मध्यकालीन भारत का इतिहास (Medieval India):मध्यकालीन भारत का इतिहास (Medieval India) के संबंध में विभिन्न जानकारी अपडेट की जाती है। इसमें भारत का भूगोल मध्यकालीन भारत का इतिहास (Medieval India) से संबंधित नोट्स, शॉर्ट नोट्स और मैपिंग के द्वारा विस्तृत अध्ययन करवाया जाता है। क्वीज टेस्ट के माध्यम से अपनी तैयारी पर रखने का बेहतरीन अवसर। आज ही अपनी तैयारी को दमदार बनाने के लिए पढ़िए मध्यकालीन भारत का इतिहास (Medieval India)
सल्तनत काल
भारत में इस्लामिक शासन प्रारम्भ
दिल्ली से होने वाले तुर्कों के शासन को दिल्ली सल्तनत की संज्ञा दी गई और 13-16वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत के इतिहास को साधारणतया इसी नाम से पुकारा जाता है।
हबीबुल्लाह ने आरम्भिक तुर्क शासन को ‘मामलूक’ शासन कहा है। मामलूक फारसी शब्द है। मामलूक – गुलाम माता-पिता की स्वतंत्र संताने।
(गुलाम वंश)
शासक का नाम और कालवधि
कुतुबुद्दीन ऐबक 1206-1210 ई.
आराम शाह 1210–1211 ई.
इल्तुतमिश1211–1236 ई.
रुकनुद्दीन फिरोज1236 ई.
रजिया1236-40 ई.
बहरामशाह1240-1242 ई.
अलाउद्दीन मसूदशाह1242-1246 ई.
नासिरुद्दीन महमूद1246-1266 ई.
बलबन1266 – 87 ई.
कैकुबाद1287-90 ई.
कैयूमर्स1290 ई.
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210) :
1206 में तुर्की गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का उत्तराधिकारी बना।
उसने सुल्तान का पद धारण न कर ‘मलिक’ तथा ‘सिपहसालार’ के पद से शासन किया इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
उसका राज्याभिषेक लाहौर में हुआ।
उसे भारत का प्रथम मुस्लिम शासक भी माना जाता है।
अपनी उदारता तथा दानी स्वभाव के कारण वह लाखबख्श तथा ‘हातिम द्वितीय’ के नाम से भी जाना जाता है।
कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद’ तथा ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ के निर्माण का श्रेय ऐबक को है।ऐबक का मकबरा लाहौर में है।
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश : (1210 – 1236)
इल्तुतमिश इल्बरी तुर्क था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक लाख जीतल में इल्तुतमिश को खरीदा तथा उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह किया।
सुल्तान बनने से पूर्व इल्तुतमिश बदायूँ का सुबेदार था।
यह दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था जिसने ”सुल्तान” की उपाधि धारण की।
इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम लाहौर के स्थान पर ‘दिल्ली’ को अपनी राजधानी बनाया।
दिल्ली राजधानी स्थानान्तरित करने के कारण इसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
इल्तुतमिश ने ‘सुल्तान’ व ‘नासिर-आमिर-उल मौमनिन’ की उपाधि धारण की।
इल्तुतमिश ने अपने प्रशासन को सुव्यवस्थित व सुचारू चलाने के लिए 40 वफादार सरदारों का एक दल “तुर्कान-ए-चिहलगानी” (चालीस दल) का गठन किया जिसे बाद में बलबन ने समाप्त कर दिया था। बरनी ने इसे ‘तुर्कान-ए-चहगानी’ कहा ।
“इक्ता” का सर्वप्रथम प्रयोग मोहम्मद गौरी ने किया किन्तु इसे संस्था का रूप इल्तुतमिश ने दिया।
राज्य के अधिकारियों व सैनिकों को वेतन के बदले दी जाने वाली जमीन/जागीर – ‘इक्ता’ कहलाती थी। इसका प्रमुख ‘इक्तेदार’ कहलाता था।
वह पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के जारी किए तथा टकसाल का नाम सिक्कों पर लिखवाने की परम्परा शुरू की।
इल्तुतमिश ने चांदी का टंका (175 ग्रेन) एवं ताँबे का जीतल प्रारंभ किया।
इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार का निर्माण पूरा करवाया तथा इसके ऊपर 3 मंजिले और बनवाई।
कुतुबमीनार का वास्तुकार फजल इब्न-अबुल माली था।
इल्तुतमिश को मकबरा निर्माण शैली का जन्मदाता माना जाता है।
इल्तुतमिश ने सुल्तानगढ़ी में अपने पुत्र नासिरुद्दीन महमूद का मकबरा बनवाया जो सल्तनत काल का प्रथम मकबरा है।
रजिया (1236-1240) :
वह मध्यकालीन भारत की पहली तथा अंतिम मुस्लिम महिला शासक थी।
बलबन (1266-1287) :
बलबन के सिंहासन पर बैठने के साथ ही एक शक्तिशाली केन्द्रित शासन का युग आरम्भ हुआ इल्बरी तुर्क थाकुलीन घरानों तथा प्राचीन वंशों के व्यक्तियों से अपने को संबंधित करने के लिए बलबन ने प्रसिद्ध तुर्की योद्धा अफरासियाब का वंशज घोषित किया।
बलबन का मुख्य कार्य चहलगानी या तुर्की सरदारों की शक्ति भंग कर सम्राट की शक्ति एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाना था। बलबन ने सैन्य मंत्रालय दीवान-ए-अर्ज बनाया।
उसने ‘लौह एवं रक्त’ की नीति अपनाई।
तुर्क अमीरों के प्रभाव को कम करने के लिए बलबन ने सिजदा (घुटने पर बैठकर सिर झुकाना) तथा पेबोस (सम्राट के सामने झुककर पाँव को चूमना) की प्रथा आरम्भ की जो मूलतः ईरानी एवं गैर इस्लामी था।
कुतुबमीनार – कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश (दिल्ली)
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा – कुतुबुद्दीन ऐबक (अजमेर)
लाल महल – बलबन (दिल्ली)
अलाई दरवाजा – अलाउद्दीन खिलजी (दिल्ली)
जमातखाना मस्जिद – अलाउद्दीन खिलजी (दिल्ली)
सिकन्दर लोदी का मकबरा- इब्राहिम लोदी (दिल्ली)
सुल्तानगढ़ी- इल्तुतमिश
हौज-ए-शम्सी- इल्तुतमिश
अतारकिन का- दरवाजा इल्तुतमिश
हौज-ए-खास- अलाउद्दीन खिलजी
तुगलकाबाद- गयासुद्दीन तुगलक
आदिलाबाद का किला- मुहम्मद बिन तुगलक
जहांपनाह नगर- मुहमद बिन तुगलक
कोटलाफिरोजशाह- फिरोजशाह तुगलक
खान-ए-जहां तेलंगानी का मकबरा (अष्टभुजीय)- जूनाशाह
काली मस्जिद- फिरोजशाह तुगलक
उसने नौरोज (फारसी) प्रथा को भी आरम्भ किया।
बलबन ने राजत्व को दैवी संस्था मानते हुए राजा को नियामते खुदाई (ईश्वर का प्रतिनिधि) घोषित किया।
उसने सिक्कों पर खलीफा का नाम खुदवाया।
बाद में तुर्क सरदारों ने उसके पुत्र शम्सुद्दीन कैयूमर्स को सुल्तान घोषित किया।
जलालुद्दीन खिलजी ने क्यूमर्स की हत्या कर खिलजी राजवंश की स्थापना की।
(खिलजी वंश)
जलालुद्दीन खिलजी (1290-1296) :
जलालुद्दीन खिलजी ने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया।
वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने अपने विचारों को स्पष्ट रूप से रखा कि राज्य का आधार प्रजा का समर्थन होना चाहिए चूँकि भारत की अधिकांश जनता हिन्दू थी, अतः सही अर्थोंमें यहाँ कोई राज्य इस्लामी राज्य नहीं हो सकता था।
देवगिरी के सफल अभियान के बाद जब अलाउद्दीन वापस आ रहा था तो सुल्तान स्वयं उससे मिलने कड़ा गया जहाँ अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा से गले मिलते समय हत्या कर दी।
अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) :
अलाउद्दीन खिलजी पहले कड़ा का गवर्नर था।
बचपन में वही अली गुरशस्प नाम से प्रसिद्ध था।
उसका राज्याभिषेक बलबन के लाल महल में हुआ था।
उसने सिकन्दरसानी द्वितीय सिकन्दर की उपाधि धारण की।
अलाउद्दीन खिलजी के प्रमुख अभियान
उसने 1298 ई. में गुजरात के रायकर्ण, 1300-1301ई. में रणथम्भौर के हम्मीरदेव, 1303 ई. में चित्तौड़ के रतनसिंह, 1305 ई. में मालवा के महलक देव तथा सिवाना के शीतलदेव एवं 1311ई. में जालौर के कान्हड़देव पर आक्रमण किया।
अलाउद्दीन प्रथम मुस्लिम शासक था जिसने दक्षिणी राज्यों पर आक्रमण किया।
उसने देवगिरी पर आक्रमण कर रामचन्द्र को पराजित किया तथा उसे ‘राय रायान’ की उपाधि प्रदान की। 1310 ई. में उसने वारंगल के काकतीय शासक प्रताप रुद्रदेव को पराजित किया। यहीं से विश्वप्रसिद्ध ‘कोहिनूर’ हीरा प्राप्त हुआ।
दक्षिणी राज्यों में आक्रमण का नेतृत्व मलिक काफूर द्वारा किया गया।
दक्षिणी राज्यों से धन वसूला गया न कि उसे सल्तनत में शामिल किया गया।
अलाउद्दीन के प्रशासनिक सुधार :
उसने धर्म को राजनीति से अलग किया।
दीवान-ए-रियासत विभाग की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने ही की थी जो व्यापार वाणिज्य मंत्रालय था।
सैन्य व्यवस्था में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए उसने दाग तथा हुलिया प्रथा की शुरुआत की।
उसने सेना की सीधी भर्ती एवं नकद वेतन देने की प्रथा को आरम्भ किया।
बाजार नियंत्रण प्रणाली
अलाउद्दीन खिलजी की प्रमुख आर्थिक देन बाजार नियंत्रण नीति है।
वित्तीय एवं राजस्व सुधारों में रुचि लेने वाला पहला सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी था।
अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण नीति के स्रोत
अमीर खुसरो की खजाइन-उल फुतूह
जियाउद्दीन बरनी की तारीख-ए-फिरोजशाही
बाजार नियंत्रण से संबंधित अधिकारी
दीवान-ए- रियासत
शहना-ए- मण्डी
बरीद-ए-मण्डी
वह प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की वास्तविक आय पर राजस्व निश्चित किया। भूमि पर उपज का 50% भूमिकर या खिराज के रूप में लेने की घोषणा की गई जिसे जाबिता/मसाहत प्रणाली कहा जाता है।
तुगलक वंश
गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.) :
गाजी मलिक ने सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक शाह की उपाधि धारण कर सल्तनत के तीसरे राजवंश की स्थापना की।
वह प्रथम शासक था जिसने सिंचाई के लिए नहरों के निर्माण की योजना बनाई।
उसने तुगलकाबाद के नगर-दुर्ग का निर्माण करवाया।
मुहम्मद बिन तुगलक (1325-1351 ई.) :
मुहम्मद बिन तुगलक अन्तर्विरोधों का विस्मयकारी मिश्रण, रक्तपिपासु या परोपकारी या पागल भी कहा गया है। निजामुद्दीन औलिया ने गयासुद्दीन तुगलक के बारे में कहा था कि ’दिल्ली अभी बहुत दूर है।
गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जौना खाँ मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से सत्ता पर आसीन हुआ।
उसके बारे में बरनी के ’तारीख-ए-फिरोजशाही’ तथा इब्नबतूता के ’रेहला‘ से जानकारी मिलती है।
अफ्रीकी यात्री इब्न बतूता को सुल्तान ने दिल्ली का काजी नियुक्त किया तथा 1342 ई. में वह सुल्तान के राजदूत की हैसियत से चीन गया था।
मुहम्मद बिन तुगलक अपनी पाँच योजनाओं के लिए प्रसिद्ध है।
सुल्तान का सबसे विवादास्पद निर्णय राजधानी परिवर्तन का था जिसके तहत राजधानी को दिल्ली से देवगिरि (दौलताबाद) स्थानान्तरित कर दिया गया।
सुल्तान की दूसरी परियोजना थी प्रतीक मुद्रा का प्रचलन।
सुल्तान की तीसरी परियोजना खुरासान अभियान थी।
कराचिल अभियान के तहत सुल्तान ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक विशाल सेना कुमायूँ-गढ़वाल क्षेत्र में स्थित कराचिल को जीतने के लिए सेना भेजी गई।
अंतिम परियोजना के तहत सुल्तान ने ‘दोआब क्षेत्र’ में कर वृद्धि कर दी।
दुर्भाग्यवश इसी समय अकाल पड़ गया तथा अधिकारियों द्वारा जबरन वसूली के कारण उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया तथा परियोजना असफल रही।
कृषि में विस्तार तथा विकास के लिए ‘दीवान-ए-अमीर-ए कोही’ नामक विभाग की स्थापना की गई।
मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में ही दक्षिण में 1336 में हरिहर तथा बुक्का नाम के दो भाइयों ने स्वतंत्र विजयनगर राज्य की स्थापना की।
सल्तनतकालीन पुस्तकें
तबकात – ए – नासिरी- मिनहाज – उल – सिराज (फारसी)
तारीख – ए – फिरोजशाही- जियाउद्दीन बरनी (फारसी)
खजान – ए – फुतूह- अमीर खुसरो (फारसी)
नूहसिपेहर- अमीर खुसरो (फारसी)
आशिका-cअमीर खुसरो (फारसी)
तारीख – ए – यामिनी- उत्वी
जफरनामा- सारफुद्दीन अली याजिद
फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) –
इसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगा दिया था।
सिंचाई पर भी ‘हक-ए-शर्ब’ नामक सिंचाई कर लगाया गया।
सेना को नकद वेतन के बदले भू-राजस्व वाले गाँव दिए जाते थे।
निर्धनों की सहायता के लिए उसने ‘दीवान-ए-खैरात’ विभाग की स्थापना की।
फिरोजाबाद, जौनपुर, हिसार, फतेहाबाद आदि नगरों की स्थापना भी उसी के शासनकाल में हुई।
उसके शासनकाल में ही मेरठ एवं टोपरा में स्थित अशोक स्तम्भों को दिल्ली लाकर स्थापित किया गया।
दासों के संरक्षण हेतु ‘दीवान-ए-बंदगान’ नामक एक अलग विभाग की स्थापना की गई।
सैय्यद वंश (1414-1451 ई.) :
खिज्र खाँ सैयद वंश का संस्थापक था।
तत्पश्चात् मुबारकशाह (1421-1434 ई.) उसका उत्तराधिकारी बना।
अंतिम सैय्यद शासक शाह आलम को गद्दी से उतारकर वजीर बहलोल लोदी ने नए राजवंश की नींव रखी।
लोदी वंश
बहलोल लोदी (1451-1489 ई.) :
बहलोल लोदी अफगानिस्तान के गिलजाई कबीले की शाखा शाहूखेल में पैदा हुआ था।
उसने जौनपुर के शर्की शासक को पराजित कर जौनपुर को पुनः सल्तनत में शामिल किया।
सिकन्दर लोदी (1489-1517 ई.) :
उसने 1504 ई. में आगरा नगर का निर्माण करवाया तथा उसके बाद अपनी राजधानी को आगरा स्थानान्तरित कर दिया।
भूमि माप के लिए उसने ‘सिकन्दरी गज’ का प्रयोग किया।
वह ‘गुलरुखी’ नाम से कविताएँ लिखता था।
इब्राहिम लोदी (1517-1526 ई.) :
पानीपत के प्रथम युद्ध में तैमूरवंशी शासक बाबर के साथ हुए युद्ध में 21 अप्रैल, 1526 को इब्राहिम लोदी पराजित हुआ।
Tags: सल्तनत काल | मध्यकालीन भारत का इतिहास (Medieval India)