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क्षेत्रीय शक्तियाँ, उत्तरकालीन मुगल बादशाह
क्षेत्रीय शक्तियाँ, उत्तरकालीन मुगल बादशाह
बहादुरशाह (1707 से 1712 ई.)
जाजऊ के युद्ध (1707 ई) में आजम को पराजित कर मुअज्जम बहादुरशाह की उपाधि के साथ दिल्ली का बादशाह बना
बहादुर शाह 65 वर्ष की आयु में बादशाह बना (सर्वाधिक आयु में बादशाह बनने वाला शासक)
उन्होंने गोविंद गुरु सिंह के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध तथा जोधपुर के शासक अजीत सिंह को शासन स्वीकार किया। आमेर के उत्तराधिकारी संघर्ष में जय सिंह का समर्थन किया
इतिहासकार खाफी खा के अनुसार यह अपने कार्यों के प्रति इतना लापरवाह था कि लोग इसे शाहे बेखबर (उपाधि) कहते थे सिडनी ओवन के अनुसार यह अंतिम मुगल शासक था, जिसके बारे में अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं
जहांदारशाह (1712 से 1713 ई)
ईरानी अमीर जुल्फिकार खा की सहायता से बादशाह बना
इतिहासकार ताराचंद ने इसे लंपट मूर्ख कहा है
फरुखसियर (1713 से 1719 ई)
सैय्यद बंधुओं की सहायता से बादशाह बना
सैय्यद बंधु इतिहास में ‘राजा बनाने वाले’ के नाम से जाने जाते हैं
इसने बंदा बहादुर की निर्मम हत्या की। इसके कारण इसे घृणित कायर भी कहा जाता है
रफी उद्द दरजात (1719 ई)
मुगल बादशाह में सबसे कम शासन काल रहा (चार माह)
रफी उद्द दोला (1719 ई)
उपाधि- शाहजहां द्वितीय
मुंहम्मद शाह रंगीला (1719 से 1748 ई)
इसने तुरानी गुट के साथ मिलकर सैय्यद बंधु की हत्या कर दी
इसके समय मुगल साम्राज्य कई भागों में विभक्त हो गया
राज्य और उनका शासन
बंगाल – मुर्शीद कुली खा
हैदराबाद – निजाम अल मुल्क
अवध – सआदत खा
कर्नाटक – सादतुल्ला खा
भरतपुर – बदन सिंह
रुहेलखंड – वीर दाऊद
1734 ईस्वी में नादिर शाह ने आक्रमण किया नादिर शाह कोहिनूर हीरा और मयूर सिंहासन ले गया इसके दरबार में सदारंग और अदारंग मुख्य संगीतकार थे
अहमद शाह अब्दाली (1748 से 1754)
इसने अवध के सूबेदार सफदरजंग को वजीर बनाया
उधम बाई (नृत्यकी) इसके कार्यों में हस्तक्षेप करती थी
इसके बाद आलमगीर द्वितीय शासक बना
शाहआलम द्वितीय (1759 से 1806 ई)
अंग्रेजों का पेंशनर बनने वाला प्रथम मुगल बादशाह
1764 ईस्वी में बक्सर के युद्ध में भाग लिया
अकबर द्वितीय (1806 ई से 1837 ई)
इसके शासनकाल में मुगल सिक्के 1835 ईस्वी में बंद हो गए
राजा राममोहन राय को राजा की उपाधि दी थी
बहादुर शाह द्वितीय (1837 से 1857 ई)
जफर उपनाम से कविता लिखना था
हसन खा इनका आध्यात्मिक गुरु था
1857 की क्रांति में विद्रोहियों ने इस बादशाह घोषित किया
अंग्रेजों ने रंगून भेज दिया तथा 1862 में वहीं पर मृत्यु हो गई
बंगाल
मुर्शीद कुली खा ने मुर्शिदाबाद को बंगाल की राजधानी बनाया
अलीवर्दी खा के काल में बंगाल दिल्ली से पूर्ण स्वतंत्र हो गया
अलीवर्दी खा ने कहा ‘ वह अंग्रेजों को बंगाल भूमि से निकाल तो सकता है, परंतु समुद्र में आग लग जाएगी’
सिराजुद्दौला के समय दस्तक (कर में रियासत का लाइसेंस) अंग्रेजों को प्रदान किया लेकिन अंग्रेजों ने इसका दुरुपयोग किया इसीलिए नवाब ने कलकता पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम अलीनगर कर दिया
अलीनगर की संधि- 9 फरवरी 1757 में सिराजुद्दौला और रॉबर्ट क्लाइव के मध्य हुई
ब्लैक होल की घटना- 20 जून 1756 को हुई
प्लासी का युद्ध- 23 जून 1757 को क्लाइव और सिराजुद्दौला के मध्य हुआ
इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई, सिराजुद्दौला मारा गया तथा मीर जाफर बंगाल का नया नवाब बना
के एम पणिकर - के अनुसार प्लासी का युद्ध, एक युद्ध नहीं बल्कि एक विश्वासघात था
मीर कासिम ने राजस्व अधिकारियों से ‘खिजरी जमा’ नामक कर वसूला था
मीर जाफर को क्लाइव का गीदड़ कहा जाता है
मीर कासिम ने यूरोपीय पद्धति पर सी को प्रशिक्षित किया
बक्सर का युद्ध- 1764
मीर कासिम (बंगाल) + शाह आलम II V/S अंग्रेज (हेक्टर मुनरो) + शुजाउद्दौला (अवध)
इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई
अवध
स्वतंत्र अवध राज्य की स्थापना 1722 ईस्वी में सआदत खा ने की
इसके समय राजधानी फैजाबाद थी
1773 ईस्वी में शुजाउद्दौला और वारेन हेस्टिंग के बीच बनारस की संधि हुई
अंग्रेजों ने अवध को “बफर स्टेट” के रूप में रखा
अवध का अंतिम नवाब वाजिद अली शाह था जो रंगीलाशाह के नाम से प्रसिद्ध था
वाजिद अली शाह के समय आउट्रम रिपोर्ट के आधार पर लॉर्ड डलहौजी ने कुशासन का आरोप लगाकर 1856 ईस्वी में अवध का विलय कर दिया
हैदराबाद
हैदराबाद के स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1724 ईस्वी में चिनकिलिच खा की (निजाम उल मुल्क)
हैदराबाद प्रथम भारतीय रियासत थी जिसने 1789 ईस्वी में सहायक संधि स्वीकार की (नवाब निजाम अली)
स्वतंत्रता के बाद हैदराबाद रियासत भारत में मिलने को तैयार नहीं थी, वह पाकिस्तान के साथ मिलना चाहती थी, 13 सितंबर 1948 को भारत ने निजाम के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई की, इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया। अंत में नवंबर 1948 में हैदराबाद भारतीय संघ में शामिल हो गया
मैसूर
यह पहले विजयनगर साम्राज्य के अधीन था
राजा वाडियार ने सर्वप्रथम मैसूर के राजा की उपाधि ली
वाडियार वंश के अंतिम शासक कृष्णा राज-II (चिक्का राजा) के समय सत्ता देवराज और नंदराज के पास थी
हैदर अली ने कहा- अंग्रेजों को पहले अकार्ट से बाहर निकलेंगे, फिर भारत से
प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध (1767 से 1769 ई)
इस युद्ध में मराठा तथा निजाम (हैदराबाद) अंग्रेजों की तरफ थे, लेकिन हैदर अली ने कूटनीति का प्रयोग करते हुए इन्हें अलग कर दिया तथा मद्रास को घेर लिया तथा अंग्रेजों को मद्रास के साथ संधि करनी पड़ी
द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780 से 1784)
कारण- अंग्रेजों ने मैसूर के पास स्थित फ्रांसीसी कोठी माहे पर अधिकार कर लिया
इस समय अमेरिका में स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था तथा फ्रांस अमेरिका के पक्ष में तथा इंग्लैंड का विरोध कर रहा था
माहे पर अधिकार को लेकर हैदर अली ने विरोध किया तथा मराठा और निजाम से मिलकर अंग्रेज सेनापति कर्नल बेली को हरा दिया
पोर्टोनोवा युद्ध (1781 ई)
इसमें अंग्रेज सेनापति आयरकूट ने हैदर अली को हरा दिया
हैदर अली की मृत्यु के बाद टीपू सुल्तान ने संघर्ष जारी रखा तथा अंत में 1784 ईस्वी में मंगलौर की संधि कर ली
मंगलौर संधि के समय बंगाल का गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग था
टीपू सुल्तान (1782 से 1799)
टीपू के सिक्कों पर हिंदू देवी देवताओं के चित्र थे
टीपू ने सक्रिय विदेश नीति के अनुरूप शासन किया तथा तुर्की मिश्र और फ्रांस के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किया
टीपू फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर जैकोबिन क्लब का सदस्य बन गया
टीपू सुल्तान ने श्रीरंगपटनम में स्वतंत्रता का वृक्ष लगाए
टीपू ने श्रृंगेरी के मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया
टीपू सुल्तान को शेर ए मैसूर कहा जाता है
टीपू ने कहा- 'भैड की तरह लंबी जिंदगी जीने के बजाय बेहतर है कि शेर की तरह एक दिन जीना'
तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1790 से 1792 ई)
कारण- टीपू सुल्तान ने त्रावणकोर के राजा पर अधिकार कर लिया अंग्रेजों ने त्रावणकोर के राजा का साथ दिया
अंत में अंग्रेजों और टीपू सुल्तान के मध्य श्रीरंगपट्टनम की संधि के तहत युद्ध समाप्त किया गया
संधि के तहत टीपू सुल्तान को युद्ध में हर्जाना देना पड़ा
संधि पर कार्नवालिस ने कहा- हमने अपने मित्रों को शक्तिशाली किए बिना दुश्मन को कुचल दिया
चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (1799 ई)
कारण- टीपू सुल्तान पर फ्रांसीसियों का सहयोग करने का आरोप
युद्ध में अंग्रेजों ने टीपू को मार दिया
युद्ध के बाद वेलेजली ने कहा- पूर्व का साम्राज्य हमारे पैरों में है एवं अब भारत हमारा है
पंजाब
गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद बंदा बहादुर ने सिखों का नेतृत्व किया
फरुखसियर ने बंदा बहादुर की हत्या कर दी जिसके बाद 12 मिसलो में विभाजित हो गए
महाराणा रणजीत सिंह सुकरचकिया मिसल से थे
जमान शाह ने 1799 ईस्वी में रणजीत सिंह को राजा की उपाधि दी और लाहौर का राजा बनाया
रणजीत सिंह ने 1805 में भंगी मिसल से लाहौर छीन लिया तथा अपनी राजधानी बनाया
अमृतसर की संधि – 1809 ई
रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य
गवर्नर जनरल- लॉर्ड मिंटो
संधि का प्रतिनिधि- चार्ल्स मेटकॉफ
इसमें रणजीत सिंह ने सतलज के पूर्व में अपने दावे को छोड़ दिया
रणजीत सिंह का एकीकृत सिख राज्य का सपना टूट गया
संधि के कारण पंजाब में शांति स्थापित हुई
1804 ईस्वी में अफगानिस्तान के शासक ने रणजीत सिंह से सहायता मांगी तथा कोहिनूर हीरा भेंट किया
1839 ईस्वी में रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई
रणजीत सिंह खालसा नाम से शासन करता था रणजीत सिंह के वित्त मंत्री- दीनानाथ, विदेशी मंत्री- अजीजुदीन इनकी सेना एशिया की दूसरी सबसे शक्तिशाली सेना थी
प्रथम आंग्ल सिख युद्ध (1845 से 1846)
दिलीप सिंह के समय अंग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण किया
1846 ईस्वी में सबराओ के युद्ध में सिखों की निर्णायक हार हुई
लाहौर की संधि- 9 मार्च 1846
दिलीप सिंह को राजा स्वीकार किया
सतलज नदी के दक्षिण के सभी प्रदेश अंग्रेजों के अधिकार में
रानी जिंदा को दिलीप सिंह की संरक्षिका बनाया
सिख सेना में कटौती हो गई
*- भोरोंवाल की पूरक संधि में अंग्रेजों ने स्पष्ट किया कि दिलीप सिंह के वयस्क होने तक ब्रिटिश सेना लाहौर में रहेगी
द्वितीय आंग्ल सिख युद्ध
मुल्तान के गवर्नर मूलराज ने विद्रोह कर दिया
द्वितीय आंग्ल सिख के समय गवर्नर जनरल- लॉर्ड डलहौजी