प्राचीन इतिहास (Ancient history):प्राचीन इतिहास (Ancient history) के संबंध में विभिन्न जानकारी अपडेट की जाती है। इसमें भारत का भूगोल प्राचीन इतिहास (Ancient history) से संबंधित नोट्स, शॉर्ट नोट्स और मैपिंग के द्वारा विस्तृत अध्ययन करवाया जाता है। क्वीज टेस्ट के माध्यम से अपनी तैयारी पर रखने का बेहतरीन अवसर। आज ही अपनी तैयारी को दमदार बनाने के लिए पढ़िए प्राचीन इतिहास (Ancient history)
इतिहास- एक नजर, सब कवर
इतिहास
- मानव जीवन को प्रभावित करती हो
- क्रमबद्धता
- साक्ष्य
I पुरातात्विक
II साहित्यक
III विदेशी विवरण
अभिलेख
- किसी भी कठोर सतह उत्कीर्ण लेख
- शिलालेख
- गुहालीलेख
- मुद्राभीलेख
- स्तंभ
शिलालेख-
14 संख्या- 8 स्थान
गुहाभिलेख-7
स्तंभलेख
- चमकदार पॉलिश
- पशुमुर्ति
- अवांगमुखी कमल
- चुनार पीले पत्थर
- 7 लाइन
- 6 स्थान
भीतिचित्र:
भीमबेटका (M.P) प्राचीनत्तम साक्ष्य
- स्मारक, दुर्ग
- मोहर, सिक्के
- मृदभांड
साहित्यक साक्ष्य:
- धार्मिक
- -धार्मिक ग्रंथ
- धर्मेत्तर
- -कालिदास
- -कौटिल्य
विदेशी विवरण:
- मेगस्थनीज- इण्डिका
- फाहियान- फो- को- की
- ह्वेनसांग- सि-यू-की
इतिहास
इति (इस प्रकार) + ह (निश्चिय ही/वास्तव में) + आस (किसी घटना का घटित होना)
इतिहास है ?
- अतीत की घटनाओं का अध्ययन
- अतीत की घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन
- अतीत की घटनाओं का क्रमबद्ध अध्ययन जिसके साम्य मौजूद हो
- अतीत की घटनाओं का वर्तमान की घटनाओं के साथ क्रमबद्ध अध्ययन जिसके साक्ष्य मौजूद हो
इतिहास- 3 भाग
- प्रागैतिहास (प्राचीनतम)
- लिखा नहीं जा सका
- वह काल जिसके लिखित साम्य भौजूद नहीं।
- आद्य प्रागैतिहासिक काल (प्राचीन)
लिखा जा सका
पढा नहीं जा सका - ऐतिहासिक (आधुनिक/वर्तमान)
- लिखा जा सका
- पढा जा सका
- पुरातात्विक साक्ष्य
प्रागैतिहास: (प्राचीनत्तम)
- ज्ञात इतिहास से पूर्व का इतिहास
- उद्द्घाटित :- डा० प्राइम रोज
- 1842 कर्नाटक (रायचूर), लिंगसुगर से पाषाणकालीन औजार मिले (फलक, छुरे, खुरचनी इत्यादी)
पाषाणकाल: पत्थरों का युग (3 भागों में विभाजित)
- पुरापाषाण
- आदिम मानव की उत्पत्ति
- शिकार [औजार (बड़ा) हस्तकुठार]
- दयनीय
- यायावर
- केवल उपभोक्ता के रूप में
- प्रमुख स्थल- भीमबेटका, डीडवाना, जायल, बूढा पुष्कर, डेगाना
- मध्यपाषाण
- समूह
- पशुपालन (पालतु- श्वान/कुत्ता) – आजमगढ़
- शिकार
- बागौर (राज) से प्राचीनतम साक्ष्य मिले
- यायावर
- औजार- छोटा (1-4/6 inch)
- सूक्ष्मपाषाण (मेकोलियस) फ्लुटिन- बनाने की तकनीक
- भारतीय इतिहास का संक्रमणकालीन चरण
- आदिमानव उपभोक्ता के रूप में
- प्रमुख स्थल- आजमगढ़ (बागौर), सांभर (वृक्षरोपण के साक्ष्य)
- चिरांद (बिहार)- औज़ार- हड्डी
3. नवपाषाण
आग
स्थाई बसावट (साक्ष्य- मेहरगढ(पाक)
कृषि/खेती
तांबा
पहिए
आदिमानव उपभोक्ता के साथ-साथ उत्पादक के रूप में
खाद्य संग्रह करने लगा
गेहूं तथा जो की कृषि
दक्षिण भारत में रागी नमक फसल के साक्ष्य
खाद्य संग्रह के लिए मृदभांड का निर्माण
प्रमुख स्थल- बुर्जहोम(जम्मू कश्मीर) जन्मस्थान,
मानव के साथ कुत्ते के शवादान के साक्ष्य (प्राचीनत्तम्), गर्तावास निवास, गुफ्फ्कराल (कुम्हार की गुफा)
चावलः 3 प्रकार के प्रश्न
- प्राचीनतम साक्ष्य:- कोल्डीहवा (U.P)
- प्रथम साक्ष्य:- लोथल (गुजरात)
- जले हुए चावल: कालीबंगा (Raj)
- श्वान (कुत्ता): मानव के शवादान
- प्राचीनतम :- बुर्जहोम (JK)
- प्रथम :- रोपड़ (पंजाब)
आदिम मानवः
भारत-
- प्राचीनत्तम (उत्पत्ति) : अफ्रीका ऑस्ट्रेलोपिथिकस
- नर्मदा घाटी (1982 डा. अरुण सोनकिया)- हथनौरा से आदिमानव की खोपड़ी प्राप्त की गई
*-भारत में साक्ष्य रामापिथेकस कहा गया
आद्य प्रागैतिहासिक काल:
- वह काल जिसके लिखित साक्ष्य मौजूद, परन्तु पढा नहीं जा सका
सिन्धु घाटी सभ्यता
- लिपि- भावचित्रात्मक, चित्राक्षर
- सर्पिलाकार लिपि के नाम से जाना जाता है
- प्रथम लाइन दाएं से बाएं (खरोष्ठी लिपि)
- द्वितीय लाइन बाएं से दाएं (ब्राह्मी लिपि)
- गोमूत्रि लिपि और ब्रुस्टोफेदम (खरोष्ठी और ब्राह्मी
- का मिश्रण) के नाम से जानी जाती हैं
- 64 मूल चिन्ह
- 250-400 चित्राक्षर
- प्रथम बार पढ़ने का प्रयास वेडेन महोदय (असफल) के द्वारा किया गया
- नटवर झा (असफल) पहले ऐसे भारतीय व्यक्ति थे, जिन्होंने इस लिपि को पढ़ने का प्रयास किया
- सर्वाधिक चित्राक्षर उल्टे यू आकार में होते हैं
इस लिपि के साक्ष्य
- हड़प्पा कब्रिस्तान से मिले
- धोलावीरा से सूचनापट्ट मिला
सिन्धु का अतीतः-
- मेसोपोटामिया (5-6- ई.पू.) – दजला(युफरेटस) व फरान (टिंगरस)
- मिश्र, नील नदी के किनारे
- भारत (सिंधु), सिंधु नदी के किनारे
- चीन हाँग-हो नदी के किनारे
कुनाल (हरियाणा)- मृदभांड, समय 8000 ईसा पूर्व
- 1826 चार्ल्स मैसन- 1842 (लेखप्रकाशित) हड़प्पा नामक प्राचीनत्तम नगर
- 1834 बर्नेश- नदी के किनारे- ध्वस्त किले..
- 1851-1856 ए. कनियम- सर्वेक्षण + मानचित्र
- 1861 भा० पु. विभाग स्थापना
- भा०पु० जनक
1856 कराची- लाहौर (मुल्तान) रेल्वे लाइन
- कार्य- जॉन और विलियम (बर्टन बंधु के नाम से प्रसिद्ध) के द्वारा किया गया
- कार्य के दौरान पास में स्थित एक टीला (जो हड़प्पा के नाम से जाना गया), इस टीले से ईंटें आने के आदेश मजदूरों को मिले और एक सभ्यता अस्तित्व में आई
1899-1905 - लॉर्ड कर्जन
1904 - भा.पु. सर्वेक्षण विभाग
- भारत प्राचीन स्थल, दुर्ग, स्मारक, संरक्षण, सर्वेक्षण
जॉन मार्शल:-
- दयाराम साहनी…
- -1921 हड़प्पा खोज
- -1922 मोहनजोदड़ो
- 1922 राखालदास बनर्जी-
- माधोस्वरूप वत्स
- मार्टिन हीलर
5.अर्नेष्ट मेके
- मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ है “मुर्दों का टीला”
सिंधु घाटी सभ्यता का नामकरण- प्रमुख रूप से तीन नाम प्रयुक्त
- सिंधु सभ्यता, 1924-25
- जॉन मार्शल के द्वारा दिया गया
- साप्ताहिक समाचार पत्र “द लंदन वीकली” में प्रकाशित- (निदेशक: जॉन मार्शल)(1932)
- सिंधु घाटी सभ्यता. डॉ. रफीक मुगल के द्वारा दिया गया
- हड़प्पा सभ्यता- इसकी खोज के आधार पर लिया गया (वर्तमान नाम)
विस्तारः 3 देश
भारत, पाक, अफगान
- सर्वाधिक- गुजरात (2200)
- न्यूनत्तम- अफगान (2)
- सिंधु घाटी सभ्यता का उत्तरी बिंदु- मांडा, (अखनूर जिला) जम्मू कश्मीर + चेनाब नदी के किनारे
- सिंधु घाटी सभ्यता का दक्षिणी बिंदु- दैमाबाद, (अहमदनगर) महाराष्ट्र + प्रवरा नदी के किनारे
- सिंधु घाटी सभ्यता का पूर्वी बिंदु- आलमगीरपुर, (मेरठ) उत्तर प्रदेश + हिंडन नदी के किनारे
- सिंधु घाटी सभ्यता का पश्चिमी बिंदु- सुत्कान्गेडोर, बलूचिस्तान + दाश्क नदी के किनारे
सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्र- 12 लाख 99 हजार 600 वर्ग किलोमीटर (वर्तमान में 15 से 16 लाख वर्ग किलोमीटर है)
सिंधु घाटी सभ्यता का आकार पूर्व में त्रिभुजाकार था, वर्तमान में विषम कोणीय चतुर्भुज है
स्थान: पुरास्थल
- अफगान- “मुशी जी अफगान गए”
- मुण्डीगॉक
- शोर्तगोई
- ब्लु- “मेरा सुबह का कुल्ला ब्लू० मे- डाबर”
- मेहरगढ़
- रानाघुड़ई
- सुत्कागेडोर
- कुल्ली
- बालाकोट
- क्वेटाधारी
- डाबरकोट
- सिंध (पाक): “अली + मोहन आ कोट पहनकर चन्हुदड़ो जा”
- अलीमुराद
- मोहन-जो-दड़ो
- आमरी
- कोटदीजी
- चन्हुदड़ो
- पंजाब(पाक): “रहमान को जलील करा तो उसने हड़प्पा जाकर इस्माइल करी”
- रहमानदेरी
- जलीलपुर
- हड़प्पा
- डेरा स्माइल खान
- पंजाब (भारत): “रो स आया चक दे कट्टे बाड़े में”
- रोपड़(रूपनगर),
- संघोल
- चक86
- बाड़ा
- हरियाणा- “कुनाल, मिठी राब बनाई- भर्र”
- -कुनाल
- मिथाथल
- राखीगढ़ी
- बनावली
- भर्राना
- राज:- “लोग बांका”
- बालाथल
- कालीबंगा
- U.P- “आ बहु घर चल”
- आलमगीरपुर
- बड़ागांव
- हुलास
- गुजरातः “लो धौला रंग से प्रभाव गुजरात सु. देखो”
- लोथल
- धौलावीरा
- रंगपुर
- रोजदी
- प्रभासपतन
- सुरकोटडा
- देशलपुर
कालक्रमः-
- जॉन मार्शल (1931)- 3250 ई.पू. –> 2750 ई.पू.
- N.C.E.R.T –> 2500 ई. पू. 1700 ई.पू.
रेडियो कार्बन पद्धति- C14
- 2300 ई.पू – 1750 ई.पू.
- सर्वमान्य और प्रामाणिक मत
समर्थन- डा० रोमिला थापर + D.p. अग्रवाल
ईसा पूर्व- ईसा मसीह के जन्म के पहले का समय
ई. - ईसा मसीह के जन्म के बाद का समय
रेडियोकार्बन पद्धति- C14
- 1949 में इस पद्धति की खोज की गई
- सीसे के अलावा सभी अन्य पर लागू
- कोई भी सजीव जीवित अवस्था में होती है उस समय C12=C14 होती है
- जैसे ही कोई सजीव मृत अवस्था में चला जाता है, तो C12 स्थिर हो जाता है तथा C14 का ह्यस होने लगता है
- 5730 वर्ष बाद C14 सिर्फ आधा (1/2) रह जाता है
- इस पद्धति से सर्वप्रथम लकड़ी का परीक्षण किया गया
- संसार का सबसे पुराना वृक्ष देवदार का वृक्ष है (लगभग 10,000 वर्ष पुराना)
निर्माता/प्रजातियाँ:
भारत की 1st नगरीय सभ्यता (कांस्य युगीन)
- प्र: प्रोटो-ऑस्ट्रेलियाइड
- भुः भूमध्य सागरिय (द्रविड)- सर्वाधिक साक्ष्य (निर्माता)
- अल्पः अल्पाइन
- मागों: मंगोलियन
हड़प्पा-
- 1st जानकारी 1826 → चार्ल्स मैसन
- खोज: 1921 (दयाराम साहनी)
- स्थान: मोन्टगोमरी → वर्तमान: शाहीवाल (पाक)
- नदी: रावी नदी बाँया तट
उत्खननः
- 1946, माधोस्वरूप वत्स
- 1926, मार्टिन हीलर
यह नगर दो भागों में विभाजित-
- दुर्ग टीला (उपरी टीला)
- पश्चिमी टीला
- प्रशासनिक वर्ग के लोग निवास
- टीला
- नगर टीला
- नगर टीला (निचला टीला)
- पूर्वी टीला
- जनसामान्य लोग निवास
मार्टिन हीलर ने दुर्ग टीले को माउंट A.B. की संज्ञा दी है
- परिवहन के रूप मे नदी का प्रयोग किया जाता
- चार नाव के साक्ष्य मिले
- रावी नदी के किनारे
दुर्ग टीला (पश्चिमी टीला)
- श्रमिक आवास, मजदूर बैरक के रहने का स्थान
- प्रशासनिक वर्ग का निवास
- सभा भवन स्थित
- यहां से 12 अन्नागार मिले (6-6 के समूह में)
- हड़प्पा से प्राप्त अन्नागार संपूर्ण सेंधव सभ्यता की दूसरी सबसे बड़ी इमारत (प्रथम सबसे बड़ी इमारत- लोथल का गोदिवाडा)
पूर्वी टीला (नगर टीला)
- मुख्य सड़क समकोण पर काटती है (ऑक्सफोर्ड या सर्कस या ग्रीड पद्धति में निर्मित)
- घरों के दरवाजे गलियों में खुलते हैं (लोथल एकमात्र ऐसा स्थान जहां पर घरों के दरवाजे मुख्य सड़क पर खुलते हैं)
- ईटों का गोलाकार चबूतरा मिला (चबूतरे पर गेहूं और जौ के साक्ष्य मिले + इस चबूतरे का प्रयोग महिलाएं अनाज साफ करने के लिए करती)
- R37 कब्रिस्तान तथा H कब्रिस्तान दक्षिणी भाग में स्थित
- उत्तम किस्म की जौ के साक्ष्य बनावली से मिले
हड़प्पा को ऋग्वेद में हरियूपिया कहा गया है। धौलावीरा सम्पूर्ण सैंधव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल था जो तीन भागों में विभाजित-
- दुर्ग टीला
- मध्यमा
- नगर टीला
नगर टीले की सुरक्षा एक प्राचीर (परकोटा) के माध्यम से की जाती थी
हड़प्पा से प्राप्त अन्य अवशेषः-
- पीतल की इक्का गाड़ी
- शंख से निर्मित बैल
- स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे की मृणमूर्ति (पृथ्वी देवी/उर्वरा देवी)
- नरकबंध प्रस्तर (बिना धड़ की पाषाण मूर्ति)
- प्रसाधन मंजूषा, कांसे का दर्पण
- सीपी पैमाना
- मानव के साथ बकरे के शवादान –
- सर्वाधिक अभिलेख युक्त मोहरे हड़प्पा
- सेलखड़ी से निर्मित मोहरे
सर्वाधिक मोहरें – मोहन-जो-दड़ो
- आयताकार
- वर्गाकार
- वृताकार- सर्वाधिक मात्रा में
हाथी, कुबड़दार बैल, एक श्रृंगी हिरण/बैल, गेंडा, पशुपतिनाथ
- मोहन-जो-दडो- लरकाना प्रांत (सिंध, पाक)
- शाब्दिक अर्थ: मुर्दों का टीला/(मृतकों का टीला)
- खोज: 1922 ई. (राखालदास बनर्जी)
- नदी:- सिन्धु (दायाँ तट)
- सिंध का नखलिस्तान के नाम से प्रसिद्ध
यहाँ से आठ बार उजड़कर 9 बार बसने वाले शहर
- जिसके सात क्रमिक स्तर:- मिट्टी की गाद
- सबसे बड़ी इमारत अन्नागार है
- यहाँ का सबसे बड़ी सार्वजनिक इमारत स्नानागार है
- 8 फिट गहरा
- सामूहिक स्नान,महत्व- धार्मिक
- मार्शल महोदय ने इसे तत्कालीन विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण (विराट वस्तु की संज्ञा)
यहाँ से एक तीन मुख वाले देवता का अंकन एक मोहर पर किया गया है, जो कि ध्यान में लीन है।
- भारतीय चित्रकला का प्रथम उदाहरण
- वृषभ, दश अक्षर, मछली, गैंडे,
- मार्शल महोदय-पशुपति नाथ, आद्यत्तम शिव (प्राचीनत्तम)
मोहन-जो-दड़ो का शासन- राजतंत्रात्मक न होकर जनतंत्रात्मक
कुषाण शासक कनिष्क ने दुर्ग टिले पर एक स्तूप निर्माण स्तूप का टीला भी कहा जाता है।
- स्टुअर्ट पिग्गर के मोहन-जो-दड़ों व हड़प्पा को किसी विशाल साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा है।
अन्य प्राप्त अवशेषः –
- मंगोलियन पुजारी का सिर,
- काँसे की नृत्यरत नारी की प्रतिमा,
- महाविद्यालय भवन
- सभागार
- ताँबे गलाने की भट्टी,
- सूती वस्त्र,
- हाथी का कपालखंड, घोड़े के दांत
मोहन-जो-दड़ो से किसी भी प्रकार के कब्र के साक्ष्य नहीं
के. यू.आर. कनेडिया- मोहन जोदड़ो शवों से मलेरिया के साक्ष्य मिले
पतन
- पतन- महामारी के कारण
Tags: इतिहास प्राचीन इतिहास
- प्राचीन भारत का इतिहास PDF,
- प्राचीन भारत का इतिहास नोट्स,
- प्राचीन भारतीय इतिहास का कालक्रम,
- प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्व,
- प्राचीन भारत का इतिहास बुक,
- प्राचीन भारत का इतिहास प्रारंभ से 1205 ईस्वी तक,
- प्राचीन किसे कहते हैं,
- प्राचीन काल किसे कहते हैं,