आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History): आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History) के संबंध में विभिन्न जानकारी अपडेट की जाती है। इसमें आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History) से संबंधित नोट्स, शॉर्ट नोट्स और मैपिंग के द्वारा विस्तृत अध्ययन करवाया जाता है। क्वीज टेस्ट के माध्यम से अपनी तैयारी पर रखने का बेहतरीन अवसर। आज ही अपनी तैयारी को दमदार बनाने के लिए पढ़िए आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History)।
पुनर्जागरण, सामाजिक और धार्मिक सुधार
पुनर्जागरण और सामाजिक सुधार
- पुनर्जागरण का सूत्रपान – 19 वी शताब्दी में हुआ
- इस शताब्दी में सामाजिक एवम् धार्मिक क्षेत्रों में अनेक क्रांतिकारी आंदोलन हुए जिन्होने सम्पूर्ण भारत वर्ष प्रत्येक वर्ग के जीवन को प्रभावित किया यही आंदोलन- “पुनर्जागरण” कहलाता है
Note : भारतीय लोगों को ब्रिटिश कंपनी सरकार के प्रति बफादार बनाने हेतु 19 वी शताब्दी में " ईसाई मिशनरीयों ने भारत में क्रिश्चियन शिक्षा का लागू किया.
- 1813 के चार्टर अधिनियम द्वारा ईसाई मिशनरीयों को भारत में ईसाई शिक्षा का प्रचार प्रसार करने का अधिकार प्रदान किया गया, भारतीयों की शिक्षा हेतु पहली बार 1 लाख रु त्यय का प्रावधान किया गया.
राजा राममोहन राय को-
- भारतीय पुनर्जागरण का पिता/अग्रदूत
- भारत का प्रथम आधुनिक पुरुष
- आधुनिक भारत के जनक
- सुधार आंदोलनों का प्रवर्तक
विशेषताएँ:
- विश्ववादी नजरिया, धार्मिक सार्वभौमवाद
- सामाजिक स्थितियों को समझने हेतु तर्क एवम बौद्धिक विचारों का आधार
- राष्ट्रीय एकता व समरस्ता स्थापित करना,
- सम्पूर्ण भारत को राजनैतिक एकता के सूत्र में
राजा राममोहन राय
ब्रह्य समाज
- स्थापना : 20-Aug-1828
- राजा राम मोहन राय के द्वारा
इसकी स्थापना प्रारंभ में ब्रह्म सभा के नाम से की कालान्तर में ब्रह्म समाज के नाम से जानी गई
राजा राम मोहन राय ने 1814 ई. में आत्मीय सभा की स्थापना की थी.
ब्रह्म समाज गठन का उद्देश्य :-
- भारत का धार्मिक एवम सामाजिक रूप से उत्थान हेतु हिन्दू धर्म में सुधार, कर्मकाड़ी व्यवस्था (पुरोहितवाद का समाप्त)
धार्मिक एवम् सामाजिक कुरूतियों को समाप्त करने हेतु-
ब्रह्मसमाज के कार्य व उद्देश्य:
एकेश्वरवाद की स्थापना (धर्म सुधार कार्य)
- मूर्ति पूजा का विरोध,
- ग्रंथो की व्याख्या हेतु – पुरोहितवाद का नकारा
- अवतारवाद का खंडन
सामाजिक सुधार के कार्य
- सतीप्रथा का विरोध
- बाल विवाह का विरोध
- जात-पात व अस्पर्शयता का विरोध
- स्त्री-पुरुष शिक्षा पर जोर दिया
भारतीय राष्ट्रीयता का प्रसार करना
ब्रह्म समाज
- स्थापना 1828
- राजा राम मोहन राय
- 1830 ई. में राजा राम मोहन राय इंग्लैंड चले गये, इसके बाद इसका नेतृत्व आचार्य रामचंन्द्र विद्या वागीश ने किया
- 1833 ई. में (संचालन) द्वारिका नाथ टैगौर-
- 1843 (संचालन) देवेन्द्रनाथ टैगोर
- 1856 ई. में ब्रह्म समाज का संचालन केशवचंद्र सेन द्वारा किया गया
- पहली बार ब्रह्म समाज का विस्तार बंगाल से बाहर – उत्तर प्रदेश, पंजाब व मद्रास में इसकी शाखाएं खोली गई.
ब्रह्म समाज का विभाजनः
- कारण:
- केशव चंद्र सेन व देवेन्द्र नाथ टैगोर के मध्य मूल सिद्धांतों को लेकर मतभेद हुआ
- 1865 ई. में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने केशवचन्द्र सेन की आचार्य की उपाधी छीन ली
- सेन हिन्दु धर्म को संकीर्ण विचारधारा का मानते थे, उन्होने यज्ञोपित धारण करने का विरोध किया
- समाज में सभी धर्मो के पाठ को लागू करने का प्रयास किया
● ब्रह्मसमाज विभाजन- (1865)
2 शाखाएँ
- ब्रह्मसमाज: देवेन्द्रनाथ टैगोर द्वारा संचालित (मूल शाखा
- आदि ब्रह्म समाज- संचालन केशवचन्द्र सेन द्वारा
विभाजन - 1878,--> साधारण ब्रह्म समाज (संचालन आनंद मोहन बोस व शिवनाथ शास्त्री)
प्रमुख बातें
- बांग्ला व अंग्रेजी शिक्षा को समर्थन
- हिन्दुओं द्वारा विदेश यात्रा को धर्म विरुद्ध घोषित करने पर आलोचना की
राजा राम मोहन राय:
- जन्म: 22-5- 1772 ई
- बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में
- पिता:- रामकांतो राय
- माता:- तारिनीदेवी
अन्य नाम (उपाधीयां):
- भारतीय जागृति का जनक
- अतीत व भविष्य के मध्य सेतु
- नव प्रभात का तारा
- भारत का प्रथम आधुनिक पुरुष
- भारतीय पत्रकारिता के अग्रदूत
प्रमुख ग्रंथ/पत्र:
- तुहफात-उल-मुहदीन
- इनका प्रथम ग्रंथ जिसकी रचना फारसी भाषा में की इसका प्रकाशन 1809 ई. में किया
- इसमें मूर्तिपूजा का विरोध व एकेश्वरवाद को सभी धर्मों का मूल बताया है ।
- प्रीसेन्टस ऑफ जीसस:
- राय ने इस पुस्तक का लेखन 1820 ई.
- प्रकाशन लंदन में 1823 जॉन डिग्बी के प्रयासों से
3. संवाद-कौमूदी:
1821 ई. में इस बंगाली पत्रिका का प्रकाशन किया सती प्रथा का विरोध किया गया है
- मिरात-उल-अखबारः
- प्रकाशन 1822 ई. में
- फारसी भाषा में
- ब्रह्मणीकल पत्रिका:
- अंग्रेजी भाषा की पत्रिका थी.
1829-30 ई. में राय इंग्लैंड गए, यूरोप की यात्रा करने वाले प्रथम भारतीय माने जाते हैं।
- 27 sept – 1833 ई. में राजा राम मोहन राय की मृत्यू ब्रिस्टल (इंग्लैंड) में हुई
- राय को सर्वप्रथम 1833 ई- स्टेपलेटन (इंग्लैंड) मे दफनाया गया परन्तु 1843 ई. में इन्हे पुनः “आर्मोस वेलु” नामक कब्रिस्तान में दफन किया
- इनका स्मारक भी यहीं बना हुआ है।
राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित संस्थाएँ :
- 1814-15 आत्मीय सभा की स्थापना
- 1816 वेदान्त सोसायटी की स्थापना
- 1817 डेविड हेयर की सहायता से कलकता हिन्दू कॉलेज की स्थापना
- 1821 ई – कलकता यूनीटेरियन कमेटी की स्थापना
- 1825 वेदान्न कॉलेज की स्थापना
- 20-8-1828 ब्रह्म समाज की स्थापना की
इन्हें राजा की उपाधी अकबर I द्वारा - 1830 ई. में दी गई।
लॉर्ड विलियम बैटिक के साथ मिलकर - 1829 ई. मे [धारा 17] के तहत सती प्रथा व कन्या वध पर रोक लगवाई.
महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर (टैगौर)
- राजा राम मोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया.
- इन्होने हिन्दु धर्म में व्याप्त “अंधविश्वासों व रूढ़ियों” को समाप्त करने व धार्मिक चर्चाओं के 1839 ई. मे” तत्व बोधीनी सभा” की स्थापना की
- ग्रंथः ब्रह्म धर्म
- इनके समय ही निश्चिय हुआ कि वेद अंतिम रूप प्रामाणिक नही अपितु उपनिषद ही अंतिम प्रमाण है।
केशवचंन्द्र सेनः
1841 ई. में अंग्रेजी के प्रथम भारतीय दैनिक समाचार पत्र इंडियन मिरर का संपादन
1856 ई. में ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया.
1867 ई. में मुंबई यात्रा के बाद प्रार्थना समाज (संस्थापक - आत्माराम पांडुरंग) की स्थापना की
आर्य समाज
- स्थापना: 1875 ई. में बबई में
- संस्थापकः स्वामी दयानंद सरस्वती
- प्रारंभिक मुख्यालय “बबई” – 1877 ई → लाहौर मुख्यालय बनाया गया
उद्देश्यः
- स्वामी जी प्रबल हिन्दुवाद के समर्थक थे
- उन्होने प्राचीन भारतीय संस्कृति तथा वैदिक विचारों को श्रेष्ट मानने हुए हिन्दू धर्म का पुनः उत्थान हेतु आर्य समाज की स्थापना की
- प्राचीन वैदिक धर्म को शुद्ध रूप से स्थापित करना
- कर्मकाडी वैदिक विधान का विरोध किया – प्रत्येक रविवार को हवन] अनिवार्य
- हिन्दू धर्म की कट्टरता पर बल ” सैनिक हिदुत्व” का नारा दिया
आर्य समाज की विशेषताएँ:
- एकेश्वरवाद में विश्वास,
- छुआछूत, जातिवाद इत्यादी का विरोध, परन्तु वर्ण व्यवस्था में विश्वास
- अवतारवाद का विरोध परन्तु पुनः जन्म में विश्वास
- मूर्ति पूजा दिखावा है, अत: उसका निषेध
- हिन्दी एवम संस्कृत भाषा की वृद्धि, पाश्चात्य संस्कृति का विरोध किया
- कर्मफल एवम मोक्ष में विश्वास
- बाल विवाह, बहु विवाह का विरोध
- विधवा विवाह व अन्तर्जातिय विवाह को प्रोत्साहन
वेद
- इश्वरीय वृति है, अंतिम सत्य है,
- ईश्वरीय ज्ञान के भंडार हैं
- स्वामी जी ने “वेदों की और लौट चलो” का नारा दिया
- वेदों का हिन्दुओं की सर्वोच्च पुस्तक (ग्रंथ) माना
शुद्धि आंदोलन
ऐसे हिन्दु जिन्होंने किसी कारणवश अन्य धर्म को ग्रहण कर लिया हो उन्हें हवन के माध्यम से शुद्ध कर पुन: हिन्दू
*- धार्मिक यात्राओं का विरोध
स्वामी दयानंद सरस्वती
- जन्म 1824 ई.
- पिता⇒ अम्बा शंकर
- स्थान जिला – मौरवी
- गांव- टंकारा (गुजरात)
- बचपन का नाम मूलशंकर
- 21 वर्ष की आयु में गृहत्याग किया
- 1848 – स्वामी पूर्वानंद ने “दयानंद सरस्वती” नाम दिया
- 1861 ई. में “मथुरा “के महान संत” स्वामी विराजानंद ” को अपना गुरु बनाया
- इन्हीं से वेदो व प्राचीन भारतीय साहित्य का अध्ययन किया
- स्वामी विरजानंद के आदेश पर ही “सम्पूर्ण देश में वैदिक संस्कृति व वैदिक शिक्षा का प्रचार प्रसार किया
- 1863 ई. में हिन्दु धर्म की रक्षा व झूठे धर्मों का खंडन करने हेतु आगरा मे “पाखंड खंडिनी की पताका लहराई
सत्यार्थ प्रकाशः
रचना 1874 ई.
इसे आर्य समाज का बाइबिल कहा जाता है.
अन्य रचनाएँ:
- वेद भाष्य (ऋग्वेद भाव्य), पाखंड खंडन, अद्वैतमत का खंडन, वल्लभाचार्य मन खण्डन, पंच महायज्ञ विधि,
- 30 अक्टूबर 1883 को दिपावली के दिन अजमेर में स्वामी जी की मृत्यु हो गई
- एनी ब्रिसेंट : दयानंद सरस्वती प्रथम भारतीय थे जिन्होने भारतीयता का नारा लगाया
अन्य महत्वपूर्ण तथ्यः
- स्वामी जी का शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक योगदान रहा, उन्होने व उनके अनुयायियों ने “डी.ए.वी स्कूल व कॉलेजों की स्थापना की
- आर्य समाज के नेतृत्व में स्थापित शिक्षण संस्थाएँ दो भागों में विभाजित-
- सरकारी नियंत्रण में स्थापित जहाँ सरकारी पद्धति (ब्रिटिश) से शिक्षा डी.ए.वी. संस्थान
लाहौर मे “दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की गई - सरकारी प्रभाव से मुक्त संस्था-
इन्हें गुरुकुल कहा जाता था
प्रथम गुरुकुल की स्थापना हरिद्वार में
संस्थापक मुंशीराम
- मुंशीराम के नेतृत्व में स्थापित यह गुरुकुल वर्तमान “कांगड़ी विश्व विद्यालय” के नाम से जाना जाता है।
- स्वराज्य शब्द का प्रयोग करने वाले प्रथम व्यक्ति
- स्वामी दयानंद सरस्वती, उन्होने “हिन्दी” को राष्ट्र भाषा बनाने पर जोर दिया.
- लाला लाजपत राय “स्वामी जी ने हमारे मन मे देशभक्ति व देश सेवा” का बीज बोया है
- लॉर्ड नार्थब्रुक ने स्वामी से डरकर उनके पीछे “गुप्तचर” लगा दिए
रामकृष्ण मिशन
- स्थापना: – 5-5-1897 ई.
- संस्थापक → स्वामी विवेकानंद
- वेल्लूर (कलकता) के समीप
- 1-5-1897 ई. को “रामकृष्ण मिशन एसोशियसन” की स्थापना कलकता में इसी के तत्वाधान में मिशन की स्थापना की गई
उद्देश्य:
लोक सेवा व समाज सुधार
भारतीय संस्कृति का उत्थान 'हिन्दु धर्म में जागृति लाना
रामकृष्ण परम हंस के विचारों का प्रचार प्रसार करना
रामकृष्ण परमहंस
- जन्म-18-2-1836
- कबंगाल के कमरपुकुर नामक स्थान पर
- पिता खुदीराम
- माता चन्द्रादेवी
- वास्तविक नाम: गदाधर चटोपाध्याय था
- 1052 ई. में कलकता आए
- दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी बने
- इन्हें दक्षिणेश्वर संत भी कहा जाता है
- रामकृष्ण मठ की स्थापना की
- मृत्यू 16-8-1886 ई
स्वामी विवेकानंद
उपाधी:
- सृजन की प्रतिमा- रविन्द्रनाथ टैगौर द्वारा
- तुफानी हिन्दु- अमेरिकी लोगों द्वारा (शिकागो धर्म सम्मेलन)
- J.L.N= “एक बार इस हिन्दु सन्यासी को देख लेने के बाद उसे तथा उसके संदेश को भूलना कठिन है •
- रविन्द्रनाथ टैगौर “यदि कोई भारत को समझना चाहता है तो उसे विवेकानंद को पढ़ना चाहिए
- भारत की आत्मा आध्यात्म व धर्म में ही निवास
- करती है
- उठो, जागो और तब तक मन रुको जब तक कि . लक्ष्य प्राप्त नहीं हो- विवेकानंद
- जन्म- 1863 ई (12 जन.) कलकता
- पिता- विश्वनाथ
- माता- भुवनेश्वरी देवी
- बचपन का नाम- नरेन्द्रनाथ
- अपनी माता से सर्वाधिक प्रभावित थे,
- 1880-81 ई. में रामकृष्ण परमहंस से मिले अपना गुरु बनाया
- मृत्यू- 39 वर्ष की आयु मे 4 जुलाई 1902 ई.
- 1886 ई. में गुरु की मृत्यु के बाद उनकी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने हेतु सम्पूर्ण देश का भम्रण प्रारंभ किया
- 1887 ई. में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की
- 1279 दिस. 1889 ई. प. बंगाल – वेल्लूर मठ की स्थापना की
- 19 मार्च 1899 ई. मयावती में “अद्वैत आश्रम की स्थापना की
- लॉस एंजिल्स, सेंट फ्रेंसिस्कों में वेदान्त आश्रमों की स्थापना की
- इन समस्त कारणों से स्वामी विवेकानंद को “संस्कृतिक चेतना का जनक कहा जाता है।
1886 ई. में बारानगर (P. B) में बारानगर मठ की स्थापना की है
शिकागो धर्म सम्मेलन:
- धर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व, 1891 से लगभग दो साल तक सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया.
- धर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व “खेतड़ी (राज. झुंझुंनू) महाराजा अजीतसिंह से मिले जिन्होने इन्हें “विवेकानंद” नाम दिया.
- खेतड़ी प्रवास के दौरान ही “मैनाबाई जी ने विवेकानंद जी को ‘प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो’ नामक भजन सुनाया
11 Sept - 1893 को शिकागो धर्म सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधी के रूप में शामिल हुए
"शून्यवाद पर अपना आख्यान देने हुए" मेरे अमेरिकी बहनो व भाइयो" से अपना व्याख्यान प्रारंभ किया.
- अमेरिकी न्यूजपेपर” न्यूयार्क हैराल्ड ने अगले दिन लिखा” शिकागो धर्म सम्मेलन मे विवेकानंद ही सर्वश्रेष्ट व्यक्ति उनका भाषण सुनने के बाद ऐसा लगता है कि भारत जैसे समुन्नत देश में इसाई मिशनरीयों की भेजा जाना मुर्खता का प्रतीक है
महत्वपूर्ण तथ्यः
- विवेकानंद को नव हिन्दु जागरण का जनक (संस्थापक) कहा जाता है।
- सुभाषचन्द्र बोस ने ” आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यात्मिक पिता कहा है”
- “आयरिश महिला “मागेट नोबल (सिस्टर निवेदिता) ने विवेकानंद जी के उपदेशों का प्रचार प्रसार किया.
पुस्तकें (विवेकानंद)
- राजयोग (1896 ई.) – 2nd edition-1899
- ज्ञान योग (1899 ई.)
प्रार्थना समाज
पृष्टभूमिः
- परमहंस मंडली (1849 ई.)
- संस्थापक – दादोबा पाडुंरंग, आत्माराम पांडुरंग बालकृष्ण जयकर
उद्देश्य
समर्थन- एकेश्वरवाद, धर्मसुधार
*- ईसाईयत का समर्थन किया.
विरोध- बाल विवाह, मूर्तिपूजा, बहुविवाह
- इसाईयन समर्थन के कारण परमहंस मंडली अपने मूल स्वरूप से भटक गई
- केशवचन्द्र का महाराष्ट्र आगमन हुआ- आत्माराम पांडूरंग से मिला
- परमहंस मंडली का रूप परिवर्तित कर ” प्रार्थना समाज” की स्थापना की गई-
प्रार्थना समाज
- स्थापना- 1867 ई. में
- आत्माराम पाडुरंग के द्वारा (केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से)
- प्रार्थना समाज वास्तव में “ब्रह्म समाज” की ही शाखा थी।
1869 ई.
- महादेव गोविंद रानाडे” प्रार्थना समाज से जुड़े,
- प्रार्थना समाज को प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय” रानाडे” को जाता है.
- रानाडे को पश्चिमी भारत के सामाजिक व सांस्कृतिक (धार्मिक) पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है-
- इन्हें महाराष्ट्र का सुकरात भी कहा जाता है
- आर. जी. भंडारकर व एन. जी चदरावरकर भी प्रार्थना समान से जुड़े हुए थे
रानाडे नै-
- 1884 ई. मे पुणे में दक्कन एजुकेशनल सोसायटी की स्थापना
- 1891 ई. मे. महाराष्ट्र मे ” विडो रिमैरीज एसोसिएशन” की स्थापना की
- शुद्धि आंदोलन चलाया
- मद्य निषेध
- नृत्य निषेध
- बाल विवाह,
- फिजूल खर्च निषेध
- रानाडे जी की पत्नी “रमा बाई ने” आर्य महिला समाज की स्थापना 1881 ई. में की
- रमाबाई ने रानाडे की प्रेरणा व सहयोग से 1889 ई- शारदा सेवा सदन की स्थापना की
- महिला शिक्षा हेतू 1909 ई. पूना सेवा सदन की स्थापना की (महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु)
प्रो. डी.के. कर्वे-
- 1899 ई. में पूना में “विडो होम” की स्थापना
- 1906 ई. में महाराष्ट्र में (बंबई) इंडियन वुमन्स यूनीवर्सिटी की स्थापना
- 1870 ई. में केशव चन्द्र सेन ने “इंडियन रिफॉम एशोसिएसन” की स्थापना की
- ‘इंडियन मिरर’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया
यंग बंगाल आंदोलन (1826)
संस्थापक- हेनरी विवियन डिरोजियों
- जन्म 1809 ई. कलकता में हुआ
- इन्हें बंगाल की आधुनिक सभ्यता का अग्रदूत
- आधुनिक भारत का प्रथम राष्ट्रवादी कवि भी माना जाता है
यंग बंगाल के उद्देश्य
- रूढ़िवादिता व प्राचीन रूढ़ परम्पराओं का विरोध
- इसके माध्यम से आत्मिक उन्नती व समाज सुधार
- नारी शिक्षा पर जोर व नारी अधिकारों की मांग-
- प्रेस की स्वतंत्रता, उच्च सेवाओं में भारतीयों की नियुक्ती की मांग
- जमीदारों की निरंकुशता पर रोक
इनके द्वारा स्थापित संस्थाएँ :
- एकेडिम एशोसिएसन (बैद्धिक वाद विवाद हेतु स्थापित)
- एंग्लो- इंडियन हिन्दु एशोसिएसन
- बंगहित सभा
- डिबेटिंग क्लब
वेद समाजः
- वेद समाज को दक्षिण भारत का “ब्रह्म समाज” कहा जाता है
- स्थापना- 1864 ई. (मद्रास)
- के० श्री धरालू नायडू के द्वारा
उद्देश्यः
- जातिय भेदभाव को समाप्त करना व महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देना.
- वी. राजगोपाल चारलू, पी. सुब्रमण्यम शेट्टी, विश्वनाथ मुदालियर इसके प्रमुख नेता थे
थियोसोफिकल सोसायटी
- स्थापना 1875 ई – (न्यूयार्क)
- संस्थापकः एच.पी ब्लावैटस्की व कर्नल एम.एस.
- अल्काट (रूस की महिला)
- जनवरी 1879 ई. में दोनो भारत आए (अमेरिका के निवासी)
- 1882 ई. में अड्यार (मद्रास) को मुख्यालय बनाया, बाद में यही इसका अंतर्राष्ट्रीय कार्यालय बना
उद्देश्यः
- सनातन हिन्दू धर्म के लोगों में आत्मविश्वास जगाना
- जातिगत भेदभाव का विरोध
- धर्म को समाज सेवा का प्रमुख आधार बनाना
विचारधारा:
दैव-विज्ञान विचार धारा (हिन्दू + बोद्ध का मिश्रण)
एनी बिसेट:
- 1893 ई. में भारत आई
- जो कि लंदन की मूल निवासी थी, यह हिन्दू धर्म से अत्यधिक प्रभावित थी, अत: इन्होने हिन्दू धर्म ग्रहण किया
- एनी बिसेंट ने 1898 ई. में → वराणसी में सेंट्रल हिंदू कॉलेज की नीव डाली
- आगे चलकर इसी विश्वविद्यालय को मदन मोहन मालविय ने 1916 ई. “बनारस हिन्दु विश्व विद्यालय” के रूप में विकसित किया
- 1907 ई. एनी बिसेंट “थियोसोमिकल सोसायटी की अध्यक्ष बनी
- 1917 ई. में क्रांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी
- 1933 ई. में मृत्यू
अन्य समाजसुधारक संस्थाएँ:
- देव समाज
- स्थापना 1887 ई. में (लाहौर)
- संस्थापक शिवनारायण अग्निहोत्री
- धर्म सभा:
- स्थापना 1830 (बंगाल)
- संस्थापक: राजा राधाकांत देव
- उद्देश्य: सती प्रथा का समर्थन
भारत सेवा संघ-
- स्थापना: 1905 (बंबई)
- संस्थापक: गोपाल कृष्ण गोखले
सामाजिक सेवा संघ-
- स्थापना: 1921(बंबई)
- संस्थापक :- नारायन मल्हार जोशी.
सेवा समिति-
- स्थापना 1914 (इलाहाबाद)
- संस्थापक: हदयनाथ कुंजरू
भील सेवा मंडल-
- स्थापना 1992 (बंबई)
- संस्थापक : अमृतलाल व बिठ्ठलदास
अन्य धर्म सुधारक:
महात्मा ज्योतिबा फूले
- इन्हें वीर सावरकर ने ” क्रांतिकारी समाज सुधारक”
- महात्मा गाँधी ने इन्हें ” वास्तविक महात्मा” कहकर संबोधित किया
- फूले जी ने 24-sept-1873 ई. “सत्य शोधक समाज की स्थापना
उद्देश्यः
- शुद्र वर्ग को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना
- इन्होने ब्राह्मणवाद पर प्रहार किया
- महात्मा फूले ने ” मनु संहिता की प्रतियों को सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया तथा उन्हें जला दिया व हिन्दू कानूनों को मानने से इनकार कर दिया
- अपने “दीनबंधु ” नामक समान पत्र के माध्यम से ब्राह्मणवाद का विरोध किया
गुलामगिरी:
- 1873 ई. में महात्मा फूले ने यह ग्रंथ लिखा
- इसे अमेरिका में गुलामों को मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले लोगों को समर्पित किया
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
- जन्मः 26-sept-1820
- बंगाल के वीरसिंह गांव (वर्तमान पश्चिमी बंगाल, मेदिनपुर)
- पिता : ठाकुरदार बंधोपाध्याय
- माता : भगवती देवी
- पत्नी: दिनमणी देवी
विद्यासागर उपाधी कलकता कॉलेज मे प्रदान की गई
इन्होंने बांग्ला वर्णमाला की रचना की
- स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक थे इन्होने ” बैथून स्कूलों की स्थापना की
- विद्यासागर जी के प्रयासों से लार्ड डलहौजी के समय “हिन्दु विधवा पुनः विवाह अधिनियम पारित किया गया
- जिसे लाई केविंग के समय कानूनी अधिकार प्रदान किया गया
- विद्यासागर जी ने अपने एकमात्र पुत्र नारायणचंद्र का विवाह एक विधवा के साथ करवाया
- एक इनकी कर्मभूमि, झारखंड स्थित जामतारा जिले का “करमाटार” नाम ग्राम था
- बांग्ला गद्य का जनक ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे
करमाटार रेलवे स्टेशन का नाम "विद्यासागर" के सम्मान में" विद्यासागर रेलवे स्टेशन रखा गया है।
स्त्री पुरुष तुलना → नामक ग्रंथ की रचना पूना की ताराबाई शिंदे ने की, जिसमे उन्होने पुरुषों व महिलाओं की स्थिति के बीच मौजूदा सामाजिक अंतर का वर्णन किया है
मुस्लिम सुधार आंदोलन
- मुस्लिम समाज में आधुनिक चेतना देरी से आई.
क्यों?
- 1857 की क्रांति तक मुस्लिम अपने आप को शासक के रूप में समझते थे
- B.I. C द्वारा क्रांति के समय मुस्लिम दमनात्मक कदम उठाए.
- राजनैतिक सत्ता अंग्रेजों द्वारा छीन ली गई
- 19 वी शताब्दी में समाज में बुद्धिजीवी वर्ग का उदय हुआ
सर सैय्यद अहमद खाँ
- जन्म 1817 ई. मे (दिल्ली)
- 1839 ई. में आगरा मे क्लर्क के रूप में कार्य किया
- 1857 की क्रांति के समय वह अंग्रेजी सत्ता मे “बिजनौर” में क्लर्क के पद पर थे
- 1869 ई. में इंग्लैंड गए और पाश्चात्य संस्कृति के सम्पर्क में आए
- भारत वापस आकर मुस्लिम समाज में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार हेतु आंदोलन चलाया
दो लक्ष्य निर्धारित किए:
- अंग्रेजों व मुसलमानों के आपसी संबंधों को ठीक करना
- मुस्लिम युब वर्ग को शिक्षित कर अंग्रेजी सत्ता में अधिक से अधिक आरक्षण (नौकरी)
अलीगढ़ आंदोलन
- प्रवर्तक- सर सैय्यद अहमद खाँ
- उद्देश्य- अंग्रेजी शिक्षा (पाश्चात्य शिक्षा) का प्रसार कर ब्रिटिश सरकार का सहयोग
- मुस्लिमों को शिक्षित कर अंग्रेज राजभक्त बना- आरक्षण प्राप्त करना
1857 के दमनात्मक नीति के बाद मुसलमानों की स्थिति दयनीय, हंटर ने एक 1870 ई. मे अपनी पुस्तक "इंडियन मुसलमान" में मुसलमानों के प्रति उदार नीति अपनाने व उन्हें सरकार का समर्थक बनाने की बात कही'
मुस्लिम सुधार प्रयास:
- 1864: सर सैय्यद अहमद खाँ ने “साइंटिफिक सोसायटी” की स्थापना
कार्य
- अंग्रेजी पुस्तकों का उर्दू भाषा में अनुवाद कर पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार
1875
- सर सैय्यद अहमद खाँ ” अलीगढ़ स्कूल” की स्थापना की
- तीन साल बाद इसे 1878 ई. मे कॉलेज बनाकर इसका नाम “मुहम्मडन एंग्लो ओरिएन्टल कॉलेज” रख दिया गया यही आगे चलकर 1920 ई “अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय” के नाम से
- जाना गया.
शाब्दिक अर्थ- “सभ्यता और नैतिकता”
तहजीब-उल-अखलाख :
- सैय्यद अहमद खाँ ने अपने विचारों का प्रचार प्रसार करने हेतु इस पत्रिका का प्रकाशन किया
अलीगढ़ आंदोलन के अन्य नेता
- अल्ताफ हुसैन हाली
- डा. नजीर अहमद
- चिराग अली
- नवाब मोहसिन उल-मुल्क
सर सैय्यद अहमद खाँ ने-
- इस्लाम धर्म में व्याप्त कुरितियों को समाप्त करने व पीर-मुरीद प्रथा को समाप्त करने की बात कही
- अपने उदार विचारधारा का प्रचार प्रसार करने हेतु 1886 ई. में “मुहम्मडन एजुकेशन कांफ्रेंस” की स्थापना की
- 1887 ई. में कांग्रेस के तीसरे अधिवेशन (मद्रास) की अध्यक्षता हेतु बदरुद्दीन तैय्यब जी को चुना गया- सैय्यद अहमद खाँ ने विरोध
- तैय्यब जी कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष थे
सैय्यद अहमद खाँ ने क्रांग्रेस का विरोध करने हेतु बनारस के राजा शिव-प्रसाद के साथ मिलकर "यूनाइटेड इंडिया पाट्रिक एशोसिएसन" की स्थापना (संयुक्त भारतीय राजभक्त सभा)
1893 ई.
- सर सैय्यद अहमद खाँ ने केवल मुसलमानों हेतु “उत्तर भारत की मुस्लिम एंग्लो ओरियंटल रक्षा सभा” की
- स्थापना की ताकी मुसलमान भारतीय राजनीति से दूर रहे तथा भारत में अंग्रेजी राज्य का समर्थन करे
प्रारंभ में सैय्यद अहमद खाँ राष्ट्रवादी मुसलमान थे,
कथन: "हिन्दू व मुसलमान एक ही दुल्हन की दो आँखे हैं"
- 1888 ई. में मेरठ में एक भाषण के दौरान कहा कि “हिन्दू और मुसलमान न केवल अलग राष्ट्र है अपितु विरोधी राष्ट्र
जाम-ए- नामः सर सैय्यद अहमद खाँ द्वारा रचित ग्रंथ जिसमें बाबर से लेकर बहादुरशाह तक के 17 मुगल बादशाहों का वर्णन मिलता हैं
- असबाब-ए-बगावत-ए-हिंद की रचना सैय्यद अहमद खाँ द्वारा
- अंग्रेजों का प्रिय व समर्थक की छवी बनाने हेतु
अहमदिया आंदोलन (1889 ई.)
- मिर्जा गुलाम अहमद के द्वारा
- इस आंदोलन का प्रारंभ पंजाब के गुरदासपुर जिले मे “कादियान” नामक स्थान से
- अत: इसे कादियानी आंदोलन कहा जाता है.
उद्देश्य:
- इस्लाम के सच्चे स्वरूप की पुनः स्थापना
- उदारवादी सिद्धांतों पर आधारित धर्म सुधार आंदोलन था
बहरीन – ए – अहमदिया (ग्रंथ):
- गुलाम अहमद द्वारा रचित ग्रंथ जिसमे उन्होने इस आंदोलन के सिद्धांतों का वर्णन किया है
- गुलाम अहमद ने अपने आप को-
- पुनः जागरण का जनक/अग्रदून/ध्वजाधारी कहा है
- मसीह-उल-मौउद (मसीहा) व अपने आप को पैगम्बर का अवतार
- इन्होने अपने आप को श्री कृष्ण का अवतार भी कहा
देवबंद आंदोलन:
- इस आंदोलन को प्रारंभ करने का श्रेय: उलेमा (धर्मगुरू)- मो. कासिम नौनीत्वी व रशीद अहमद गोगोही को जाता है
उद्देश्य:
- मुसलमानों में कुरान व हदीस की शुद्ध शिक्षा का प्रचार प्रसार
- विदेशी शासकों के विरुद्ध जिहाद की भावना जागृत करना
- इन दोनो ने 1866 ई. में उत्तरप्रदेश के सहारनपुर के देवबंद नामक स्थान पर देवबंद विद्यालय की स्थापना की
देवबंध विद्यालय
- अंग्रेजी व पाश्चात्य शिक्षा पुर्णत वर्जित
उद्देश्यः
- विद्यार्थीयों को सरकारी सेवा अथवा सांसारिक सुख हेतु नही अपितु उन्हें धार्मिक शिक्षा प्रदान कर धार्मिक नेता के रूप में प्रशिक्षित करना क्रांग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया
- यह अलीगढ़ आंदोलन के विरोधी थे
- अत: संयुक्त भारतीय राजभक्त सभा व मुस्लिम एंग्लो ओरियंटल सभा के विरुद्ध फतवा जारी कर दिया
वहाबी आंदोलन:
- प्रमुख केन्द्र- पटना-
- अंग्रेजी पाश्चात्य संस्कृति व शिक्षा के विरूद्ध किया गया प्रथम आंदोलन माना जाता है
- प्रेणना- संत अब्दुल वहाब
- 19वी शताब्दी में मिर्जा अजीन व सैय्यद अहमद बरलवी ने इसका राजनीतिकरण किया
उद्देश्य:
- भारत को “दार-उल-हर्ब” के स्थान पर “इस्लाम-उल-हर्ब” के रूप में परिवर्तित करना
- यह पूर्णरूपेण साम्प्रदायिक आंदोलन था
- सैय्यद अहमद बरलवी ने अनुचायीयों को शस्त्र धारण करने के लिए प्रशिक्षित कर सैनिकों के रूप में परिवर्तित कर दिया
- इस आंदोलन में पंजाब में सिक्खों के विरूद्ध जिहाद किया गया
- इस आंदोलन को मुसलमानों का, मुसलमानों के द्वारा, मुसलमानों के लिए आंदोलन कहा जाता है
पारसी धर्म सुधार:
- पारसी धर्म का श्रेय “दादा भाई नौरोजी” को जाता है
रहनुमाए भजदयासन सभा-
- स्थापना: 1851 ई. में
- दादा भाई नौरोजी, फरवोन जी नौरोजी व एस. एस. बंगाली तथा आरके कामा द्वारा स्थापना की गई
उद्देश्यः
- पारसी धर्म की प्राचीन शुद्धता को प्राप्त कर सामाजिक उत्थान
- स्त्रीयों की स्थिति में सुधार, पर्दा प्रथा की समाप्ति और विवाह की आयू बढ़ाने पर बल दिया गया
- इस सभा के संदेशों का प्रचार प्रसार करने हेतु दादा भाई नौरोजी राफ्त गोफ्तार (सत्यवादी) नामक गुजराती पत्रिका का संचालन किया
प्रमुख समाज सुधार कार्य :
सती प्रथा:
- राजा राममोहन राय के प्रयासों से लॉर्ड विलियम बैंटिंग ने रेग्यूलेशन (XVII) के द्वारा 1829 ई. में सर्वप्रथम बंगाल में निषेध
- 1830 ई. बम्बई व मद्रास में लागू-
- मध्यकालीन भारत में सर्वप्रथम अकबर ने अपने कोतवालों का आदेश जारी कर सत्ती प्रथा पर रोक लगाई
- औरंगजेब के समय पुर्णतः रोक
कन्यावधः
- प्रथा राजपूतों व बंगालियों में प्रचलित थी
- 1802 के नियम (1) के द्वारा कन्या वध पर रोक
ठगी प्रथा:
- रोक 1830 ई. लॉर्ड विलियम बैंटिंग
शिशुवध
- जॉन शोर व वेलेजली द्वारा रोक.
- बैटिंग ने कन्या वध को निषेध
दास प्रथा:
- लॉर्ड ऐलनबेरो के समय 1843 ई. में समाप्त
*- नरबली पर रोक 1844-45 लॉर्ड होर्डिंग प्रथम
विधवा विवाहः
4 लोगों को श्रेयः
- ईश्वरचन्द्र विद्यासागरः
- प्रो.डी.के. कर्वे:- 1899 ई. में पूना विधवा आश्रम की स्थापना
- वीरे शीगलिम पुन्तुलु- दक्षिण भारत में विधवाओं हेतु विशेष योगदान
- विष्णु शास्त्री पण्डित- 1850 ई. में विधवा पुनर्विवाह सभा की स्थापना की
सिविल मैरिज एक्ट: 1872
- बहुविवाह प्रथा समाप्त लड़की – 14 वर्ष
- विवाह:लड़का- 18 वर्ष शारदा अधिनियम 1929 (हरविलास शारदा के प्रयासों से)