश के सभी समुदाय एवं वर्ग को मान्य हो
साइमन कमीशन का भारत में जगह-जगह विरोध हो रहा था
मई 1928 में सर्वदलीय सम्मेलन बंबई में हुआ, जिसमें मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई
इस समिति का कार्य भारत के भावी संविधान की रूपरेखा तैयार करना था
इस समिति ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की वह नेहरू रिपोर्ट कहलाई
इस समिति के सदस्य तेज बहादुर सप्रू, सर अली इमाम, सरदार मंगल सिंह, N.S. अणे, जी आर प्रधान, शोएब कुरैशी थे
नेहरू रिपोर्ट में निम्नांकित बातें थी-
भारत को अधिराज/ औपनिवेशिक स्वराज का दर्जा दिया जाए
अधिकारों की एक ऐसी घोषणा की जाए जिसमें भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता हो
सांप्रदायिक आधार पर अलग चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था को समाप्त किया जाए यद्यपि केंद्रीय एवं प्रांतीय दोनों ही विधायिका में मुसलमान के लिए सिम आरक्षित की जाए
केंद्र में द्विसदनीय विधायिका की व्यवस्था रहे
प्रांत को स्वायत्तता दी जाए
सारी शक्ति केंद्रीय विधानसभा के प्रति उत्तरदाई भारत सरकार के हाथ में हो, केवल विदेशी मामलों एवं सुरक्षा ब्रिटिश नियंत्रण में रखी जाए
नेहरू रिपोर्ट जुलाई 1928 में प्रकाशित की गई
मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में दिसंबर 1928 के कलकता अधिवेशन में ब्रिटिश सरकार को अल्टीमेटम दिया गया कि नेहरू रिपोर्ट को 31 दिसंबर 1929 तक स्वीकार नहीं किया गया तो कांग्रेस जन आंदोलन शुरू कर देगी
मुस्लिम लीग ने नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया और जिन्ना ने अपने 14 सूत्रीय मांग रखी
पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव- दिसंबर 1929
कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में 1929 ईस्वी में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में ‘ पूर्ण स्वराज’ का लक्ष्य निर्धारित किया
इस प्रस्ताव को पारित कर लाहौर में रावि नदी के तट पर 31 दिसंबर 1929 को आधी रात को भारत के स्वतंत्रता का झंडा फहराया
कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वाधीनता दिवस मनाया और इसके बाद यह दिवस कांग्रेस द्वारा भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक प्रतिवर्ष मनाया जाने लगा
सविनय अवज्ञा आंदोलन- 1930
1930 ईस्वी में प्रारंभ हुआ सविनय अवज्ञा आंदोलन भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण आंदोलन था
1928 की नेहरू रिपोर्ट के अस्वीकृत होने और ब्रिटिश सरकार द्वारा औपनिवेशिक स्वराज प्रदान नहीं किए जाने से भारतीय नेताओं में असंतोष व्याप्त था
कांग्रेस के दिसंबर 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को घोषित करने के बाद भारतीयों में आशा एवं उल्लास की भावना भर गई
महात्मा गांधी ने अपने पत्र यंग इंडिया के माध्यम से वायसराय लॉर्ड इरविन के समक्ष 11 सूत्रीय मांग रखी
इन मांगों को ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकार न किए जाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने का निश्चय किया गया
12 मार्च 1930 को गांधी जी ने साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ 24 दिन में 240 मील दूर दांडी की ओर प्रस्थान किया
6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचकर नमक कानून तोड़ा
गांधी इरविन समझौता- 1931
गांधी इरविन समझौते को दिल्ली पेक्ट भी कहा जाता है
मार्च 1931, लंदन में महात्मा गांधी पर लॉर्ड इरविन के मध्य एक राजनीतिक समझौता हुआ जिसमें गांधी जी ने निम्न मांगों को स्वीकार कर लिया
हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियो को रिहा कर दिया जाएगा
भारतीयों को समुद्र के किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया गया
भारतीय अब शराब तथा विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना देने के लिए स्वतंत्र थे
आंदोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को बहाल किया गया
गोलमेज सम्मेलन- 1930 से 1932
साइमन कमीशन की रिपोर्ट और भारत की संवैधानिक समस्याओं पर विचार विमर्श करने के लिए लंदन में भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुलाया गया
यह सम्मेलन गोलमेज सम्मेलन कहलाए, लंदन में तीन गोलमेज सम्मेलन हुए-
प्रथम गोलमेज सम्मेलन- 1930
प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को लंदन में प्रारंभ हुआ
ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों में प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडॉनल्ड प्रमुख था
भारत के प्रतिनिधियों में तेज बहादुर सप्रू, M.R. जयकर, आगा खा, मोहम्मद अली जिन्ना, C.Y. चिंतामणि इत्यादि थे
देसी रियासतों के प्रतिनिधियों में बीकानेर, बडौदा, कश्मीर, भोपाल, हैदराबाद और मैसूर के प्रतिनिधि थे
कांग्रेस ने प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग नहीं लिया
प्रथम गोलमेज सम्मेलन में केंद्र में भारतीय संघ, कुछ सीमाओं के अंतर्गत केंद्र में उत्तरदाई सरकार की स्थापना, प्रांत को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करना आदि विषयों पर विचार विमर्श हुआ
यह सम्मेलन 19 जनवरी 1931 को समाप्त हुआ
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – 1931
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितंबर 1931 को प्रारंभ हुआ
इस सम्मेलन में महात्मा गांधी ने कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया
इस सम्मेलन में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, पंडित मदन मोहन मालवीय, आदि नेताओं ने भी भाग लिया
इस सम्मेलन में सांप्रदायिक समस्या पर निर्णय करना एक कठिन कार्य था
मुसलमानों की भांति डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने पृथक निर्वाचन प्रणाली की मांग की
केंद्र और प्रांत के बीच अधिकारों का वितरण एवं केंद्र में उत्तरदाई शासन की स्थापना पर प्रतिनिधियों में मतभेद था
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के बाद ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडॉनाल्ड ने 15 अगस्त 1932 को सांप्रदायिक निर्णय और सांप्रदायिक पंचाट की घोषणा की
तृतीय गोलमेज सम्मेलन – 1932
17 नवंबर 1932 को प्रारंभ हुआ
इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग नहीं लिया
मुहम्मद अली जिन्ना को सम्मेलन की सदस्यता से वंचित कर दिया गया
इस सम्मेलन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन की उप समितियां की सिफारिश के आधार पर कुछ निर्णय लिए गए
यह सम्मेलन 2 दिसंबर 1932 को समाप्त हुआ
भारत शासन अधिनियम, 1935
1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित प्रांत में द्वैध शासन को समाप्त किया गया
प्रांत को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की गई
अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान किया गया
केंद्र में द्वैध शासन की व्यवस्था की गई
क्रिप्स मिशन- 1942 ई
भारतीयों में स्वतंत्रता प्राप्त करने की आकांक्षा तीव्र होती जा रही थी
द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की स्थिति कमजोर हो रही थी ऐसी स्थिति में अमेरिका के राष्ट्रपति रुजवेल्ट, चीनी राष्ट्रपति च्यांगकाई शेक, एवं ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री जैसे मित्र राष्ट्र के नेताओं ने ब्रिटेन पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह भारतीयों को सत्ता सौंपने की दिशा में कार्य करें, जिससे युद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त हो सके
जापान भारत की सीमाओं तक आ पहुंचा, ब्रिटिश सरकार जापान के आक्रमण से भयभीत हो गई
ऐसे में भारतीयों से सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 23 मार्च 1942 में सर स्टेफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा
वास्तविक शक्ति तत्काल भारतीयों को नहीं सौंप गई
महात्मा गांधी ने इसे ‘ आगे की तारीख का चेक’ कहा
भारत छोड़ो आंदोलन- 9 अगस्त 1942
प्रारंभ- 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ हुआ
इसको ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से जाना जाता है
भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा जन आंदोलन था जिसने ब्रिटिश सरकार की जड़े हिला कर रख दी
मार्च 1942 के क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीय जनता को निराश किया
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कीमतों में वृद्धि एवं आवश्यक वस्तुओं की कमी के कारण भारतीय जनता में असंतोष की भावना बढ़ गई थी
ब्रिटेन द्वितीय विश्व युद्ध में मलाया, सिंगापुर और बर्मा में पीछे हट रहा था
जापान ने इन पर अधिकार कर लिया था
गांधी जी ने कांग्रेस को अपने प्रस्ताव के स्वीकार न किए जाने की स्थिति में चुनौती देते हुए कहा कि ‘ मैं देश की बालु से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा’
वर्धा प्रस्ताव
14 जुलाई 1942 को कांग्रेस कार्य समिति ने 'अंग्रेज भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित किया
आंदोलन का प्रारंभ
7 अगस्त 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया. 8 अगस्त 1942 को बंबई के ग्वालियर टैंक में एक ऐतिहासिक सभा में महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया
9 अगस्त को तड़के ‘ऑपरेशन जीरो ओवर’ के तहत कांग्रेस के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए
गांधीजी और सरोजिनी नायडू को पुना के आगा खा महल में तथा अन्य नेताओं को अहमदनगर के किले में रखा गया और कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर दिया गया
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान यह पहला ऐसा आंदोलन था जो नेतृत्व विहीन होने के बावजूद उत्कर्ष तक पहुंचा
राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी से जन आक्रोश फैल गया
देश में बंबई , अहमदाबाद, पुना , दिल्ली, कानपुर, इलाहाबाद, पटना प्रमुख शहरों में बड़े-बड़े जुलूस निकाले गए। स्कूल कॉलेज एवं कारखाने में हड़ताल की गई। स्थान स्थान पर स्वत: स्फूर्त आंदोलन होने लगे
ब्रिटिश दमन चक्र से आक्रोशीत जनता हिंसात्मक कार्यवाहियों में लिप्त हो गई
भीड़ ने ब्रिटिश सत्ता के प्रतिको पुलिस थाने, डाकघर, न्यायालय, रेलवे स्टेशन इत्यादि पर आक्रमण किया
सार्वजनिक भवनों पर तिरंगा फहराया जाने लगा
रेलवे की प्रक्रिया उखाड़ने, पुल उड़ा देने, टेलीफोन और तार की लाइन काट देने का सिलसिला चलता रहा
सरकारी अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और मुखबिरों पर हमले हुए
समाजवादी अच्युत पटवर्धन, जयप्रकाश नारायण, डॉ राम मनोहर लोहिया, श्रीमती अरुण आसिफ अली, ने भूमिगत होकर आंदोलन में योगदान दिया
सुमति मोरारजी ने अच्युत पटवर्धन के लिए प्रतिदिन एक नई कर की व्यवस्था की और गिरफ्तार होने से बचाया
राम मनोहर लोहिया कांग्रेस रेडियो पर बोलते रहे
अरुण आसफ अली मुंबई में सक्रिय रही, उन्होंने ग्वालियर टैंक मैदान में तिरंगा फहराया
भारत छोड़ो ‘युसूफ मेहर अली’ ने दिया
आंदोलन के दौरान स्थापित समानांतरित सरकार (प्रति सरकार)
सतारा, बलिया और मिदनापुर में भारत छोड़ो आंदोलन के समय समानांतर सरकार स्थापित की गई
स्थान, नेता और अवधि
बलिया, उत्तर प्रदेश – चितु पांडे (एक सप्ताह- अगस्त 1942)
मिदनापुर, बंगाल – सतीश सामंत (17 दिसंबर 1942 से सितंबर 1944 तक)
सतारा, महाराष्ट्र – नाना पाटील (सबसे लंबे समय तक वर्ष 1945 तक)
10 फरवरी 1943 में गांधी जी ने जेल में उपवास आरंभ किया
अंग्रेज सरकार गांधी जी पर दबाव डालती रही कि वह भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई हिंसात्मक गतिविधियों की भत्सर्ना करें
गांधी का मानना था कि आंदोलन के हिंसक रूप के लिए ब्रिटिश सरकार उत्तरदाई थी
गांधी जी की रिहाई की मांग उठने लगी
वायसराय के कार्यकारिणी परिषद के तीन सदस्य M.S. एनी N.R. सरकार एवं H.P. मोदी ने इस्तीफा दे दिया
एक तरफ भारतीय जनता के विभिन्न वर्ग गांधी जी को रिहा करने की मांग कर रहे थे तो दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार गांधी जी के अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे
गांधी जी को बीमारी के आधार पर 6 में 1944 को रिहा कर दिया गया
वर्ष 1942 के अंत तक 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका था
पुलिस एवं सेवा की गोलीबारी में 10,000 से भी अधिक लोग मारे गए
मुस्लिम लीग ने इस आंदोलन में निरपेक्षता की नीति अपनाई
मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों से अपील की के वे इस आंदोलन से बिल्कुल अलग रहे, जब कांग्रेस के प्रमुख नेता जेल में थे तब जिन्ना ने मुस्लिम लीग को 23 मार्च 1946 को पाकिस्तान दिवस मनाने को कहा
साम्यवादियों ने कांग्रेस से भारत छोड़ो आंदोलन वापस लेने के लिए कहा
कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेज़ सरकार का सहयोग किया
नेतृत्व विहीन यह आंदोलन भारतीय जनता के संघर्ष एवं बलिदान का अनूठा उदाहरण है
युवा, महिलाओं, किसानो आदि विभिन्न वर्गों ने बड़ी वीरता से इस आंदोलन में भाग लिया और यातनाएं सहन की
अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने भूमिगत होकर कार्य किया
उषा मेहता कांग्रेस रेडियो चलने वाले समूह के सदस्या थी
मजदूर वर्ग की भूमिका इस आंदोलन में सक्रिय थी
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान होने वाले कार्यों की रूपरेखा हरिजन पत्रिका में K.G. मशरूवाला ने तैयार की
वेवेल योजना- 1945 ई
द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों की स्थिति दुर्बल हो रही थी आजाद हिंद फौज जापान के साथ भारत की सीमा तक पहुंच गई
इंग्लैंड में लेबर दल का प्रभाव बढ़ रहा था
आगामी चुनाव को देखते हुए ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने भारत के संवैधानिक गतिरोध को समाप्त करना चाहा
वायसराय वेवल ने जून 1945 में संवैधानिक सुधार के रूपरेखा प्रस्तुत की, जो ‘वेवेल योजना’ कहलाई
इसके अनुसार –
गवर्नर जनरल की नई कार्यकारी परिषद का गठन होगा -इसमें मुसलमान एवं सामान्य हिंदुओं की संख्या बराबर होगी, गवर्नर जनरल एवं सेना अध्यक्ष को छोड़कर सभी सदस्य भारतीय होंगे -प्रांत में मिली-जूली उत्तरदाई सरकारों की स्थापना होगी -इन प्रस्ताव का भारत के भावी संविधान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, भारत का संविधान बाद में समय भारतीय ही बनाएंगे
शिमला सम्मेलन- 1945
शिमला के विसरज लॉज में एक बैठक हुई, जिसमें वायसराय लॉर्ड वेवेल पर ब्रिटिश भारत के प्रमुख राजनीतिक नेताओं ने वेवेल योजना पर चर्चा की
विभिन्न योजना के प्रावधान पर चर्चा करने के लिए समर कैपिटल ब्रिटिश इंडिया में लॉर्ड वेवेल द्वारा 21 भारतीय राजनीतिक नेताओं को आमंत्रित किया गया
इस सम्मेलन को 1945 के शिमला सम्मेलन के रूप में जाना जाता है
नौसेना विद्रोह- 1946
18 फरवरी 1946 को तकरीबन 1100 भारतीय नाविको या HMIS तलवार के जहाजिओ और रॉयल इंडियन नेवी ने भूख हड़ताल की घोषणा की, जो की नौसेना में भारतीयों की स्थितियो और उनके व्यवहार से प्रभावित थी इस हड़ताल को ‘ स्लो डाउन’ हड़ताल में कहा जाता है, जिसका अर्थ था कि जहाजी अपने कर्तव्यों को धीरे-धीरे पूरा करेंगे
HMIS तलवार के कमांडर F.M. किंग ने कथित तौर पर नौसैनिक जहाजिओ को गाली देते हुए संबोधित किया, इस स्थिति को और भी आक्रामक रूप दे दिया
कैबिनेट मिशन 1946-
दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटेन में क्लीमेंट एटली के नेतृत्व में एक नई सरकार का गठन हुआ था
लेबर पार्टी के इस सरकार ने भारत की समस्या के स्थाई समाधान के लिए एक तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय संसदीय समिति का गठन किया था और इसे भारत भेजा था
इस समिति के तीन सदस्यों में व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष सर स्टेफोर्ड क्रिप्स, सैन्य सदस्य A.V. एलेग्जेंडर और भारत सचिव लॉर्ड पाथेटिक लॉरेंस शामिल थे
पैथिक लोरेंस को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था
भारत आने वाली तीन सदस्यों की इस समिति को इतिहास में कैबिनेट मिशन के नाम से जाना गया
यह मिशन मार्च 1946 में भारत पहुंचा था
सीधी कार्यवाही दिवस, 16 अगस्त 1946 को, मुस्लिम लीग ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ का आह्वान किया
मुस्लिम लीग द्वारा डायरेक्ट एक्शन डे, पाकिस्तान को कानूनी तरीकों से नहीं तो हिंसक माध्यम से प्राप्त करने के लिए था
मोहम्मद अली जिन्ना ने घोषणा की कि या तो हमारा भारत विभाजित भारत या नष्ट भारत होगा
एटली की घोषणा- 1946
फरवरी, 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में कैबिनेट मिशन भेजने की घोषणा की
इस मिशन को विशिष्ट अधिकार दिए गए थे तथा इस मिशन का कार्य भारत को शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के उपाय एवं संभावनाओं को खोजना था
माउंटबेटन योजना- 1947
मई, 1947 में इस योजना के तहत माउंटबेटन ने पंजाब, बंगाल के साथ अलग-अलग प्रांत को सत्ता हस्तांतरण की परिकल्पना की, जिसमें उसके प्रांत के विभाजन के लिए वोट देने का विकल्प दिया गया था
इस प्रकार रियासत के साथ गठित विभिन्न इकाइयों के पास भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या अलग रहने का विकल्प था
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