Biology (जीव विज्ञान) - General Science: विभिन्न भर्ती परीक्षा में General Science से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अगर आप भी विभिन्न भर्ती परीक्षा की तैयारी करते हैं और General Science विषय को मजबूत करना चाहते हैं तो हमारे नोट्स पढ़कर, क्वीज टेस्ट देकर लगातार अभ्यास करते रहें। General Science से संबंधित विभिन्न टॉपिक का संकलन आपके लिए।
रक्त एवं रक्त परिसंचरण तंत्र
रक्त
- तरल संयोजी ऊतक
- pH 7.4
- प्रकृति- हल्का क्षारीय
- वयस्क मनुष्य में लगभग 5.5 लीटर रक्त होता है
- रुधिर एक विशिष्ट प्रकार का उत्तक है
- रुधिर में आधात्री, प्लाज्मा तथा अन्य संगठित संरचना होती है
प्लाज्मा
- रक्त का तरल भाग प्लाज्मा कहलाता है
- प्लाज्मा में लगभग 92% जल तथा 8% अन्य भाग होता है
- प्लाज्मा हल्के पीले रंग का होता है
- इसमें पोषक पदार्थ, उत्सर्जी पदार्थ (यूरिया, यूरिक अम्ल तथा क्रिएटिन), कुछ गैसे (कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन), हार्मोन, एंजाइम तथा रक्त स्कंदन कारक पाए जाते हैं
- प्लाज्मा में से स्कंदन कारक को निकाल दिया जाए तो सीरम प्राप्त होता है
- प्लाज्मा में उपस्थित मुख्य प्रोटीन फाइब्रिनोजन, ग्लोबुलीन तथा एल्बुमिन है
- फाइब्रिनाजैन की आवश्यकता रक्त थक्का बनाने या रक्त स्कंदन में, ग्लोबुलीन का उपयोग मनुष्य शरीर में प्रतिरक्षा तंत्र तथा एल्बुमिन का उपयोग परासरणी संतुलन के लिए होता है
रक्त कणिकाएं
रक्त के ठोस भाग (कणिकीय भाग) मैं लाल रक्त कणिकाएं, श्वेत रक्त कणिकाएं तथा प्लेटलेट्स उपस्थित होते हैं
- लाल रक्त कणिकाएं
- इरिथ्रोसाइट भी कहते हैं
- वयस्क अवस्था में लाल अस्थि मज्जा में बनती है
- औसत आयु 120 दिन होती है
- इनका विनाश प्लीहा में होता है
- प्लीहा को लाल रक्त कणिकाओं का कब्रिस्तान कहते हैं
आकार में द्विअवतलाकर
हीमोग्लोबिन नामक जटिल प्रोटीन हीमोग्लोबिन की उपस्थिति से होता है
हीमोग्लोबिन का श्वसन गैसों के परिवहन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है
लाल रक्त कणिका के सामान्य संख्या लगभग 50 लाख प्रति घन मिलीलीटर रक्त होती है
लाल रक्त कणिका की संख्या में असामान्य कमी को एनीमिया कहते हैं
एनीमिया, अत्यधिक रक्त स्त्रवण, मलेरिया, विटामिन बी की कमी अथवा लोह तत्व की कमी से हो सकता है
लाल रक्त कणिका की असामान्य वृद्धि को पॉलीसाइथेमिया कहते हैं
ऊंचाई वाले स्थान में जाने पर अथवा अत्यधिक श्रम करने पर यह हो सकता है
इसमें केंद्रक, माइटोकांड्रिया, अतः प्रद्रव्यी जालिका, गॉल्जीकाय जैसे कोशिकांग नहीं पाए जाते हैं
अपवाद स्वरूप स्तनधारी में ऊंट तथा लामा की लाल रक्त कणिका केंद्रक युक्त होती है
- श्वेत रक्त कणिका
- ल्यूकोसाइट में हीमोग्लोबिन के अभाव के कारण यह रंगहीन होती है इसीलिए इसे श्वेत रक्त कणिकाएं कहते हैं
- श्वेत रक्त कणिकाओं की असामान्य वृद्धि से ल्यूकोसाइटोसिस अथवा ल्यूकेमिया होता है
- यह लक्षण जीवाणु संक्रमण, एलर्जी तथा रक्त कैंसर में होता है
- श्वेत रक्त कणिका में असामान्य कमी से ल्यूकोसाइटोपीनिया होता है
- इसके कारण लक्षण वायरस संक्रमण तथा एड्स में होते हैं
- श्वेत रक्त कणिकाओं के उत्पादन को ल्यूकोपोएसिस कहते हैं
- यह कम समय तक जीवित रहती है
- इसे दो भागों में विभाजित किया गया है
A. कणिकाणु / ग्रेन्यूलोसाइट
B. कण कोशका / एग्रेन्यूलोसाइट
- इनकी संख्या लाल रक्त कणिकाओं की अपेक्षा कम होती है
- स्वस्थ मनुष्य में यह कणिकाएं 6000 से 8000 प्रति घन मिलीलीटर होती है
- श्वेत रक्त कणिकाओं में न्यूट्रोफिल संख्या में सबसे अधिक तथा बेसोफिल संख्या में सबसे कम होते हैं
- पट्टिकाणु
- थ्रोम्बोसाइट के नाम से जाना जाता है
- अस्थि कोशिका की विशेष कोशिका के टुकड़ों के विखंडन से बनती है
- थ्रोम्बोसाइट की संख्या में असामान्य वृद्धि से थ्रोम्बोसाइटोसिस होता है
- इसके कारण शरीर में रक्त नलिकाओं में थक्का निर्माण होता है
- थ्रोम्बोसाइट की संख्या में असामान्य कमी से थ्रोम्बोसाइटोपीनिया होता है
- यह लक्षण अधिकांश डेंगू में दिखाई देता है
- रक्त में इनकी संख्या 1.5 से 3.5 लाख मिलीलीटर होती है
- प्लेटलेट्स कई प्रकार के पदार्थ स्रावित करता है जिसमें अधिकांश रुधिर स्कंदन में सहायक है
- प्लेटलेट्स की संख्या में कमी होने पर स्कंदन में विकृति होती है इसके कारण शरीर से अधिक रक्तस्राव होता है
रक्त समूह
- रक्त समूह A, B, O की खोज कार्ल लैंडस्टीइनर नामक वैज्ञानिक ने की
- AB रक्त समूह की खोज डी-कोस्टेलो व स्टर्ली की
- रक्त समूह O- और सार्वत्रिक दाता कहलाता है
- यह (O-) रक्त समूह A,B, AB, O सभी को रक्त दे सकता है
- रक्त AB+ समूह सार्वत्रिक ग्राही होता है
- यह (AB+) रक्त समूह A,B, AB, O सभी से रक्त ले सकता है
रक्त समूह का निर्धारण RBC कि सतह पर उपस्थित एंटीजन के द्वारा होता है
एंटीजन A और B है, प्रतिरक्षी अनुक्रिया को प्रेरित करते हैं
विभिन्न व्यक्तियों में दो प्रकार के प्राकृतिक प्रतिरक्षी मिलते हैं
प्रतिरक्षी एक प्रोटीन पदार्थ है जो प्रतिजन के विरुद्ध पैदा होते हैं
रक्त समूह A, B, AB, O मे प्रतिजन तथा प्रतिरक्षी निम्नलिखित प्रकार से होते हैं
- रक्त समूह / प्रतिजन / प्रतिरक्षी / रक्तदाता समूह
- A / A / एंटी B / A, O
- B / B / एंटी A / B, O
- AB / AB / अनुपस्थित / AB, A, B, O
- O / अनुपस्थित / एंटी A, B / O
Rh कारक
- Rh एक प्रतिजन है
- 80% मनुष्य में उपस्थित
- रिसेस बंदर में पाए जाने वाले एंटीजन के समान
- वह व्यक्ति जिसमें Rh कारक उपस्थित होता है, Rh सहित (Rh+ve) कहलाता है
- वह व्यक्ति जिसमें Rh कारक अनुपस्थित होता है, Rh हीन (Rh-ve) कहलाता है
- Rh कारक की खोज लैंडस्टीनर तथा वीनर ने रिसेस मकाका का बंदर में की थी
रक्तदान के दौरान रक्त देने वाले (दाता) का एंटीजन तथा रक्त ग्राही की एंटीबॉडी की जांच करना आवश्यक होता है, क्योंकि यदि एंटीजन (A) व एंटीबॉडी (a) समान नहीं होने चाहिए।
यदि Rh कारक में Rh एंटीजन उपस्थित हो तो रक्त समूह धनात्मक होता है। तथा Rh एंटीजन अनुपस्थित हो तो रक्त समूह ऋणात्मक होता है।
एरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटेलिस
- यह एक विशेष प्रकार की Rh अयोग्यता।
- इसमें एक गर्भवती माता (Rh-ve) एवं उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण (Rh+ve) के बीच होती है। भ्रूण का अपरा से अलग रहने के कारण सगर्भता में माता के Rh-ve को प्रभावित नहीं करता, परंतु पहले प्रसव के समय माता के Rh-ve रक्त से शिशु के Rh+ve रक्त के संपर्क में आने की संभावना रहती है। इस कारण माता के रक्त में Rh प्रतिरक्षी बनना शुरू होती है। यदि परवर्ती गर्भावस्था हो तो रक्त से (Rh-ve) भ्रूण के रक्त (Rh+ve) मे Rh प्रतिरक्षी का रिसाव हो सकता है जिसके कारण भ्रूण की लाल रक्त कणिकाएं नष्ट हो जाती है जिससे रक्ताल्पता (खून की कमी) और पीलिया हो सकता है, इसे एरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटेलिस (गर्भ रक्ताणु कोरकता) कहते हैं।
रक्त स्कंदन
रक्त के किसी चोट की प्रतिक्रिया स्वरूप रक्त स्कंदन (रक्त का जमाव) होता है। रक्त का स्कंदन जो मुख्यतः फाइब्रिन धागे के जाल से बनता है। फाइब्रिन , रक्त प्लाज्मा में उपस्थित एंजाइम थ्रांबिन की सहायता से फाइब्रिनोजन द्वारा बनती है। इस प्रतिक्रिया में कैल्शियम, आयरन महत्वपूर्ण कारक होता है। यह क्रिया शरीर से बाहर रक्त को बहाने से रोकती है।
लसीका
- रंगहीन द्रव
- विशिष्ट लिंफोसाइट उपस्थित
- शरीर की प्रतिरक्षा अनुक्रिया में सहायक
रक्त जब उत्तक के कोशिकाओं से प्रवाहित होता है, तब बड़े प्रोटीन अणु, संगठित पदार्थों को छोड़कर रक्त से जल एवं जल में घुलनशील पदार्थ रक्त के रूप में बाहर निकल आते हैं, जिसे लसीका अथवा ऊतक द्रव करते हैं
लसीका के कार्य
- लिंफोसाइट रोगाणुओ का भक्षण करना
- पोषक पदार्थ का परिवहन करना
रुधिर परिसंचरण तंत्र
- मनुष्य तथा उच्च जंतुओं में शरीर के भीतर रुधिर के माध्यम से पदार्थ के परिवहन अथवा परिसंचरण हेतु एक तंत्र सुविकसित होता है, जिसे रुधिर परिसंचरण कहते हैं
- इसमें एक केंद्रीय पंप अंग, हृदय उपस्थित होता है। रुधिर वाहिनी में निरंतर रुधिर प्रवाहित होता रहता है
रुधिर परिसंचरण तंत्र के प्रकार
- खुला परिसंचरण तंत्र
- इस तंत्र में रुधिर कुछ समय के लिए रुधिर नलिकाओं में उपस्थित रहता है और अंत में रुधिर नलिकाओं से खुले स्थान में आ जाता है।
- इसमें रुधिर कम दाब एवं कम गति से बहता है।
- इसमें परिसंचरण कम समय में पूर्ण हो जाता है।
- यह तिलचट्टा, प्रोंन, किट, मकड़ी इत्यादि में पाया जाता है
- बंद परिसंचरण तंत्र
- इस तंत्र में रुधिर बंद नलिकाओं में बहता है।
- इसमें रुधिर अधिक दाब एवं अधिक गति से बहता है
- ऊतक द्रव द्वारा पदार्थ का आदान-प्रदान होता है
- कशेरुकियों में पाया जाता है
- मनुष्य में विकसित बंद तथा दोहरा परिसंचरण तंत्र पाया जाता है
- मनुष्य में रुधिर परिसंचरण तंत्र की खोज विलियम हार्वे ने की थी
- मनुष्य का रुधिर परिसंचरण तंत्र दो भागों से निर्मित होता है
- रुधिर
- तरल संयोजी ऊतक
- रुधिर कणिकाएं, प्लाज्मा, प्रोटीन इत्यादि उपस्थित
- हृदय
- पेशीय अंग
- मनुष्य का हृदय लंबा एवं शंक्वाकार होता है
- यह पेशियां के नीचे और दोनों फेफड़ों के मध्य (थोड़ा सा बाई ओर) स्थित होता है
- हृदय 4 कोष्ठों से बना होता है
- इसके ऊपर की ओर बाया तथा दाया आलिंद और नीचे की ओर बाया तथा दाया निलय होता है
- ऑक्सीजन युक्त रुधिर फुफ्फुस से हृदय में बाई ओर स्थित कोष्ठ (बाया आलिंद तथा निलय) में लाया जाता है
- आलिंद की अपेक्षा निलय की पेशीय भीति मोटी होती है, क्योंकि निलय से पूरे शरीर में रुधिर जाता है।
- आलिंद तथा निलय मे संकुचन हो तो वाल्व उल्टी दिशा में रुधिर प्रवाह को रोकते हैं।
दोनों आलिंदो के मध्य एक पट अथवा भीति होती है जिसे अंतआलिंदीय पट कहते हैं। इस प्रकार दोनों निलय के मध्य एक पट अथवा भीति होती है जिसे अंतनिलयी पट कहते हैं
हृदय की गतिविधि
- हृदय के संकुचन तथा शिथिलन द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में रुधिर पंप करता है
- हृदय के बाएं आलिंद में ऑक्सीजन युक्त रक्त फुफ्फुसीय शिराओं द्वारा आता है
- दोनों आलिंद सिकुड़ जाते हैं, फिर आलिंद से ऑक्सीजन युक्त रुधिर बाएं निलय में तथा दाएं आलिंद से ऑक्सीजन रहित रुधिर दाएं निलय में जाता है
- इसके पश्चात दोनों निलय में सिकुड़न होती है। जिससे रुधिर में दाब पड़ता है तथा आलिंद व निलय के बीच कपाट बंद हो जाते हैं जिससे रुधिर पुनः आलिंद में नहीं जा सके।
- रुधिर पर दाब के कारण निलय से जुड़ी महाधमनी से महाधमनी का कपाट खुलता है तथा रुधिर महाधमनी में आ जाता है। इस प्रकार धमनी के माध्यम से शरीर के सभी भागों में रक्त पहुंचाया जाता है
- दाएं निलय के सिकुड़न से रुधिर फुफ्फुसीय धमनियों द्वारा फुफ्फुस मे जाता है और कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त कर ऑक्सिजनित होकर पुनः बाएं आलिंद में प्रवेश करता है और इसी प्रकार रुधिर हृदय में दो चक्र पूर्ण करता है, इसे दोहरा परिसंचरण तंत्र कहते हैं
- रुधिर वाहिनी
A. धमनी
- रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाती है
- इसमें शुद्ध रक्त (ऑक्सिजनित) प्रवाहित होता है
- फुफ्फुसीय धमनी मे अशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है
B. शिरा
- रुधिर को शरीर के विभिन्न भागों से हृदय में लाती है
- इसमें अशुद्ध रक्त उपस्थित होता है
- फुफ्फुसीय शिरा मे शुद्ध रक्त प्रवाहित होता है
- केशिकाए
- धमनी और शिरा को जोड़ने का कार्य करती है
स्वस्थ मनुष्य का हृदय 1 मिनट में 72 बार धड़कता है
परंतु कड़ी मेहनत के पश्चात यह एक मिनट में 180 बार भी धड़क सकता है
हृदय एक बार में लगभग 70 mm रुधिर पंप करता है।
हृदय की धड़कन दाहिने आलिंद में स्थित ऊतकों के समूह से शुरू होती है जिस शिरा आलिंद नोड अथवा पेसमेकर कहते हैं
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी द्वारा हृदय की धड़कन की जांच की जा सकती है
यह एक ग्राफीय विधि है जिसे ECG कहते हैं
रुधिर दाब
- रुधिर वाहिकाओं की विधि के विरुद्ध लगा दाब, रक्तदाब अथवा रुधिर दाब कहलाता है
- प्रकुंचन निलय के सिकुड़ने पर उसमें भरे रुधिर को महाधमनी में पंप करना वह रुधिर का दाब प्रकुंचन कहलाता है
अनुशिथिलन
- निलय संकुचन के पश्चात आलिंद से रुधिर प्राप्त करते समय रुधिर का दाब, अनुशिथिलन कहलाता है
सामान्य मनुष्य में प्रकुंचन दाब 120 mm होता है तथा प्रकुंचन दाब 80 mm होता है
लसिका तंत्र
- इस तंत्र में लसीका द्रव अंतर कोशिकीय स्थलों में परिसंचरण करता है
- शरीर में लसीका कोशिकाएं, वह दो बड़ी लसिकाएं पाई जाती है
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